आज चंपा षष्ठी का व्रत है। हर साल मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को चंपा षष्ठी का व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव के मार्कंडेय स्वरूप और उनके ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती है। चंपा षष्ठी के दिन भगवान शिव के खंडोबा स्वरुप की आराधना करते हैं। उनको किसानों का देवता कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हर मास की षष्ठी तिथि को देवताओं के सेनापति कार्तिकेय जी की पूजा की जाती है। चंपा षष्ठी के दिन भगवान शिव को पूजा में बैंगन और बाजरा का भोग लगाया जाता है, इसलिए चंपा षष्ठी को बैगन षष्ठी भी कहते हैं। चलिए आपको बता हैं चंपा षष्ठी के बारे में पूरी जानकारी
चंपा षष्ठी पर पड़ रहा रवि योग
इस वर्ष चंपा षष्ठी व्रत रवि योग में मनाया जाएगा। 9 दिसंबर को रवि योग सुबह 07 बजकर 02 मिनट से लेकर रात 09 बजकर 51 मिनट तक रहेगा। इस दिन राहुकाल दोपहर 01 बजकर 31 मिनट से दोपहर 02 बजकर 49 मिनट तक रहेगा।
चंपा षष्ठी का महत्व
धार्मिक पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिकेय अपने माता-पिता और छोटे भाई श्री गणेश से नाराज होकर कैलाश पर्वत छोड़कर मल्लिकार्जुन, जो कि शिव जी का ज्योतिर्लिंग है, वहां आ गए थे और कार्तिकेय ने स्कंद षष्ठी को ही दैत्य तारकासुर का वध किया था तथा षष्ठी तिथि को ही कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति बने थे। यह व्रत भगवान कार्तिकेय को समर्पित है। शिव पुत्र कार्तिकेय को चंपा के फूल अधिक पसंद होने के कारण ही इस दिन को स्कंद षष्ठी के अलावा चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। इनका वाहन मोर है।
चंपा षष्ठी का दिन भगवान शिव और उनके पुत्र कार्तिकेय जी के आशीर्वाद को प्राप्त करने का अच्छा अवसर है। आप इस दिन शिव जी को गंगाजल, गाय का दूध, शहद, बेलपत्र, भांग, धतूरा, बैंगन, बाजरा, फल आदि अर्पित करते हैं। इस अवसर पर अबीर अर्पित करना भी शुभ होता है। कार्तिकेय जी का चंपा के फल से पूजा करते हैं।
चंपा षष्ठी का कथा-
जब पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी सती कूदकर भस्म हो गईं, तब शिव जी विलाप करते हुए गहरी तपस्या में लीन हो गए। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है। इस मौके का फायदा दैत्य उठाते हैं और धरती पर तारकासुर नामक दैत्य का चारों ओर आतंक फैल जाता है। देवताओं को पराजय का सामना करना पड़ता है। चारों तरफ हाहाकार मच जाता है तब सभी देवता ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं। तब ब्रह्माजी कहते हैं कि तारक का अंत शिव पुत्र करेगा। इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शंकर पार्वती के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिवजी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है।
कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व है। एक अन्य कथा के अनुसार कार्तिकेय का जन्म 6 अप्सराओं के 6 अलग-अलग गर्भों से हुआ था और फिर वे 6 अलग-अलग शरीर एक में ही मिल गए थे। ज्योतिष के अनुसार षष्ठी तिथि के स्वामी भगवान कार्तिकेय है और दक्षिण दिशा में उनका निवास स्थान है।स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय को अधिक प्रिय होने से इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।