आज इंदिरा एकादशी हैं। अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितृपक्ष में पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता हैं। मान्यता हैं कि इस दिन व्रत रखने से सात पीढ़ियों तक के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो भी इस एकादशी के व्रत को करता हैं, उन्हें बैंकुठ मिलता है। ये व्रत अत्यंत कठिन होता हैं। जानें इस व्रत का शुभ मुहुर्त, पूजा विधि, कथा-
इंदिरा एकादशी का शुभ मुहूर्त-
01 अक्टूबर, शुक्रवार को रात 1 बजकर 03 मिनट से प्रारंभ हो चुकी हैं।
02 अक्टूबर, शनिवार को रात 11 बजकर 10 मिनट पर समापन होगा।
इंदिरा एकादशी पूजा सामग्री लिस्ट
श्री विष्णु जी की मूर्ति, पुष्प, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, चंदन, मिठाई
इंदिरा एकादशी पूजा विधि
इंदिरा एकादशी के दिन शालिग्राम के पूजन का विधान है। इस दिन पूजन में सबसे पहले भगवान शालिग्राम को गंगा जल से स्नान करवा कर आसन पर स्थापित करें। इसके बाद उन्हें धूप, दीप, हल्दी,फल और फूल अर्पित करें। इसके बाद इंदिरा एकादशी व्रत की कथा का पाठ करना चाहिए। पितरों की मुक्ति के लिए इस दिन पितृ सूक्त, गरूण पुराण या गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना चाहिए। पूजन का अंत भगवान की आरती करके किया जाता है। यदि इस दिन श्राद्ध हो तो पितरों के निमत्त भोजन बना कर घर की दक्षिण दिशा में रखना चाहिए व गाय, कौए और कुत्ते को भी भोजन जरूर कराएं। ऐसा करने से पितरों को यमलोक में अधोगति से मुक्ति मिलती है।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले सतयुग में महिष्मति नाम का एक नगर था। यहां के राजा इंद्रसेन थे। इंद्रसेन बहुत कुशल और प्रतापी राजा था। राजा प्रजा का पालन-पोषण अपनी संतान की तरह करता था। उसके राज्य में सुख शांति कायम थी। राजा इंद्रसेन भगवान विष्णु का बहुत बड़ा उपासक था। एक दिन अचानक राजा इंद्रसेन की सभा में नारद मुनि का प्रवेश हुआ। नारद जी राजा के पास उनके पिता का संदेश लेकर पहुंचे थे।
राजा के पिता ने इंद्रसेन को संदेश भेजा कि पिछली जन्म में किसी भूल के कारण वह यमलोक में ही हैं। उन्हें यमलोक से मुक्ति के लिए उनके पुत्र को इंदिरा एकादशी का व्रत रखना होगा। ताकि उन्हें मोक्ष मिल सके। पिता का यह संदेश सुनकर राजा इंद्रसेन ने नाराद जी से इंदिरा एकादशी व्रत के महामात्य के बारे में बताने का आग्रह किया। तब नारद जी ने कहा कि यह अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। एकादशी से पूर्व दशमी के दिन पितरों का श्राद्ध करने के बाद एकादशी का व्रत का संकल्प लें।
द्वादशी के दिन स्नान आदि के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। विधि पूर्वक पारण और दान आदि का कार्य पूर्ण करने के बाद व्रत खोलें। तभी पिता को मोक्ष की प्राप्ति होगी और उन्हें भगवान श्री हरि के चरणों में जगह मिलेगी। नाराद मुनि के बताए अनुसार राजा इंद्रसेन ने इंदिरा एकादशी का व्रत रखा। जिसके पुण्य से उनके पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुई और वे बैकुंठ चले गए। इंदिरा एकादशी के पुण्य के प्रभाव से बाद में राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु के बाद बैकुंठ प्राप्त हुआ।