आज जानकी जयन्ती है। फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जानकी जयंती मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन मिथिला नरेश राजा जनक की दुलारी सीता जी प्रकट हुई थीं, इसलिए इस दिन को सीता अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माता सीता की पूजा की जाती है। इसके बाद मां सीता को पीले फूल, कपड़े और श्रृंगार का सामान चढ़ाया जाता है। भारत के मिथिला क्षेत्रों में जानकी जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन मां सीता की पूजा करने से जीवन में सुख, सौभाग्य और शांति की प्राप्ति होती है। वहीं शादीशुदा जीवन में चल रही समस्याएं भी समाप्त होती है।ॉ
जानकी जयंती का शुभ मुहूर्त
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – 23 फरवरी, 2022 को 04:56 पी एम से
अष्टमी तिथि समाप्त – 24 फरवरी, 2022 को 03:03 पी एम तक
जानकी जयंती की पूजा विधि
इस दिन प्रात:काल उठकर सबसे पहले भगवान राम और माता सीता को प्रणाम करें। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। फिर आमचन कर स्वंय को पवित्र करें। अब लाल रंग के कपड़े धारण करें। तंदोपरांत, पूजा गृह में चौकी पर भगवान श्रीराम और माता सीता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित कर उनकी पूजा भक्तिभाव से करें। माता को श्रृंगार की चीजें अवश्य अर्पित करें। माता सीता की पूजा फल, पुष्प, धूप-दीप, दूर्वा आदि चीजों से करें. अंत में आरती अर्चना कर सुख और समृद्धि की कामना करें। साधक अपनी इच्छानुसार दिनभर व्रत कर सकते हैं। संध्याकाल में आरती अर्चना के पश्चात फलाहार करें।
जानकी जयंती की कथा
रामायण के अनुसार, एक समय की बात है जब मिथिला के राजा जनक यज्ञ के लिए खेत को जोत रहे थे। उसी समय एक क्यारी में दरार पड़ गई और उसमें से एक नन्ही बच्ची प्रकट हुईं। उस समय राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, उन्होंने कन्या को गोद में ले लिया। आपको बता दें कि हल को मैथिली भाषा में सीता कहा जाता है और यह कन्या हल चलाते हुए ही मिलीं, इसीलिए इनका नाम सीता रखा गया।
श्री जानकी जी वन्दना
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोअहं रामवल्लभाम्।।