आज कालाष्टमी है। हिंदू पंचांग के आधार पर प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी व्रत होता है. इस समय फाल्गुन माह चल रहा है। फाल्गुन माह का कालाष्टमी व्रत आने वाला है। कालाष्टमी व्रत के दिन रुद्रावतार काल भैरव विधि विधान से पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। इस दिन शिवालय और मठों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान शिव जी के स्वरूप काल भैरव देव का आह्वान किया जाता है। खासकर उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में विशेष पूजा-आराधना की जाती हैं। साथ ही महाभस्म आरती की जाती है। जबकि शिव जी के उपासक अपने घरों में ही उनकी पूजा कर उनसे यश, कीर्ति, सुख और समृद्धि की कामना करते हैं।
कालाष्टमी व्रत शुभ मुहूर्त
आज शाम 04 बजकर 56 मिनट पर हो शुभ मुहूर्त शुरू हो रहा है और अगले दिन 24 फरवरी को दोपहर 03 बजकर 03 मिनट तक मान्य है।
कालाष्टमी पर बन रहा खास योग
कालाष्टमी व्रत वाले दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और रवि योग बन रहा है। ये तीनों ही योग शुभ माने जाते हैं। इस समय काल में पूजा अर्चना कर सकते हैं। कालाष्टमी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग दोपहर 02 बजकर 41 मिनट से प्रारंभ हो रहा है, जो 24 फरवरी को प्रात: 06 बजकर 52 मिनट तक बना रहेगा।
कालाष्टमी पूजा विधि
इस दिन प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद स्नान-ध्यान कर व्रत संकल्प लें। इसके लिए पवित्र जल से आमचन करें। अब सर्वप्रथम सूर्य देव का जलाभिषेक करें। इसके पश्चात भगवान शिव जी की पूजा जथा शक्ति तथा भक्ति के भाव से करें। आप भगवान शिव जी के स्वरूप काल भैरव देव की पूजा पंचामृत, दूध, दही, बिल्व पत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप-दीप आदि से करें। अंत में आरती अर्चना कर अपनी मनोकामनाएं प्रभु से जरूर कहें। दिन में उपवास रखें। जबकि शाम में आरती अर्चना के बाद फलाहार करें। इसके अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा पाठ के बाद व्रत खोलें।
कालाष्टमी की पौराणिक कथा
शिवपुराण में भगवान शिव के विभिन्न अवतारों का वर्णन मिलता है। इस कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में में श्रेष्ठता को लेकर बहस छिड़ गई। सभी देवताओं के साथ ब्रह्मा जी और विष्णु जी भगवान भोलेनाथ के पास कैलाश पहुंचे। भोलेनाथ ने सबकी बात सुनी और तुरंत ही भगवान शिव जी के तेजोमय और कांतिमय शरीर से ज्योति निकली, जो आकाश और पाताल की दिशा में बढ़ रही थी। तब महादेव ने ब्रह्मा और विष्णु जी से कहा आप दोनों में जो सबसे पहले इस ज्योति की अंतिम छोर पर पहुंचेंगे, वही सबसे श्रेष्ठ है। इसके बाद ब्रह्मा और विष्णु जी अनंत ज्योति की छोर तक पहुंचने के लिए निकल पड़े।
कुछ समय बाद ब्रह्मा जी और विष्णु जी वापस लौटे। विष्णु जी ने तो सच बता दिया लेकिन ब्रह्मा जी ने झूठ बोल दिया कि उन्हें छोर प्राप्त हो गया। भगवान भोलेनाथ सत्य जानते थे उन्होंने विष्णु जी को सर्वश्रेष्ठ घोषित कर दिया। इस बात से ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए और उन्होंने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है। इस अवतार को महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है।
भगवान भोलेनाथ का यह उग्र रूप देखकर देवतागण घबरा गए। भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर भगवान शिव अपने असली रूप में आए। परंतु ब्रह्माजी का सिर काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप लग गया जिस वजह से भैरव बाबा को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। कई वर्षों बाद वाराणसी में भैरव बाब का दंड समाप्त हुआ इसी कारण उनका भैरव बाबा को दंडपाणी के नाम से जाना जाता है।