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Somvar Vrat: भगवान​ शिव को करना है प्रसन्न तो पहले ही जान लें व्रत के नियम, देखें पूजा विधि, महत्व और व्रत कथा

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आज सोमवार का दिन है और सोमवार का दिन भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है। त्रिदेवों में से एक महादेव भक्तों के प्रति काफी दयालु हैं इसीलिए उन्हें प्रसन्न करना काफी आसान माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, सोमवार के दिन व्रत रखने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। शिव जी की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है। कुंवारी लड़कियों के लिए भी सोमवार का व्रत रखना लाभदायक माना गया है। अगर आप सोमवार का व्रत रख रहे हैं तो यहां जानें पूजा विधि, आरती, महत्व और कथा-

 

सोमवार व्रत के नियम

सोमवार के व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद मंदिर में भगवान शिव को जल या दूध चढ़ाएं। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा और आरती की जाती है। इस दिन तीसरे पहर तक व्रत होता है। वैसे तो सोमवार के व्रत में फलाहार या पारण का कोई खास नियम नहीं है। पूरे दिन में तीसरे पहर के बाद ही भोजन किया जाता है। सोमवार के व्रत तीन प्रकार के होते हैं- हर सोमवार, सोम्य प्रदोष और सोलह सोमवार – तीनों व्रत की विधि एक जैसी ही होती है। शिव पूजन के बाद कथा सुनना जरूरी होता है। शाम के समय भी भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है और आरती करनी चाहिए। वैसे तो व्रत के लिए किसी वर्ग या उम्र की जरूरत नहीं लेकिन अगर आप व्रत रखने की क्षमता रखते हैं तो व्रत रख सकते हैं। इसके अलावा, विवाहित लोग व्रत के दौरान ब्राह्मचार्य व्रत का पालन जरूर करें।

 

सोमवार व्रत पूजा विधि

नारद पुराण के अनुसार, सोमवार के दिन शिव भक्तों को प्रातः काल स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। इसके बाद भगवान शिव और पार्वती को स्मरण करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रत का संकल्प लेने के बाद शिवजी को जल और बेलपत्र चढ़ाएं और भगवान शिव के साथ संपूर्ण शिव परिवार की पूजा करें। पूजा करने के बाद कथा सुनें और आरती करने के बाद घर के सदस्यों में प्रसाद बांटें।

 

सोमवार व्रत कथा

एक शहर में एक साहूकार रहता था जिसे किसी चीज की कमी नहीं थी। हर तरह से परिपूर्ण होने के बाद भी वह हमेशा परेशान रहा करता था। ऐसा इसलिए क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए वह सोमवार का व्रत रखता था और शिव मंदिर जाकर शिव-पार्वती की पूजा करता था। साहूकार की भक्ति देखकर मां पार्वती खुश हो गईं और उन्होंने भगवान शिव से साहूकार की इच्छा पूरी करने के लिए कहा। तब भगवान शिव ने पार्वती माता को यह समझाया कि हर किसी को उसके कर्मों का फल मिलता है जो उसे भोगना ही पड़ता है। भगवान शिव के समझाने पर पार्वती मां नहीं मानी और उन्होंने वापस भगवान शिव से साहूकार की इच्छा पूरी करने के लिए कहा।

 

पार्वती मां की वजह से भगवान शिव ने साहूकार को पुत्र का वरदान दिया लेकिन उस पुत्र की उम्र सिर्फ 12 वर्ष ही रखी। पुत्र पाकर भी साहूकार खुश नहीं था लेकिन उसने शिव जी की भक्ति करना नहीं छोड़ा। कुछ समय के बाद साहूकार का बेटा हुआ। जब साहूकार का बेटा 11 वर्ष का हो गया था तब उसे पढ़ाई के लिए काशी भेज दिया गया था। साहूकार ने अपने बेटे के साथ उसके मामा को भी ढेर सारा धन देकर भेज दिया था। साहूकार ने कहा था कि रास्ते में ब्राह्मणों को भोजन करवाना और यज्ञ करवाना। साहूकार की बात मानकर मामा और भांजे काशी की ओर चल पड़े। रास्ते में उन्हें जो भी ब्राह्मण मिलता वह उसे भोजन करवाते और दक्षिणा देते।

 

रास्ते में मामा और भांजे को एक राज्य मिला जहां के राजा की बेटी की शादी हो रही थी। राजा की बेटी की शादी जिस राजकुमार के साथ हो रही थी वह काना था और यह बात राजा को नहीं पता थी। मामा और भांजे को राजकुमार का पिता मिला जो उन्हें अपने साथ ले गया। साहूकार के बेटे को देखकर उसने एक चाल चली और अपने बेटे की जगह साहूकार के बेटे को दूल्हा बनाकर विवाह करने के लिए भेज दिया। साहूकार का बेटा बहुत ईमानदार था और उसने राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिख दिया कि उसकी शादी साहूकार के पुत्र के साथ हुई है लेकिन उसको जिस राजकुमार के साथ भेजा जाएगा वह काना है।

 

राजकुमारी ने यह बात जाकर अपने माता-पिता को बता दी। राजा ने अपनी बेटी को विदा नहीं किया जिस वजह से बारात को वापस जाना पड़ा। यह सब होने के बाद साहूकार का बेटा और उसका मामा काशी की ओर निकल गए। काशी पहुंच कर उन्होंने यज्ञ करवाया। जिस दिन साहूकार के बेटे की उम्र 12 साल हुई उस दिन यज्ञ रखा गया था। यज्ञ के दौरान साहूकार के बेटे ने अपने मामा से कहा कि उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं है इसीलिए वह अंदर जाकर सोने लगा। शिवजी के वरदान अनुसार, जब साहूकार का बेटा आराम कर रहा था तब उसके प्राण निकल गए। जब मामा को पता चला कि उसके भांजे की मृत्यु हो गई है तो वह रोने लगा।

 

उसी समय भगवान शिव और माता पार्वती वहीं मौजूद थे। रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती ने कहा कि उनसे यह आवाज सहन नहीं हो रही है। उन्होंने शिव जी से प्रार्थना की कि वह व्यक्ति के दुख दूर कर दें। जब भगवान शिव उस व्यक्ति के पास पहुंचे तब उन्होंने मृत बच्चे को देखकर पहचान लिया कि यह साहूकार का बेटा है। उन्होंने कहा कि अब साहूकार का बेटा 12 वर्ष का हो गया है इसी के लिए इसके प्राण निकल गए हैं। महादेव की बात सुनकर पार्वती माता ने उनसे कहा कि वह इस बालक को पुनर्जीवित कर दें नहीं तो इसके माता-पिता इस दर्द को सहन नहीं कर पाएंगे। पार्वती माता की बात मानकर भगवान जी ने साहूकार के बेटे को पुनर्जीवित कर दिया। जब मामा और भांजा वापस अपने शहर की ओर जा रहे थे तब उन्हें वह राजा मिला जिसकी बेटी की शादी साहूकार के बेटे से हो गई थी। वह राजा साहूकार के बेटे से बहुत प्रसन्न था इसीलिए उसने साहूकार के बेटे के साथ अपनी बेटी को विदा कर दिया।