आज पुत्रदा एकादशी व्रत है। पौष के महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को पौष वैकुंठ एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि जिन लोगों की संतान नहीं है, वे अगर पूरे विधि विधान से इस व्रत को रखें तो उन्हें संतान सुख प्राप्त होता है। इसके अलावा ये एकादशी लोगों को मोक्ष के द्वार तक ले जाती है। जानें पुत्रदा एकादशी व्रत के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और नियम के बारे में-
पुत्रदा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त
पौष पुत्रदा एकादशी की तिथि आज शाम 04 बजकर 49 मिनट पर शुरू होकर 13 जनवरी को शाम में 7 बजकर 32 मिनट पर समाप्त होगी। व्रती 13 जनवरी को दिन के किसी समय भगवान श्रीहरि और माता लक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं।
पुत्रदा एकादशी व्रत की पूजा विधि
एकादशी व्रत की सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लें और जल में गंगाजल डालकर स्नान करें। मन में प्रभु का नाम जपते रहें। इसके बाद पूजा के स्थान की सफाई करें। इसके बाद नारायण की प्रतिमा को धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, फूल माला और नैवेद्य अर्पित करें। पंचामृत और तुलसी अर्पित करें। इसके बाद नारायण के मंत्रों का जाप करें। इसके अलावा वैकुंठ एकादशी व्रत कथा पढ़ें। आखिर में आरती करें। पूरे दिन उपवास रखें। रात में फलाहार करें और जागरण करके भगवान का भजन करें। द्वादशी के दिन स्नान करने के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिणा दें। इसके बाद व्रत का पारण करें।
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व्रत के नियम
इस व्रत के नियम एकादशी से एक शाम पहले से लागू हो जाते हैं। यदि आप 13 जनवरी का व्रत रखने के बारे में सोच रहे हैं तो आपको 12 जनवरी को सूर्यास्त से पूर्व सात्विक भोजन करना है। व्रत के नियमानुसार द्वादशी तक ब्रह्मचर्य का पालन करना है। एकादशी से पहले की रात में जमीन पर बिस्तर लगाकर सोएं। एकादशी की रात जागरण करके भगवान का ध्यान और भजन करें। मन में किसी के लिए बुरे विचार न लाएं। किसी की चुगली न करें और न ही किसी निर्दोष को सताएं। द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद अपना व्रत खोलें।
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
पुत्रदा एकादशी व्रत में इस कथा को अवश्य सुनना चाहिए। मान्यता है कि कथा को ध्यान पूर्वक सुनने से ही इस व्रत का पूर्ण पुण्य प्राप्त होता है। पुत्रदा एकादशी की कथा द्वापर युग के महिष्मती नाम के राज्य और उसके राजा से जुड़ी हुई है। महिष्मती नाम के राज्य पर महाजित नाम का एक राजा शासन करता था। इस राजा के पास वैभव की कोई कमी नहीं थी, किंतु कोई संतान नहीं थी। जिस कारण राजा परेशान रहता था। राजा अपनी प्रजा का भी पूर्ण ध्यान रखता था। संतान न होने के कारण राजा को निराशा घेरने लगी। तब राजा ने ऋषि मुनियों की शरण ली। इसके बाद राजा को एकादशी व्रत के बारे में बताया गया है। राजा ने विधि पूर्वक एकादशी का व्रत पूर्ण किया और नियम से व्रत का पारण किया। इसके बाद रानी ने कुछ दिनों गर्भ धारण किया और नौ माह के बाद एक सुंदर से पुत्र को जन्म दिया। आगे चलकर राजा का पुत्र श्रेष्ठ राजा बना।