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Sheetala Saptami: शीतला सप्तमी आज, न जलाएं घर का चूल्हा, वरना होगा भारी नुकसान!

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आज शीतला सप्तमी है। सनातन धर्म में प्राचीन काल से ही शीतला सप्तमी व्रत रखा जा रहा है। इस त्योहार को बसौड़ा या बसोरा भी कहा जाता है। शीतला सप्तमी के दिन भक्त मां शीतला की पूजा-अर्चना और व्रत करते हैं। व्रत करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। मान्यता है कि इस दिन ठंडा भोजन करने से बीमारियां नहीं होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि शीतला अष्टमी से ही ग्रीष्मकाल की शुरुआत होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शीतला माता की पूजा करने से चेचक, नेत्र विकार आदि रोग होने का भय नहीं रहता है। कहा जाता है कि शीतला माता की विधिवत पूजा करने वाली संतानहीन महिलाओं को आशीर्वाद प्राप्त होता है।

 

शीतला सप्तमी 2022 शुभ मुहूर्त-

ब्रह्म मुहूर्त- 04:46 ए एम से 05:34 ए एम।

अभिजित मुहूर्त- 12:03 पी एम से 12:52 पी एम।

विजय मुहूर्त- 02:30 पी एम से 03:19 पी एम।

गोधूलि मुहूर्त- 06:22 पी एम से 06:46 पी एम।

अमृत काल- 09:12 ए एम से 10:43 ए एम।

निशिता मुहूर्त- 12:03 ए एम, मार्च 25 से 12:50 ए एम, मार्च 25।

रवि योग- 06:21 ए एम से 05:30 पी एम।

 

शीतला सप्तमी पूजा विधि

मान्यतानुसार शीतला सप्तमी पर सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान किया जाता है। स्नान के बाद से ही व्रत शुरू हो जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा के दिन घर का चूल्हा नहीं जलाया जाता है। माना जाता है कि पूजा का भोग एक दिन पहले ही तैयार कर लेना चाहिए। पूजा से एक दिन पहले रात में भक्त तरह-तरह के पकवान तैयार करते हैं, जैसे पुआ, पूड़ी, चावल और हलवा आदि। शीतला माता को भोग चढ़ाने के पश्चात प्रसाद का सेवन किया जाता है। शीतला सप्तमी पर शीतला माता का मंत्र 'वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बरराम्, मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम्' पढ़ा जाता है। शीतला माता के मंत्र को तुलसी से बनी माला से जाप करने को शुभ मानते हैं। मान्यता के अनुसार शीतला माता की पूजा उनकी प्रतिमा के सामने की जानी चाहिए। शीतला माता की कथा सुनना अच्छा माना जाता है।

 

शीतला सप्तमी के दिन नहीं जलता घर का चूल्हा

शीतला सप्तमी के एक दिन पहले से ही तरह-तरह के पकवान बनाएं जाते हैं। इसके अगले दिन सूर्योदय से पहले स्नान करके व्रत का संकल्प लेते हैं और शीतला माता के मंदिर जाकर पूजा करते हैं और फिर बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से दही, रबड़ी, चावल, हलवा, पुरी आदि का भोग लगाया जाता है। इसके बाद जहां होलिका दहन हुआ था, वहां पूजा की जाती है और घर के बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है। इस दिन चूल्हा नहीं जलता और ताजा खाना अगली सुबह से बनाया जाता है। यह पूजा माता शीतला का प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। ताकि गर्मी के दिनों में होने वाली बीमारियों से घर की रक्षा की जा सके। घर में सुख समृद्धि का वास हो।

 

शीतला माता की कथा

किसी गांव में एक महिला रहती थी। वह शीतला माता की भक्त थी तथा शीतला माता का व्रत करती थी। उसके गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था। एक दिन उस गांव में किसी कारण से आग लग गई। उस आग में गांव की सभी झोपड़ियां जल गई, लेकिन उस औरत की झोपड़ी सही-सलामत रही। सब लोगों ने उससे इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं माता शीतला की पूजा करती हूं। इसलिए मेरा घर आग से सुरक्षित है। यह सुनकर गांव के अन्य लोग भी शीतला माता की पूजा करने लगे।