आज शीतला षष्ठी का व्रत है। माघ माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को शीतला षष्ठी का व्रत किया जाता है। शीतला माता का व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए होता है। शीतला षष्ठी के दिन अगर कोई महिला संतान सुख की कामना कर पूरे विधि-विधान से शीतला माता का व्रत करती है, तो शीतला माता के आशीर्वाद से वो संतान प्राप्त करती है। ऐसी भी मान्यता है कि जब छोटे बच्चों को दाने निकल आते हैं, तो घर के बड़े-बुजुर्ग शीतला माता का प्रकोप मानते हैं। शीतला माता को शांत और प्रसन्न करने के लिए भी इस व्रत को किया जाता है। शीताला माता की पूजा आराधना से घर में शांति बनी रहती है। इससे दैहिक और मानसिक संताप मिट जाते हैं।
शीतला षष्ठी शुभ मुहूर्त
षष्ठी तिथि प्रारंम्भ: 6 फरवरी को सुबह 3 बजकर 46 मिनट से शुरू
षष्ठी तिथि समाप्त: 7 फरवरी 4 बजकर 37 मिनट तक
शीतला षष्ठी पूजा विधि
इस व्रत में महिला प्रातः काल उठकर ठंडे पानी से स्नान करके शीतला माता की पूजा करती है। रात का रखा बासी भोजन ही करती है। इसके बाद इस मंत्र 'श्रीं शीतलायै नमः, इहागच्छ इह तिष्ठ' को बोलते हुए जल अर्पित करें। फिर हाथ में वस्त्र अथवा मौली लेकर आसन के रूप में माता को अर्पित करें। फिर चंदन और अक्षत का तिलक लगाने के साथ फूल और फूल से माला अर्पित करें। इसके बाद शीतला माता को धूप-दीप दिखाएं। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है बल्कि चूल्हे की पूजा की जाती है। माता शीतला को शीतल चीजें पसंद हैं इसलिए उन्हें भी ठंडा भोग ही लगाया जाता है। शीतला माता की विधिवत् पूजा करने के पश्चात शीतला षष्ठी की कथा भी अवश्य पढ़नी चाहिए।
शीतला षष्ठी व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है। भारत के किसी गांव में एक बुढ़िया माई रहती थी। वह हर शीतला षष्ठी के दिन शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाती थी। भोग लगाने के बाद ही वह प्रसाद ग्रहण करती थी। गांव में और कोई व्यक्ति शीतला माता का पूजन नहीं करता था। एक दिन गांव में आग लग गई। काफी देर बाद जब आग शांत हुई तो लोगों ने देखा, सबके घर जल गए लेकिन बुढ़िया माई का घर सुरक्षित है। यह देखकर सब लोग उसके घर गए और पूछने लगे, माई ये चमत्कार कैसे हुआ? सबके घर जल गए लेकिन तुम्हारा घर सुरक्षित कैसे बच गया?
बुढ़िया माई बोली, मैं बास्योड़ा के दिन शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाती हूं और उसके बाद ही भोजन ग्रहण करती हूं। माता के प्रताप से ही मेरा घर सुरक्षित बच गया। गांव के लोग शीतला माता की यह अद्भुत कृपा देखकर चकित रह गए। बुढ़िया माई ने उन्हें बताया कि हर साल शीतला षष्ठी के दिन मां शीतला का विधिवत पूजन करना चाहिए, उन्हें ठंडे पकवानों का भोग लगाना चाहिए और पूजन के बाद प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। पूरी बात सुनकर लोगों ने भी निश्चय किया कि वे हर शीतला षष्ठी पर मां शीतला का पूजन करेंगे, उन्हें ठंडे पकवानों का भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करेंगे।