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Shukra Pradosh Vrat साल का आखिरी प्रदोष व्रत, सर्वार्थ सिद्धि योग में ऐसे करें महाकाल की पूजा

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आज साल का आखिरी दिन और आखिरी प्रदोष व्रत है। इस दिन विशेष रूप में माता पार्वती और भोलेनाथ की पूजा की जाती है। पूरे साल में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं। शुक्रवार के दिन पड़ने के कारण इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। प्रदोष का दिन जब सोमवार को आता है तो उसे सोम प्रदोष कहते हैं, मंगलवार को आने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं और जो प्रदोष शनिवार के दिन आता है उसे शनि प्रदोष कहते है। इस व्रत को करने से विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि होती है। ज्योतिष पति की लंबी आयु हेतु शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह देते हैं। आइये जानते हैं प्रदोष व्रत की पूजा विधि और मुहूर्त-

 

पूजा मुहूर्त

पौष, कृष्ण त्रयोदशी

प्रारम्भ- 10:39 ए एम, दिसम्बर 31

समाप्त- 07:17 ए एम, जनवरी 01

 

इस बार का प्रदोष व्रत बहुत ही उत्तम है क्योंकि सर्वार्थ सिद्धि योग प्रदोष पूजा काल में भी रहेगा। यह योग सभी कार्यों को सफल करने वाला माना जाता है। आप जिस भी मनोकामना से व्रत रखेंगे, वह पूर्ण होगा। प्रदोष व्रत के दिन शिव पूजा का मुहूर्त शाम को 05:35 बजे से रात 08:19 बजे तक है।

 

प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष व्रत के एक दिन पूर्व से ही तामसिक भोजनों का त्याग कर देना चाहिए। मन, तन और वचन से शुद्ध होना चाहिए।

प्रदोष व्रत को प्रात:काल में स्नान आदि करके निवृत हो जाएं और फिर साफ कपड़े पहन लें। उसके बाद हाथ में जल लेकर प्रदोष व्रत एवं शिव पूजा का संकल्प करें।

इसके बाद दैनिक पूजा करें। इसमें भगवान शिव की भी आराधना कर लें। दिनभर फलाहार करें और भक्ति भजन करें।

प्रदोष व्रत के दिन पूजा मुहूर्त शाम को 05:35 बजे से रात 08:19 बजे तक है। इस समय में आप किसी शिव मंदिर में जाएं या फिर घर पर ही भगवान शिव को गंगाजल और गाय के दूध से अभिषेक करें।

इसके बाद उनको सफेद चंदन लगाएं। फिर बेलपत्र, भांग, धतूरा, फूल, फल, शहद, धूप, दीप, गंध, वस्त्र आदि अर्पित करें। इस दौरान ओम नम: शिवाय मंत्र का उच्चारण करते रहें।

अब शिव चालीसा और प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें। फिर अंत में भगवान​ शिव का घी के दीपक या कपूर से आरती करें।

पूजा समापन के अंत में जिस भी मनोकामना से आपने व्रत रखा है, वह भगवान शिव के समक्ष व्यक्त कर दें। फिर दान दक्षिणा दें।

अगर आप रात में ही पारण करते हैं, तो पारण करके व्रत को पूरा करें। अगले दिन पारण करते हैं, तो अगले दिन सुबह स्नान आदि के बाद पारण कर लें।

 

प्रदोष व्रत की कथा

प्राचीन समय की बात है। एक ब्राम्हणी पति की मृत्यु के बाद अपना पालन-पोषण भिक्षा मांगकर करती थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांग कर लौट रही थी, तो उसे रास्ते में दो बालक रोते मिले। उन बालकों को देखकर ब्राम्हणी को दया आ गई। वह उन बालकों के पास जाकर बोली-तुम दोनों कौन हो? और कहां से हो? तुम्हारे माता-पिता कौन हैं? लेकिन बालक ने कोई उत्तर नहीं दिया। यह देख ब्राम्हणी बालकों को अपने घर ले आई। जब दोनों बालक बड़े हुए, तो एक दिन ब्राह्मणी दोनों बालक को लेकर ऋषि शांडिल्य के आश्रम गई।

जहां ऋषि शांडिल्य ने कहा-हे देवी! ये दोनों बालक विदर्भ के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनके पिता का राज-पाट छीन गया है। उस समय से ये बालक बेघर हो गए हैं। तब ब्राह्मणी ने पूछा-हे ऋषिवर इनका राज-पाट वापस कैसे मिलेगा? आप कोई उपाय बताने का कष्ट करें। तब ऋषि शांडिल्य ने उन्हें प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि के कहे अनुसार, ब्राह्मणी और राजकुमारों ने विधिवत प्रदोष व्रत किया। कालांतर में एक दिन बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई, दोनों एक दूसरे को चाहने लगे।

उस समय अंशुमती के पिता ने राजकुमार की सहमति से दोनों की शादी करा दी। इसके बाद दोनों राजकुमार ने गंदर्भ सेना पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में अंशुमती के पिता ने राजुकमारों की मदद की थी। युद्ध में गंदर्भ नरेश की हार हुई। इस वजह से राजकुमारों को पुनः विदर्भ का राज मिल गया। तब राजकुमारों ने गरीब ब्राह्मणी को भी अपने दरबार में विशेष स्थान दिया। प्रदोष व्रत के पुण्य-प्रताप से ही राजुकमार को अपना राज पाट वापस मिला और ब्राम्हणी के दुःख दूर हो गए। अत: प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है।

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