राजस्थान का भीलवाड़ा ज़िला। ज़िला मुख्यालय से 14 किलोमीटर दूर ऐतिहासिक मांडल तालाब की पाल पर स्थापित अर्द्ध चंद्राकर धरातल । यहां से ढाई फीट ऊंचे पत्थर के बीचों बीच बने बिंदिया नुमा आठ इंच वर्गाकार छेद। इसी छेद से दुबले पतले और कुपोषण के शिकार बच्चों को आरपार निकालने की मान्यता है। मान्यता है कि ऐसा करने से कुपोषित बच्चे ठीक हो जाते हैं। वहीं,आस्था और विश्वास के नाम पर यहां लोग नारियल, अगरबत्ती के साथ गेहूं और मक्का के दाने चढ़ाते हैं औऱ बच्चे के पहने हुए कपड़े यहां उतार कर पेड़ की डाल पर बांध दिये जाते हैं।
आस्था औऱ अंधविश्वास में फर्क़ को समझने वाले शिक्षित और अशिक्षित लोगों को भी भीलबाड़ा के बिंदिया भाटा का वह स्थल अपनी ओर आकर्षित करता है।आपको जानकर हैरानी होगी कि जब एक पढ़ा लिखा व्यक्ति भी इस अंधविश्वास को बीमारी से छुटकारा पाने की मशीन समझता है। उनका मानना है कि कुपोषित बच्चों को इस पत्थर के छेद से सात बार आरपार निकालने मात्र से बच्चे स्वस्थ हो जाते हैं, औऱ उनका कुपोषण ठीक हो जाता है।
मगर यह सच नहीं है। मेडिकल साइंस कहता है कि शिशु जब मां के गर्भ में होता है और मां का खान पान ठीक से नहीं होता, तो होने वाले शिशु पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। जैसे कि बच्चों में आयरन ,विटामिन और पोषक तत्वों की कमी हो जाती है,औऱ बच्चे कुपोषित हो जाते हैं।लिहाजा ऐसे बच्चों को किसी किसी नीम हक़ीम या अंधविश्वास के चक्कर में ऐसा कुछ न करें, जिससे बच्चों के जान पर आ जाय। ऐसे कुपोषित बच्चों को फ़ौरन किसी शिशु रोग विशेषज्ञ के पास ले जाकर उसका इलाज़ करवाने की ज़रूरत है, न कि किसी अंधविश्वास के बड़ी छेद से गुज़ारने की ज़रूरत होती है।
इंडिया नैरेटिव के ज़रिए इस ख़बर का मक़सद सिर्फ़ इतना है कि ऐसे अंधविश्वास को सिरे से नकारे जायें और कुपोषण के शिकार बच्चों का मुकम्मल इलाज कराया जाए।