आज वरद चतुर्थी है। पौष माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को वरद चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश जी पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन जो लोग व्रत रखते हैं और गणेश जी मंत्रों का जाप करते हैं धार्मिक मान्यता है कि जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से भगवान गणेश की पूजा-उपासना करते हैं, उस व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सभी समस्याओं का अंत भी हो जाता है। गणेश जी की कृपा से सभी ओर शुभता होती है और भाग्य में वृद्धि होती है। भगवान श्रीगणेश के साथ चंद्रमा की भी पूजा की जाती है और व्रत किया जाता है। चलिए आपको बताते है इस व्रत से जुड़ी खास बातें…
वरद गणेश चतुर्थी व्रत का शुभ मुहूर्त
आज दोपहर 2 बजाकर 34 मिनट पर शुरू होगा और 6 जनवरी दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर समाप्त होगी।
पूजन का समय 6 जनवरी 11 बजकर 15 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक है।
इसके अलावा, चौघड़िया मुहूर्त में भी गणपति बप्पा की पूजा-अर्चना की जा सकती है।
वरद चतुर्थी पूजा विधि
वरद चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। आमचन कर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद पीले वस्त्र धारण करें। इसके बाद पंचोपचार कर भगवान गणेश की पूजा करें और फल, फूल और मोदक अर्पित करें। दिनभर गणेश जी के लिए उपवास रखें। मान्यता है कि दूर्वा और मोदक अर्पित करने से भगवान गणेश जी की कृपा प्राप्त होती है। पूजन के दौरान इस बात का ध्यान रखें कि दूर्वा गणेश जी के मस्तक पर अर्पित करें। ऐसा करने से गणेश जी बहुत जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। व्रती व्रत के दौरान दिन में एक फल और एक बार जल ग्रहण कर सकते हैं। शाम में आरती के बाद फलाहार करें। अगले दिन पूजा पाठ करने के बाद ही ब्राह्मणों को दान दें और व्रत का पारण करें।
वरद गणेश चतुर्थी की कथा
श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिये चौपड़ खेलने को कहा। शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?
उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया।
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बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।' यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं। एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेशजी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा से गणेशजी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। उस पर उस बालक ने कहा- 'हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों।
तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई। तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।