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Yashoda Jayanti 2022: यशोदा जयंती आज, निसंतान दंपत्ति जरूर रखें व्रत, कथा के बिना अधूरी है पूजा, देखें उपाय

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आज यशोदा जयंती है। हर साल यशोदा जयंती फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इस दिन माता यशोदा की पूजा-उपासना की जाती है। यह दिन भगवान श्री कृष्ण की मैया यशोदा के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। आज के दिन ही भगवान कृष्ण की पालनहार मां यशोदा का जन्म हुआ था। इस दिन भक्त भगवान श्रीकृष्ण और माता यशोदा की विधि-विधान से पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन उपवास रखने से संतान प्राप्ति की कामना रखने वालों को लाभ होता है। साथ ही गृहक्लेश से मुक्ति मिलती है। चलिए आपको बताते है कि यशोदा जयंती के महत्व, पूजा विधि, उपाय और कथा-

 

यशोदा जयंती महत्व-

यशोदा जयंती पर माताएं उपवास रख संतान के सुख के लिए मंगलकामनाएं करती हैं। मान्यता है कि इस दिन संतान सुख से वंचित लोग अगर माता यशोदा का व्रत रखकर विधिपूर्वक पूजा करते हैं, उन्हें भी संतान सुख प्राप्त हो जाता है। कहा जाता है कि माता यशोदा नाम ही यश और हर्ष देने वाला है, जिसके चलते इस व्रत को रखने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनके जीवन की कठिनाइयों में कमी आती है।

 

यशोदा जयंती पर करें ये उपाय

मान्यता है कि यशोदा जयंती के दिन गेहूं से भरा तांबे का कलश कृष्ण मंदिर में चढ़ाने से लाभ होता है। कहते हैं कि गृहक्लेश से मुक्ति पाने के लिए माता यशोदा और श्री कृष्ण पर चढ़ी मौली घर के मेन गेट पर बांधना चाहिए। यशोदा जयंती के दिन दान-पुण्य करना शुभकारी माना जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने से जीवन में आने वाले सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। माना जाता है कि यशोदा जयंती के दिन घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक या फिर ॐ बनाने से नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है।

 

यशोदा जयंती पूजन विधि

प्रातः काल स्नान आदि कर मां यशोदा का ध्यान करते हुए भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति सामने रखकर दीपक जलाएं। मां यशोदा जी के नाम की लाल चुनरी पूजा स्थल पर कलश पर रखें। मां को मिष्ठान और भगवान कृष्ण को मक्खन का भोग लगाएं। गायत्री मंत्र के जाप के साथ भगवान विष्णु की आरती करें। अंत में मन ही मन अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।

 

यशोदा माता की कथा

सनातन शास्त्रों में निहित है कि द्वापर युग में एक बार ने भगवान विष्णु जी की कठिन भक्ति और तपस्या कर उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त करने की कामना की। मैया यशोदा की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने दर्शन देकर कहा-द्वापर युग में ही आपकी इच्छा पूर्ण होगी। यह उस समय होगा। जब मैं भगवान श्रीकृष्ण के रूप में वासुदेव जी के घर जन्म लूंगा। कालखंड में मेरा पालन-पोषण आपके और नंदबाबा के जरिए होगा। भगवान विष्णु जी के कथनों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म मैया देवकी के गर्भ से कंस के कारागर में हुआ। कंस को पता था कि देवकी की संतान हाथों उसका वध होगा। इसके लिए कंस हमेशा देवकी के पुत्र और पुत्री का वध कर देता था।

यह जानकर देवकी और वासुदेव ने भगवान श्रीकष्ण को मैया यशोदा के घर छोड़ आया था। मैया यशोदा भगवान को पुत्र रूप में प्राप्त कर धन्य हो गई। कालांतर में भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा को खूब सताया था। जब कभी भगवान को अवसर मिलता था, माखन खा जाते थे। इसके लिए कृष्ण कन्हैया को माखनचोर भी कहा जाता है। मैया यशोदा ही नहीं, बल्कि गोपियां भी भगवान श्रीकृष्ण से परेशान रहती थी। एक बार की बात है। जब भगवान कृष्ण जी ने मिट्टी खा ली थी। उस समय मैया ने डांटकर कृष्णजी को मुख खोलने की सलाह दी। मैया की डांट का सम्मान कर भगवान श्रीकृष्ण ने मुंह खोला, तो मैया कृष्ण जी के मुख में देखकर हैरान हो गई। भगवान श्रीकृष्ण के मुख में समस्त ब्रह्माण्ड व्याप्त था। तदोपरांत, भगवान विष्णु जी ने प्रकट होकर मैया यशोदा को स्मरण दिलाया कि वह साधारण बालक मैं ही हूं। भगवान श्रीकृष्ण की लीला अपरंपार है।