जेलेंसकी की सुरक्षा के लिए सील कमाण्डो
रूस-यूक्रेन जंग के 17वें दिन बड़ी खबर सामने आई है। यूक्रेन को युद्ध की आग में झौंकने के बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने बार-बार जेलेंसकी को मदद देने का वादा किया। फिर केवल हथियार और मानवीय सहायता तक सीमित हो गए। राष्ट्रपति बाइडन बूट्स ऑन ग्राउंड न भेजने का ऐलान किया। बूट्स ऑन ग्राउंड मतलब यूक्रेन की मदद के लिए सैनिक सहायता से इंकार करना था। इसके बाद यूक्रेन को कहा कि हम फाइटर जेट भेज रहे हैं। पोलैण्ड ने एफ 16 के बदले यूक्रेन को सुखोई जेट देने की घोषणा कर दी।इस ऐलान के गंभीर नतीजे भुगतने की रूस ने चेतावनी दी तो अमेरिका और पोलैण्ड ने दोनों ने दुम दवा ली। इसी बीच अमेरिका और ब्रिटेन जेलेंसकी को उकसाते रहे कि वो किसी तरह कीव छोड़कर भाग जाएं। खबरें तो यह भी हैं कि 250 से ज्यादा अमेरिका के सील कमाण्डो अब भी पोलैण्ड में मौजूद हैं। ताकि जैसे ही जेलेंसकी कीव छोड़कर भागने राजी हों वैसे ही सील कमाण्डो उनकी सुरक्षा के लिए पहुंच जाएं।
नाटो और अमेरिका से नाराज जेलेंसकी
जेलेंसकी ने न केवल कीव छोड़ने से इंकार कर दिया है बल्कि आर्थिक और हथियारों की मदद के बाद भी अमेरिका और यूरोप के कुछ नेताओं के फोन उठाने बंद कर दिए हैं। अमेरिका ने जेलेंसकी को मनाने के लिए अपने कई सहयोगियों के माध्यम से जेलेंसकी पर दबाव बनाया। लेकिन जेलेंसकी टस से मस न हुए। इसके बाद अमेरिका ने अपने सैनिक और रणनीतिक सहयोगी इजरायल के प्रधानमंत्री नफताली को कीव भेजा। नफताली ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से भी मुलाकात की थी। नफताली की मुलकात भी जेलेंसकी पर कोई असर नहीं डाल पाई। भारत के प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों का नतीजा इतना हुआ कि रुक-रुक कर युद्धविराम पर दोनों देश राजी हुए। जिससे जंग में फंसे आम नागरिकों और विदेशियों को यूक्रेन छोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर जाने का मौका मिल गया।
जेलेंसकी को सरेंडर का नफ्ताली का संदेश
जेलेंसकी को झुकाने की सभी कोशिशों में नाकाम अमेरिका अब अप्रत्यक्ष तौर पर चाल चलने लगा है। जंग के 17वें दिन इजराइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली ने जेलेंसकी को संदेश दिया है कि पुतिन की मांगों को मान लिया जाए और युद्ध बंद करवा दिया जाए। यह शब्द केवल नफ्ताली के लिए नहीं अमेरिका के हैं। जो कूटनीतिक तरीकों से उसने इजराइल के मुंह से कहलवाएं हैं। जंग में अमेरिकी या नाटो फौज न भेजने के बजाए रूस पर आर्थिक प्रतिबंध बढ़ाते जा रहे अमेरिका और यूरोप को समझ में आने लगा है कि रूस के साथ-साथ उन पर भी इन प्रतिबंधों का बड़ा असर होने जा रहा है। रूस से तेल और गैस आयात पर प्रतिबंध लगाने का सबसे ज्यादा असर अमेरिका पर तत्काल पड़ा है। अब रूस से डॉलर में व्यापार न करने का असर अमेरिका पर ही सबसे ज्यादा पड़ रहा है। रूस और उसके सहयोगियों ने डॉलर का विकल्प चुनने का फैसला किया है। इससे यह डर पैदा हो गया है कि अगर ये प्रतिबंध ज्यादा दिन तक चला तो डॉलर की कीमत दुनिया में काफी गिर जाएंगी।
रूस ही नहीं अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी संकट
रूस की आर्थिक रीढ़ तोड़ने चले बाइडन को अब अमेरिका की अर्थव्यवस्था को बचाने की चुनौती नजर आने लगी है। इसके अलावा यूक्रेन की बायो लैब्स में बन रहे हथियारों की जानकारी भी दुनिया के सामने खुल कर आ जाएगी। हालांकि अभी तो रूस के दावों को फर्जी बताया जा रहा है लेकिन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की कीव को चेतावनी से अमेरिका शक के दायरे में घिर गया है। अमेरिकी थिंक टैंक को अहसास होने लगा है कि आर्थिक और सैन्य मोर्चे दोनों पर नाटो ही नहीं बल्कि अमेरिका को ज्यादा नुकसान हो सकता है। इसलिए बाइडन ने इजराइली प्रधानमंत्री नफ्ताली के जरिए जेलेंसकी पर दबाव डाला है कि वो पुतिन के सामने सरेंडर कर दें और युद्ध को रोक दें।
जेलेंसकी के सामने एक तरफ खाई दूसरी ओर खंदक
जंग के 17वें दिन हालात यह हैं कि यूक्रेन 80 फीसदी से ज्यादा बर्बाद हो चुका है। कीव के अलावा एक दो शहर ही शायद ऐसे बचे हैं जहां थोड़ा-बहुत कुछ बचा हुआ है। नाटो और अमेरिका के पीठ दिखाने के बाद जेलेंसकी अकेले पड़ गए हैं। जांबाजी के वीडियो जारी करने वाले जेलेंसकी अगर अब आकर सरेंडर करते हैं तो उनसे सवाल किया जाएगा कि अगर सरेंडर करना ही था तो सब कुछ गंवाने और हजारों लोगों की मौत के बाद क्यों सरेंडर किया। पहले ही पुतिन की बात मान ली होती तो न यूक्रेन बर्बाद होता न हजारों निर्दोष मारे जाते। जेलेंसकी के सामने इस समय एक तरफ खाई तो दूसरी ओर खंदक है। अगर वो जान बचाकर भागने का फैसला लेते हैं तो शायद 20 फीसदी यूक्रेन और कीव बच जाए और रूस से बदला लेने का मौका उन्हें मिल जाए। इस जंग में अगर वो मारे जाते हैं तो उनके साथ उनके सपनों का भी अंत हो जाएगा। अगर वो रूस के सैनिकों के हाथ पकड़े जाते हैं तो युद्ध अपराधी बन जाएंगे और यूक्रेन की सत्ता भी हाथ से जा सकती है।