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धर्म जिसे फ़र्ज़ सिखाना था,उसे फ़र्ज़ के जिबह का हथियार बना लिया गया।

Jerusalem स्थित अल-अक्सा मस्जिद

Jerusalem :ख़ालिस बहुत ज़्यादा पढ़ाई लिखाई हमारे भीतर मूर्खता,संकीर्णता और चालाकी पैदा कर देती है, आम लोगों से कहीं ज़्यादा अंधविश्वास और कर्मकांड से ओतप्रोत धार्मिक बना देती है,अतीत की मान्यताओं के साथ हामरे सोचने की ताक़त के बीच फेविकॉल पैदा कर देती है।  वहीं ऑबजर्वेशन और गहरा सोच-विचार हमारे भीतर वैज्ञानिक सोच का मनुष्य पैदा कर देता है।इतिहास,मिथ दोनों के आइने से मनुष्य जाति की जो शक्ल प्रतिबिंबित होती है,उससे तो यही लगता है कि ज़्यादातर लोग मुट्ठीभर वैज्ञानिक और मुट्ठी भर अवैज्ञानिक सोच के मनुष्य की सीमा रेखा पर खड़े होते हैं।दोनों ताक़तों के पलड़े के वज़न से तय होता रहता है कि वे इधर जायें,उधर जायें या फिर किधर जायें।

लेकिन,धार्मिक लोग किसी ब्लर लाइन पर खड़े नहीं होते,उनमें पक्ष चुनने का संशय बिल्कुल नहीं होता,क्योंकि संशय तो हमें आपको आख़िरकार विज्ञान की तरफ़ ले जाता है और विज्ञान पाखंड के लिहाज़ से धार्मिक होने का शत्रु है।मगर,यह शत्रुता यहूदियों,मुसलमानों और इसाइयों की उस नफ़रत की तरह नहीं,जो Jerusalem के “पवित्र स्थल” में सदियों से  खूनी खेल का “अपवित्र युद्ध” खेल रही है।

यहूदियों और इसाइयों के अब्राहम और मुसलमानों के इब्राहीम एक ही शख़्स हैं और वह दोनों के पैग़म्बर हैं।इनसे जुड़ी कहानियां भी कमोवेश एक हैं। पैग़म्बर अब्राहिम या इब्राहिम की बीवियों-हाज़रा और सारा की संतानों की कहानियां थोड़ी अलग हो जाती है और यही थोड़ी अलग होतीं कहानियां, यहूदियों,इसाइयों और मुसलमानों के बीच का ऐसा गहरा विवाद बन जाती है,जिसके साथ इज़राइल, फ़िलीस्तीन और इनसे जुड़े विवाद और संगठन का वजूद का क़िस्सा और हक़ीक़त जुड़ जाते हैं।

ईश्वर की भक्ति और प्रतिबद्धता को दिखाने की यह कहानी लगभग सभी धर्मों की माइथोलॉजी,या कथित आसमानी किताबों में है कि पैग़म्बरों या भक्तों ने ईश्वर की ख़ुशी राज़ी के लिए अपने बेटों (बेटियों की नहीं) की बलि दे दी या देने की कोशिश करते हुुए उन्हें रोक दिया गया या कटे हुए बेटों को फिर से ज़िंदा कर दिया गया। पैग़म्बर अब्राहम या इब्राहिम की कहानी भी कुछ ऐसी ही है।

प्रोमिश लैंड बना इज़राइल

इसाई और यहूदी यही मानते हैं कि पहली पत्नी सारा से पैदा हुए पैग़म्बर ऐज़ाक़ को अब्राहिम ने येरुसलम(Jerusalem) की उस पहाड़ी पर बलि देने की कोशिश की थी,जिसे इसाई या यहूदी होली माउंटेन कहते हैं।ग़ौरतलब है कि आइज़ैक़ की जगह एक जानवर ने ले ली,जानवर इंसान के बदले क़त्ल कर दिया गया और आइज़ैक़ का बचा ले जाना इस बात का प्रतीक बन गया कि अब्राहम अपने बेटे से कहीं ज़्यादा ईश्वर से प्यार करते हैं। लगभग साढ़े नौ सो ईसा पूर्व होली माउंटेन के उसी पत्थर को केंद्र में रखकर यहूदियों ने सिनेगॉग या मंदिर या पूजा स्थल बन दिया। यहूदियों की धार्मिक मान्यता के हिसाब से यही वह इलाक़ा था,जिसे  ईश्वर ने आइज़ैक़ को देने का वादा किया था। वादा यानी प्रोमिश,यही वजह है कि यह प्रोमिश लैंड कहलाया। यही प्रोमिश लैंड दरअस्ल इज़राइल है।

उल्लेखनीय है कि पैग़म्बर डेविड या दाऊद के बेटे पैग़म्बर सोलेमन या सुलेमान ने ही 957 ईपू में यहूदियों के इस मंदिर का निर्माण कराया था। ये दोनों पैग़म्बर इस्लाम के भी पैग़म्बर हैं।लेकिन,पहली बार इस सिनेगॉग को 587 ईपू में बेबीलोन के राजा द्वारा नुक़सान पहुंचाया गया।

क्या है अल अक्सा मस्जिद का इतिहास?

यहूदियों के इस पूजा स्थल को लेकर पैग़म्बर मुहम्मद के निधन के पांच साल बाद एक नया मोड़ आया। ख़लीफ़ा उमर के नेतृत्व में मुसलमानों ने उस पर हमला कर दिया और छ: महीने की घेरेबंदी के बाद अपने कब्ज़े में ले लिया। उनका दावा था कि पैग़म्ब अल अक्सा मस्जिद र मुहम्मद अपने निधन से छ: साल पहले उसी पत्थर से आसमान के लिए सफेद घोड़ों पर अपनी उड़ान भरी थी।इसलिए वह पवित्र भूमि मुसलमानों की है। उमर ने उस सिनेगॉग  को तबाह कर दिया और उसकी जगह लकड़ी की मस्जिद की नींव रख दी,वही मस्जिद आजकल अल अक्सा मस्जिद के रूप में जानी जाती है। कभी-कभी इसे अल हरम भी कहा जाता है।

ज़ाहिर है कि यहूदियों और इसाइयों के हाथ से सिर्फ़ होली माउंटेन ही नहीं गया,बल्कि दोनों को वहां से पलायन भी करना पड़ा।इसाई यूरोप में फैल गये और यहूदी दुनिया भर में जहां जगह मिली,चले गए।हालांकि,उनके 12 कबीलों में से 2 कबीलों के यहूदी तमाम ज़ुल्म के वावजूद वहीं टिके रहे।

इसाई यूरोप में जैसे ही मज़बूत हुए,उन्हें अपने ईसा मसीह के समाधि स्थल की याद आयी,जो उसी परिसर में थी,जिस पर अब मुसलमानों का कब्ज़ा था। छ:लाख ईसाई इकट्ठे हुए और यहूदियों से हिकारत करते हुए ऐलान कर दिया कि वह उस  मुसलमानों से उस पवित्र भूमि को आज़ाद कराने के लिए धर्मयुद्ध या क्रूसेड लड़ने जा रहा है। सबके सब येरूसलम की तरफ़ कूच कर गये। सात क्रूसेड 1095 से लेकर 1291 तक लड़े गये।येरूसलम मुसलमानों और इसाइयों के बीच चल रहे क्रुसेड यानी महाभारत का युद्धस्थल यानी कुरुक्षेत्र बन गया।लगभग दो सौ साल चले इस धर्म युद्ध में यहूदी इसाइयों के ज़ुल्म-ओ-सितम का इसलिए शिकार हुआ,क्योंकि ईसा के सलीब पर चढ़ाए जाने के ज़िम्मेदार थे !और यही वे साल थे,जब मुसलमानों के कब्ज़े के दौर में भी बचे खुचे यहूदी येरूसलम ख़ाली कर दुनिया भर की व्यवस्थाओं के हिस्सा हो गए।

वैश्विक मानवतावाद पर आधारित रही है भारत की विदेश नीति

यहूदियों पर ज़ुल्म यहीं नहीं रूका,हिटलर के दौर में भी वह नस्लवाद की तलवार पर शान चढ़ाने का काम आता रहा,लाखों यहूदी मारे गए।इस त्रिपक्षीय संघर्ष में फ़िलीस्तीन भी लगातार पीसता रहा है,उसकी ज़मीन उसके हाथ से निकलती रही है,क्योंकि वह एक स्वतंत्र एंटीटी था,मगर उसे मुसलमान की तरह पेश किया जाता रहा है।मुसलमानों से इतर फ़िलीस्तीनियों की चर्चा क़ुरान सहित तक़रीबन हर अब्राहमिक धर्म ग्रंथ में बतौर एक स्पेशल एंटीटी है।यही वजह है कि लम्बे समय तक भारत की विदेश नीति में वह सहानूभूति का पात्र  रहा,क्योंकि भारत की विदेश नीति धर्म पर नहीं, वैश्विक मानवतावाद पर आधारित रही।

दुनिया का परिदृश्य तेज़ी से बदल रहा है। ग्लोबल सुपरमेसी और इस्लामिक डोमिनेशन का चक्र तेज़ी से घूम रहा है। एक को चीन लपक लेने को आतुर है,दूसरे को तुर्की। इन दोनों के पीछे अनगिनत गुप्त और रणनीतिक समझौते आकार और निराकार हो रहे हैं।

मन है कि आधुनिकतम होने को मचल रहा है,दिल है कि धर्म के लिए दीवाना हुआ जा रहा है और दिमाग़ है कि हर वक़्त यह याद दिलाता है कि सोच-कॉसस,सबकॉसस दोनों ही में वैज्ञानिक बनो,क्योंकि हमारे होने और बढ़ने का इतिहास बताता है कि धार्मिक पहचान को गहरा करने की ज़िद ने हमें नष्ट होने की राह पर धकेल दिया है,जो ज़रूरत पड़ने पर उस विज्ञान को भी तबाही के हथियार बना लेने से नहीं चूकती,जिसने हमें पत्थरों के खोह से निकालकर चमचमाती इमारतों,मेट्रो,हवाई जहाज़ों और 5G की ध्वनिकी और प्रकाशिकी में दाखिल करा दिया है। कान या आंख मूंद लेने पर यह ध्वनिकी और प्रकाशिकी बेमानी हो जाती है,इसलिए ज़रूरी है कि आँख कान खुले रहें ताकि धर्म(वाजिब) अधर्म(ग़ैर वाजिब) के बीच के फर्क़ में स्पष्टता रहे और पक्ष चुनने में सहूलियत रहे।

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