महाराष्ट्र और महाभारत, उद्धव और धृतराष्ट्र…!
उद्धव ठाकरे का यूं तो महाभारत या कुरुक्षेत्र से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन उनके जीवनशैली से धृतराष्ट्र के कई गुण मिलते हैं। जानकार समझ गए होंगे, विश्लेषण में जाने की आवश्यकता नहीं। फिर भी जो न समझें हों वो जान लें कि हस्तिनापुर के सिंहासन पर पहला अधिकार धृतराष्ट्र का ही होना चाहिए था, किंतु जन्मांध होने के कारण पाण्डु को राज्य मिला। धृतराष्ट्र के मन में यही ग्रंथि बनी रही। भीतर ही भीतर क्रोध था। धृतराष्ट्र के मन में। इसलिए जब अवसर युवराज के चयन का आया तो उन्होंने हस्तिनापुर के सारे नियमों-विधियों को किनारे रखते हुए पाण्डु पुत्रों को उनके राज्य का अधिकार नहीं दिया। सुयोधन (दुर्योधन) को युवराज बना दिया। यहीं से हस्तिनापुर के पतन की कहानी शुरू हो गई।
सोनिया सेना के सामने बाला साहेब के शिव सैनिक पीते रहे विष प्याला
महाराष्ट्र की कहानी भी कुछ-कुछ हस्तिनापुर जैसी चल रही है। पुत्र मोह में उद्धव कुछ भी करने को तैयार हैं। बाला साहेब के जमाने में उद्धव जिन शिवसैनिको के सामने बैठ भी नहीं सकते थे, वो शिवसैनिक अब उद्धव के बगल में बैठे कैबिनेट मंत्री बेटे आदित्य के सामने हाथ बांधकर खड़े रहने को मजबूर रहे। राज ठाकरे की बगावत के बाद बाला साहेब ने भले ही उद्धव को अपना युवराज घोषित कर दिया था, लेकिन आज तक उद्धव में बाला साहेब जैसी दृष्टि उत्पन्न नहीं हो पाई। नेतृत्व क्षमता तो आज तक नहीं। बाला साहेब की विलक्षण राजनीतिक सामने उद्धव शून्य हैं। फिर भी शिवसैनिकों ने उन्हें अपनाया। शिवसेना को सोनिया सेना बना दिए जाने के विष को भी शिवसैनिकों ने पी लिया। लेकिन बाला साहेब के साथियों को आदित्य जैसे प्रतिभा शून्य-व्यक्तित्व शून्य और संज्ञा शून्य के आगे आत्मसम्मान की बलि चढ़ाना शिवसैनिकों को स्वीकार नहीं था।
शिव सैनिकों को गुस्से का गुबार फूट पड़ा, कर दी खुली बगावत
यही कारण है कि शिवसैनिकों के मन में भर रहा गुस्से का गुबार फूट पड़ा और एकनाथ शिंदे और उनके 35 समर्थकों ने उद्धव के खिलाफ खुली बगावत कर दी। अभी तक कि परिस्थितियों के मुताबिक एकनाथ शिंदे बाला साहेब की शिव सेना के सैनिक हैं। हिंदुत्व उनकी मुख्य विचारधारा है। एकनाथ शिंदे ने कहा है कि उद्धव अपने प्राकृतिक सहयोगी बीजेपी के साथ सरकार बनाने के लिए तैयार होते हैं तो घर वापसी के लिए तैयार हैं। सवाल यह है कि जिस कांग्रेस के आगे उद्धव-आदित्य समर्पण कर चुके हों, वो महाअघाड़ी से बाहर कैसे निकलेंगे। उद्धव ने महाराष्ट्र में अभी तक अल्पसंख्यकों के नाम पर मुसलमान और कांग्रेस का तुष्टिकरण किया है। मुख्यमंत्री बने रहने के लिए कदम-कदम पर बाला साहेब के सिद्धांतों की बलि चढ़ाई हो वो उद्धव एकनाथ शिंदे के आग्रह को कैसे स्वीकार कर सकते हैं।
महाराष्ट्र से गुजरात, और अब गुवाहाटी पहुंचे शिवसेना के विधायक, उद्धव को हवा तक नहीं लगी
आपको याद तो होगा ही उद्धव खुद मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते थे, वो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आदित्य को बैठाना चाहते थे। सोचिए कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बेबी पैंग्विन बैठा होता तो उस वक्त शिवसेना और बाला साहेब के महाराष्ट्र का क्या हाल होता?मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव की क्षमता और दूरदृष्टि का अंदाज सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है। 35 शिवसेना विधायक मुंबई से निकल कर सूरत पहुंच जाते हैं और मुख्यमंत्री उद्धव को हवा भी नहीं लगती। पुलिस और गुप्तचर सब सोए रहे। कहा जाता है कि पैंग्विन जासूसी में माहिर होते हैं। महाराष्ट्र की राजनीति के महासागर में उद्धव का पैंग्विन भी फेल हो गया। अरे, पैंग्विन का क्या कहिए, एमएलसी चुनाव में उद्धव खड़े रहे और उनके सामने ही क्रॉस वोटिंग होती रही। इसके बाद भी पिता-पुत्र के दिमाग की बत्ती नहीं जली। उसी का नतीजा है कि सूरत से निकल कर 35 शिवसैनिक विधायकों सहित कुल 42 विधायक गुवाहाटी में हिमंत विस्वा शर्मा की मेहमानदारी में हैं।
महाराष्ट्र की सत्ता पर कौन होगा काबिज, जल्द मिलेगा जवाब!
महाराष्ट्र में अब किसका होगा राज? वर्षा बंग्लो में कौन बैठेगा? उद्धव की शिवसेना पैतृक आवास मातोश्री तक सिमट जाएगी, बाला साहेब की शिवसेना फिर बनेगी क्राउन मेकर? कुछ सवाल महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि देश के बहुसंख्यकों के दीमाग में कौंध रहे होंगे, जिनका जवाब जल्द मिलने की उम्मीद है!