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Taliban की राह चल रहे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को मुस्लिम युवतियों ने मारा तमाचा, करके दिखाया सूर्य नमस्कार!

सूर्य नमस्कार हराम या हलाल!

भारत की सभ्य सोच वाली मुस्लिम युवतियों ने रूढिवादी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सेक्रेटरी के मुंह पर तमाचा जड़ दिया है। नए दौर की इन मुस्लिम लड़कियों ने न केवल खुले आम सूर्य नमस्कार किया बल्कि यह भी बता दिया कि सूर्य नमस्कार से उनके मजहब पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। 

दरअसल, भारत में मुसलमानों के एनजीओ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की देह में तालिबान की आत्मा उतर आई है। इस गैर सरकारी इदारे (एनजीओ) के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने फतवा जारी किया है। इन्होंने कहा है कि सूर्य नमस्कार हराम है। क्यों कि सूर्य नमस्कार सूर्य की पूजा का ही एक रूप है। 

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रहमानी को शायद यह नहीं मालूम कि उन्हें नाकाबिले बर्दाश्त फतवा देने की एनर्जी उसी सूरज से मिल रही है जिसको नमस्कार करने से इंकार कर रहे हैं। सूरज न हो तो, इंसानी हड्डियां धूल के ढेर में बदल जाएं। सूरज न हो तो, न खाने को अन्न मिलेगा न पीने को पानी। फिर भी ये सूर्य नमस्कार को हराम बता रहे हैं। हालांकि, योग-आसन्न में सूर्य नमस्कार एक एक्सरसाइज है न कि कोई पूजा-अनुष्ठान। सूर्य नमस्कार करने से शरीर को ही नहीं बल्कि दीमाग को भी चुस्त-दुरुस्त रखने में मदद मिलती है। सैफुल्लाह रहमानी ने सूर्य नमस्कार किया होता तो शायद वो ऐसी बात कभी न करते।

बहरहाल, भारतीय मुसलमानों को अफगानी तालिबान बनाने की मंशा रखने वाले खालिद सैफुल्ला रहमानी ने आजादी की 75वीं सालगिरह पर देश भर के स्कूलों में चलाए जा रहे सूर्य नमस्कार कार्यक्रम पर बिगड़े बोल की बौछार की है। सैफ़ुल्लाह रहमानी ने फतवे में कहा है कि मुस्लिम छात्र सूर्य नमस्कार न करें। यह पूजा के अनुरूप है इस्लाम में इसकी इजाजत नहीं है। इस बयान के बाद राजनीति गरमा गई है। यूपी सरकार के मंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि बोर्ड लगातार मुसलमानों का शोषण कर रहा है और उन्हें बरगला रहा है।

भारतीय संघ (Union of India) की मोदी सरकार, आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम के तहत स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रही है। भारत सरकार ने देश के सभी स्कूलों को निर्देश दिए हैं कि एक से सात जनवरी तक छात्रों को सूर्य नमस्कार कराया जाए।

इस पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सूर्य नमस्कार से जुड़े भारतीय संघ (Union of India) की मोदी सरकार के आदेश का विरोध किया है। बोर्ड ने कहा है कि मुस्लिम छात्र-छात्राएं इस कार्यक्रम में शामिल होने से बचें क्योंकि सूर्य नमस्कार सूर्य की पूजा का एक रूप है जबकि इस्लाम में इसके लिए अनुमति नहीं है। सैफुल्लाह रहमानी से इत्तेफाक न रखने लाखों मुसलामनों का कहना है कि शरीयत में कहीं भी सूर्य नमस्कार की मनाही नहीं है। कुरान, हदीस यहां तक कि सीरतऔर सुन्नत में भी सूर्य नमस्कार करना हराम है या हलाल नहीं लिखा है। कुरान में सूरज को सिराज (दीपक) कहा गया है, मतलब दुनिया को अंधेरे से निकालकर रोशनी में लाने वाला कहा है। सैफुल्लाह रहमानी को सूर्य नमस्कार के खिलाफ फतवा जारी करने से पहले सोचना तो चाहिए था कि जो दुनिया को अंधेरे से बाहर ला रहा है उसको नमस्कार करने में क्या हर्जा है?

सैफुल्लाह रहमानी, पता नहीं हज-उमरा के लिए गए हैं या नहीं, लेकिन इतना जरूर है कि वो इस्लाम की जन्मभूमि काबा से आने वाली दीनी खबरों पर ध्यान जरूर रखते होंगे। सऊदी अरब के शाह इस्लाम के सबसे बड़े संरक्षक हैं। इस समय सऊदी अरब की बागडोर संभालने वाले क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान का इंटरव्यू भी सैफुल्लाह रहमानी ने सुना और देखा होगा। अगर नहीं देखा और सुना है तो देख और सुन लें कि इस्लाम के सबसे बड़े संरक्षक क्या कह रहे हैं। सैफुल्लाह रहमानी के खानदान की जिल्द निकालकर देखी जाए तो उनके पुरखे हिंदु सनातनी या हिंदवी या हिंदुस्तानी ही रहे होंगे।  सैफुल्लाह रहमानी इस मायने में सऊदी क्राउन प्रिंस से ज्यादा बड़े न तो इस्लाम और कुरान के पैरोकार हो सकते हैं और न ही सऊदियों से ज्यादा बड़े मुसलमान। सऊदी क्राउन प्रिंस ने साफ कहा है कि कुरान में जिन बातों का जिक्र नहीं है उनकी अच्छाई-बुराई आज के परिवेश में देखी जाए फिर उस पर अमल किया जाए।

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सैफुल्लाह रहमानी और उनके चाहने वाले खुद चाहें तो सूर्य नमस्कार करें या न करें। यह उनका व्यक्तिगत मामला है, मगर स्कूली बच्चों को इस्लाम के नाम पर भ्रमित करना और अपनी राय जबरन थोपना गलत है। भारत का संविधान किसी पर भी अपनी राय जबरन थोपने की इजाजत नहीं देता। इसलिए सैफुल्लाह रहमानी, फतवा जारी मत कीजिए, फिक्र कीजिए कि कोरोना काल में सब सेहतमंद रहें। सूर्य नमस्कार जैसी फिजिकल एक्सरसाइज करते रहें।
 

(फतवा जारी करने का अधिकार मुफ्ती को होता है, सैफुल्लाह रहमानी बाकयदा मुफ्ती हैं। सूर्य नमस्कार के बारे में उनका ये लिखित बयान फतवा है भी या नहीं- नहीं पता, लेकिन यहां पर 'फतवा' शब्द सैफुल्लाह रहमानी के (कु)तर्कों को महज ‘वजनदार’ दिखाने के लिए किया है। मुल्ला-मौलवी और मुफ्तियों के लिखित बयान किसी-किसी फतवे से ज्यादा खतरनाक हो जाते हैं कभी-कभी)