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क्यों अटकी हुई है रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस भेजने की योजना ?

रोहिंग्या शरणार्थियों को म्यांमार के मोंगडॉ टाउनशिप (ऊपर) में वापस भेजने की योजना है

सलीम समद

ढाका: दक्षिण-पूर्व बांग्लादेश में अवैध शिविरों में रह रहे लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों ने म्यांमार में एक और शिविर में बसने से इनकार कर दिया है।

शरणार्थियों का म्यांमार लौटने से इंकार करना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। उनका तर्क है कि जब तक म्यांमार उनके नागरिकता अधिकारों, आंदोलन की स्वतंत्रता, आजीविका, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक पहुंच की गारंटी नहीं देता, तब तक यह वापसी आधे-अधूरे मन से की गयी होगी।

रोहिंग्या शरणार्थियों की यह प्रतिक्रिया म्यांमार सरकार द्वारा वर्ष के अंत तक म्यांमार में “अवैध प्रवासियों” के रूप में माने जाने वाले 6,000 रोहिंग्याओं को वापस करने की अचानक पेशकश के बाद आयी है।

प्रत्यावर्तन प्रस्ताव के अनुनय के लिए बांग्लादेश सरकार के अधिकारियों के साथ रोहिंग्या शरणार्थियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में रखाइन राज्य पुनर्वास योजना में मौंगडॉ टाउनशिप और आसपास के गांवों का दौरा किया था।

ये बस्तियां चीन, भारत और जापान की मदद से बनायी  गयी थीं। रहमान कहते हैं, कुल मिलाकर 3,500 रोहिंग्या को 15 गांवों में बसाया जायेगा।

कॉक्स बाज़ार में बांग्लादेश के शरणार्थी राहत और प्रत्यावर्तन आयुक्त (आरआरआरसी), मोहम्मद मिज़ानुर्रहमान, जिन्होंने प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया,उन्होंने कहा कि “प्रत्यावर्तन शरणार्थी संकट को समाप्त करने का एकमात्र समाधान है।”

हालांकि, अपनी वापसी पर उन्होंने म्यांमार प्राधिकरण द्वारा की गयी व्यवस्थाओं और सुविधाओं पर असंतोष व्यक्त किया।

म्यांमार की सरकार नायप्यीडॉ वापस लौटने वालों के नागरिकता अधिकारों पर स्पष्ट रूप से चुप रहती है, लेकिन आश्वासन दिया गया कि रोहिंग्या को एक राष्ट्रीय सत्यापन कार्ड (एनवीसी) दिया जायेगा, जिसके बारे में रोहिंग्या शरणार्थियों का मानना है कि इससे बहुत कम फ़र्क़ पड़ेगा।

1982 के विवादास्पद नागरिकता क़ानून में व्यक्तियों को यह साबित करने की आवश्यकता है कि उनके पूर्वज 1823 से पहले म्यांमार में रहते थे, और रोहिंग्या मुसलमानों को देश के जातीय समूहों में से एक के रूप में मान्यता देने या उनकी भाषा को राष्ट्रीय भाषा के रूप में सूचीबद्ध करने से इनकार करते हैं।

एक शरणार्थी प्रतिनिधि ओली हुसैन का कहना है, “हम पुनर्वास शिविरों में सीमित नहीं रहना चाहते हैं।” उन्होंने बताया कि वे उस एनवीसी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे, जो स्पष्ट रूप से रोहिंग्या को ‘बाहरी’ के रूप में चिह्नित करता है।

बांग्लादेश के अधिकारियों ने शरणार्थियों को लेकर संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग (यूएनएचसीआर) या संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी को भी बताया, जो 1.2 मिलियन रोहिंग्या शरणार्थियों के सुरक्षित, स्वैच्छिक, गरिमापूर्ण और स्थायी प्रत्यावर्तन की वकालत करता है, जो 2017 में एक सैन्य कार्रवाई के बीच जातीय-धार्मिक संघर्ष से भाग गए थे।

अगस्त, 2017 में इस्लामिक जिहादी अराकान रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (एआरएसए) ने म्यांमार बॉर्डर गार्ड्स फोर्स की कुछ चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया था।

नैप्यीडॉ ने कई वर्षों तक रोहिंग्या की वापसी के संबंध में बातचीत करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वे म्यांमार के नागरिक नहीं हैं।

बांग्लादेश ने कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों और अन्य वैश्विक शिखर सम्मेलनों में इस शरणार्थी संकट को उठाया है। विश्व के नेताओं ने एक लाख ‘स्टेटलेस’ रोहिंग्या को भोजन और आश्रय प्रदान करने के लिए बांग्लादेश की नेता शेख़ हसीना की सराहना की है।

दुर्भाग्य से शरणार्थियों को वापस लाने के कई प्रयास 2018 और 2019 में विफल हो गए। इसके लिए बांग्लादेश नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की की अड़ियल नीति को दोषी ठहराया जाता है, जिन्हें फरवरी 2021 में सैन्य नेताओं द्वारा उनकी सरकार को हटाने के मद्देनजर नज़रबंद कर दिया गया था।

अंत में म्यांमार का ‘सदाबहार दोस्त’ चीन पुनर्वापसी पर बातचीत को फिर से शुरू करने के लिए नैप्यीडॉ का समर्थन कर सकता है।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी की इस आपत्ति के बावजूद कि रखाइन राज्य प्रत्यावर्तन के लिए असुरक्षित है, हाल ही में कुनमिंग में बांग्लादेश, चीन और म्यांमार के बीच विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की एक महत्वपूर्ण त्रिपक्षीय बैठक हुई है।

बीजिंग का एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय एजेंडा है और कई मेगा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाएं नैप्यीडॉ के साथ प्रगति पर हैं।

विशेष रूप से ढाका द्वारा हिंद-प्रशांत सुरक्षा धुरी में शामिल होने के लिए इशारा देने के बाद बांग्लादेश और चीन के बीच सम्बन्धों में कुछ हिचकिचाहट सामने आयी हैं।

इसके अलावा, भारत द्वारा आपत्ति जताये जाने के बाद बांग्लादेश ने बंगाल की खाड़ी में गहरे समुद्र के बंदरगाह, तीस्ता नदी पर एक बहुउद्देश्यीय बैराज और कुछ अन्य परियोजनाओं को रद्द कर दिया है।

जबरन प्रवासन पर शोधकर्ताओं ने कहा कि उन्हें इस साल के अंत तक शरणार्थियों के अपने घर लौटने को लेकर अंधेरे में कोई रोशनी नहीं दिखायी दे रही है।