श्रीनगर स्थित पत्रकार और कश्मीरी कार्यकर्ता याना मीर ने कहा कि भारत को सूचना युद्ध और नकारात्मक प्रचार का शिकार बनाया गया है। मीर ने कहा कि यह तब स्पष्ट हो जाता है, जब ग्रेटा थनबर्ग, गायिका रिहाना या यहां तक कि नोबेल पुरस्कार विजेता माला यूसुफ़ज़ई जैसी हस्तियों को भारत के ख़िलाफ़ ट्वीट करने के लिए टूलकिट का समर्थन किया जाता है।
स्वयंभू फैक्ट-चेकर्स पर भारी पड़ते हुए मीर ने कहा कि बिना विश्वसनीयता वाले कई लोगों को फ़ैक्ट चेकर्स या न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट या हफ़पोस्ट जैसे विदेशी प्रकाशनों में भारत से वैध आवाज़ के रूप में प्रचारित किया जाता है।
मीर हाल ही में उदयपुर स्थित थिंक टैंक उसानास फ़ाउंडेशन द्वारा आयोजित महाराणा प्रताप वार्षिक भू-राजनीति संवाद में बोल रहे थे।
कश्मीर के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि यहां तक कि असामाजिक तत्व जो सरकारी कर्मचारियों को धमकाते हैं या आतंकवादियों को शरण देते हैं या उनके बैग में ग्रेनेड रखते हैं, उन्हें भी पत्रकार क़रार दिया जाता है।
इस्लाम का शस्त्रीकरण
इस्लाम के बारे में बात करते हुए मीर ने कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए मध्यकाल से इस्लाम को हथियार बनाया गया है। उन्होंने कहा: “अब्बासियों ने उमय्यद ख़िलाफ़त को उखाड़ फेंकने के लिए अपने शुरुआती वर्षों में एक वैचारिक हथियार के रूप में इस्लाम का इस्तेमाल किया था … इसी तरह फ़ारस, तुर्की, मंगोलिया और अफ़ग़ानिस्तान के अत्याचारी शासकों ने मंदिरों और संसाधनों को लूटने के लिए भारत सहित ग़ैर-मुस्लिम भूमि पर आक्रमण किया था, लूटपाट करते हुए इसे यह कहकर मान्य ठहाराया था कि वे मूर्तिपूजकों को मुसलमान बनाकर केवल अल्लाह की ही तो सेवा कर रहे हैं।
उन्होंने “अकबर जैसे दयालु मुस्लिम आक्रमणकारियों” के पाखंड पर भी प्रकाश डाला, जिन्होंने ग़ैर-मुस्लिमों का सामूहिक नरसंहार ही नहीं किया, बल्कि ग़ैर-मुस्लिमों को इस शर्त पर जीने का अधिकार दिया कि वे जज़िया नामक जीवन कर का भुगतान करें। उन्होंने कहा कि इस्लाम में जबरन धर्मांतरण और जबरन कर दोनों ही हराम हैं।
ब्रिटेन में पाकिस्तानी चरमपंथी
उन्होंने कहा कि इस्लाम को न केवल इस्लामी कट्टरपंथियों, बल्कि पश्चिमी दुनिया के कई लोगों द्वारा भी हथियार बनाया गया है। उन्होंने ब्रिटेन की राजनीतिक व्यवस्था का उदाहरण दिया, जहां लेबर पार्टी और कंज़र्वेटिव पार्टियों ने अपने-अपने वोट बैंक बना लिए हैं।
मीर ने कहा: “जहां प्रगतिशील भारतीय मूल के लोग रूढ़िवादियों को पसंद करते हैं,वहीं लेबर पार्टी भ्रम फैलाने वालों की सनक को पूरा करती है, जिन्हें मैं इस्लामवादी कहने से बचूंगा, क्योंकि इस्लाम राजनीतिक सत्ता या ज़मीन जैसी भौतिकवादी चीज़ों के लिए लड़ाई का प्रचार नहीं करता है। इस्लाम में एकमात्र लड़ाई की अनुमति अल्लाह की इबादत की लड़ाई है, अगर किसी आस्तिक को ऐसा करने से रोका जा रहा है…”
“यह काफ़ी निराशाजनक है … कि ब्रिटेन की संसद में एक कश्मीर परिषद है, जो उन वक्ताओं को नियुक्त करती है, जो कभी कश्मीर घाटी में नहीं रहे, लेकिन कश्मीर के पाकिस्तान पक्ष के मूल निवासी हैं, और जातीयता के आधार पर डोगरा मुसलमान हैं। वे मूल कश्मीरी मूल निवासियों – कश्मीरी पंडितों, जो वास्तविक पीड़ित हैं, की दलीलों के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं … ऐसे में विडंबना यही है कि ब्रिटेन, जिसने स्कॉटलैंड और वेल्स के लिए स्वतंत्रता जनमत संग्रह को खारिज कर दिया है, जिससे इन ज़मीनों पर अवैध रूप से कब्ज़ा कर लिया गया है, ऐसे तत्वों को शरण दे रहा है, जो अपनी संसद में बैठकर भारतीय कश्मीर के लिए जनमत संग्रह की मांग कर रहे हैं”।
मीर ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे ग़ुंडों ने क्रिकेट मैच के बहाने लीसेस्टर और बर्मिंघम में हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ की और ब्रिटिश हिंदू ऋषि सनक की सरकार को बदनाम करने के लिए हानिरहित हिंदू अभिवादन ‘जय श्री राम’ को युद्ध नाद के रूप में ग़लत तरीक़े से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि कैसे बीबीसी द्वारा एक हास्यास्पद वृत्तचित्र जारी किया गया था, क्योंकि हाल के वर्षों में उनके ख़िलाफ़ कुछ भी खोज पाना असंभव था … विशेष रूप से जब भाजपा को गुजरात चुनावों में भारी जीत मिली थी, जहां दरियापुर और पूर्वी सूरत जैसे मुस्लिम इलाक़ों ने भी मोदी की भाजपा को वोट दिया था।
अमेरिका में स्थिति
मीर ने कहा कि यह पूरे अटलांटिक में भी ऐसे ही परिदृश्य है, जहां यूएसए कांग्रेस के इल्हान उमर पाकिस्तान के कब्ज़े वाले जम्मू और कश्मीर (पीओजेके) का दौरा करते हैं, और महिलाओं के अधिकारों की कमी, गेहूं की कमी जैसे दंगे, राजनीतिक दमन जैसी प्रचलित समस्याओं को रेखांकित करने के बजाय और पीओजेके में लगातार बिजली कटौती के बजाय वह भारतीय कश्मीर में लोगों के मनगढ़ंत उत्पीड़न के बारे में एक बयान देती है, क्योंकि इससे मुस्लिम वोट मिलते हैं।
मीर ने बताया कि यह सिर्फ़ इस्लाम ही नहीं, बल्कि अन्य धर्म भी हैं, जिन्हें विश्व नेता भारत को बलि का बकरा बनाकर स्वार्थी हितों के लिए हथियार बना रहे हैं। उन्होंने कनाडा के राष्ट्रपति जस्टिन ट्रूडो का उदाहरण दिया, जो किसानों के विरोध के लिए भारत की आलोचना करते हुए कनाडा के चौथे सबसे बड़े बहुसंख्यक- कनाडाई सिखों से वोट मांग रहे थे। उन्होंने यूक्रेन में रूसी जनमत संग्रह की ट्रूडो की एकतरफ़ा निंदा पर प्रकाश डाला, लेकिन कनाडा में खालिस्तान जनमत संग्रह के ख़िलाफ़ नहीं बोली।
भारत के सामने चुनौतियां
भारत के लिए चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए इस कश्मीरी कार्यकर्ता ने कहा कि भारत लगभग सभी वैश्विक धर्मों से संबंधित एक बड़ी आबादी का शरणस्थल है। साथ ही दुनिया भर में प्रवासियों की एक बड़ी आबादी भारत से आती है। मीर ने कहा, “स्वयं भारत के भीतर यह सुनिश्चित करते हुए कि भारतीय संप्रभुता से समझौता नहीं किया गया है, एक लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर विविध धर्मों और संस्कृतियों के बीच सद्भाव बनाये रखना एक बड़ी चुनौती है। लेकिन, यह तब मुश्किल हो जाता है, जब अंतर्राष्ट्रीय हित इस खेल में शामिल हो जाते हैं।”
वैश्विक भू-राजनीति के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि जहां पश्चिम भारत को अपने राजनीतिक हितों के लिए बलि का बकरा बना रहा है, वहीं भारत का अन्य पड़ोसी चीन भारत के बढ़ते आर्थिक महत्व को लेकर असुरक्षित है। यह अच्छी तरह से जानते हुए कि भारत में चीन को उसके ही खेल में मात देने की क्षमता है, बीजिंग यह सुनिश्चित करता है कि भारत में अपने छद्म पाकिस्तान से अशांति बनी रहे, जो भारतीय सीमाओं के भीतर बंदूकों के साथ ड्रोन भेजता है। इन ड्रोनों के फॉरेंसिक विश्लेषण से सबूत मिलते हैं कि इन्हें पहले चीन और फिर पाकिस्तान के खानेवाल ज़िले में उड़ाया गया था। “यहाँ की रणनीति स्पष्ट है कि भारत घरेलू अशांति को रोकने के लिए जितने अधिक संसाधन ख़र्च करेगा, उतना ही वह आर्थिक रूप से पीछे जायेगा।”
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि पूर्व से लेकर पश्चिम तक हर कोई भारत में किसी भी तरह की अशांति- किसानों का विरोध, मनगढ़ंत कश्मीर संघर्ष का लाभ उठाता रहा है, पश्चिम में इन लोगों के पास भारत की किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। मीर कहते हैं, “वे आसानी से लगभग एक सजग तरीक़े से इस कार्य को संयुक्त राष्ट्र के कंधों पर डाल देते हैं। उदाहरण के लिए, जर्मनी की विदेश मंत्री अनलेना बेयरबॉक की अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान की प्रतिक्रिया, जहां उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को कश्मीर में शांति और व्यवस्था, मानवाधिकारों को बनाये रखने की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।”
मीर कहती हैं कि बहुत से लोग सोचते हैं कि संयुक्त राष्ट्र चमकदार कवच में शूरवीर साबित होगा और कश्मीरियों के बचाव में आयेगा,मगर मीर कहते हैं,” सचाई तो यही है कि कश्मीर में संयुक्त राष्ट्र का कार्यालय एक वीरान स्मारक है, जहां 2010 के बाद से कोई प्रतिनिधि नहीं आया है। इसलिए कश्मीर के बारे में रिपोर्ट, जिसे 2010 या उससे पहले बनायी गयी थी, इस समय की तारीख़ से जोड़ा दिया जाता है और हर साल जमा किया जाता है।” जबकि भारतीय कश्मीर से हर साल जहां एक अलग रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है, वहीं एक स्थानीय पाकिस्तानी समाचार एजेंसी पीओजेके से संयुक्त राष्ट्र के लिए एक दूसरी रिपोर्ट बनाया जाती है।
भारत की समस्याओं का समाधान
भारत को चुनौती देने वाली वैश्विक चुनौतियों से हटकर कश्मीरी पत्रकार ने समाधान भी सुझाते हैं।
मीर ने कहा कि भारतीय अपने काम से बहुत ज़्यादा ध्यान रखते हैं और दूसरे देशों पर पलटवार नहीं करते या लेक्चर नहीं पिलाते हैं। उन्होंने बताया, “तो आइए,एक उदाहरण लेते हैं, जब अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने हमें लेक्चर पिलाया कि लोकतंत्र कैसे चलना चाहिए … उनके लिए यह कहना आसान है … इनकी किसी भी सीमा पर कोई दुष्ट राष्ट्र नहीं है। क्या आप जानते हैं कि हमारी सीमाओं पर कितने देश हैं …”, उन्होंने चीन और पाकिस्तान जैसे भारत के लंबे समय से विरोधी देशों की ओर इशारा करते हुए कहा।
भारत के मामलों में अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप का एक और उदाहरण देते हुए मीर ने कहा कि अमेरिका को बैंकिंग पतन, मुद्रास्फीति और सामाजिक अशांति जैसी अपनी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।
उन्होंने फिर से हैरिस के हवाले से कहा, “हम कश्मीरियों को याद दिलाना चाहते हैं – कि वे दुनिया में अकेले नहीं हैं। हम स्थिति पर नज़र रख रहे हैं… ”। अमेरिकी उपराष्ट्रपति के इन बयानों पर टिप्पणी करते हुए कश्मीरी पत्रकार ने कहा: “लेकिन आप कभी भी किसी भारतीय मंत्री को यह कहते हुए नहीं देखेंगे,” … हम लॉस एंजिल्स के बेघर लोगों को याद दिलाना चाहते हैं कि वे दुनिया में अकेले नहीं हैं। हम स्थिति पर नज़र रख रहे हैं, अगर स्थिति की मांग हो, तो हस्तक्षेप करने की ज़रूरत होगी।”
उन्होंने भारतीयों को उनके आरामदायक कोकून से बाहर निकल आने के लिए भी तैयार रहने को कहा। मीर ने कहा कि सूचना युद्ध के क्षेत्र में भारत के प्रतियोगी कश्मीरी भाषा सीखते हैं, ताकि वे सोशल मीडिया पर भारतीय कश्मीरियों को गाली दे सकें, लेकिन हम भारतीय उर्दू नहीं सीखेंगे। हम अंत में उर्दू ग़ज़लों और शायरी के दीवाने हो जाते हैं, फिर शायरी समूहों में शामिल हो जाते हैं, फिर शायरी कार्यक्रम आयोजित करते हैं, शायरी पार्टियों की मेज़बानी करते हैं, फिर शायर बन जाते हैं… इसी तरह, यदि आप भारतीयों को चीनी भाषा सीखने के लिए कहें, तो वे ब्रूस ली की फ़िल्में देखना शुरू कर देंगे… आख़िरकार यह बात सीखिए कि उसकी कुछ हरकतें चलती हैं, भाषा नहीं। हमें दुश्मन की उस राष्ट्रभाषा को सीखना पसंद नहीं है, जो दुश्मन देश में नैरेटिव तैयार करने की एक महत्वपूर्ण रणनीति है।”
जिहादी मानसिकता की झलक देते हुए मीर ने कहा कि सोशल मीडिया पर या मस्जिदों में उपदेशों के माध्यम से भारत विरोधी सामग्री बनाने और फैलाने में लगे कट्टरपंथी अपने भाईचारे या उम्माह के साथ अपनी इस धारणा पर टिके रहेंगे कि इस्लाम के नाम पर हत्या या दंगा स्वीकार्य है और वे एक साथ रहते हैं। लेकिन, भारतीय ऐसा नहीं करेंगे।
भारत की ख़ातिर सभी भारतीय नागरिकों से आग्रह करते हुए मीर ने कहा कि रूढ़िवादिता का सामना करते हुए भारतीय उस समय पीछे हट जाते हैं, जब कोई उन्हें “भक्त”, “संघी”, “वानाबे नाज़ी” या “हिंदुत्व एजेंट” कहता है। भारतीय मुसलमानों को “मोदी के भारत का समर्थन क्यों कर रहे हो, तुम हारे हुए हो”, “तुम मुनाफ़िक़”, “तुम मुर्तद” और “तुम यहूदी” जैसे उपहासों का सामना करना पड़ता है।
कश्मीरी पत्रकार ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि कैसे इस्लामवादी केवल विरोध करने और एक अनुचित उद्देश्य के लिए लड़ने के लिए कुरान के ग्रंथों का अर्थ भी बदल देते हैं। “लेकिन हम भारतीय, चाणक्य नीति की तरह हिंदू साहित्य में दी गई युद्ध रणनीति और रणनीतियों के बारे में अपने धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने की भी परवाह नहीं करेंगे। हमें नहीं लगता कि जब तक हम भारतीय सशस्त्र बलों के साथ नहीं हैं,तो हमें किसी भी चीज़ के लिए लड़ना चाहिए।” जहां तुर्की जैसे लोकतांत्रिक देशों में सैन्य भरती अनिवार्य है, यह भारत में लोकतंत्र के सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है।
उन्होंने कहा कि अगर भारतीयों को वैश्विक ताक़तों के ख़िलाफ़ वापस लड़ना है, तो उन्हें बचाव की मानसिकता से बाहर निकलना होगा।
मीर ने ज़ोर देकर कहा, “आइए फिर से बेयरबॉक का उदाहरण लें। यदि वह भारत के बारे में कुछ बुरा कहती हैं, यहां तक कि तैयार न होने की स्थिति में भी जैसा कि जर्मन दावा करते हैं, तो दुनिया भर में जर्मनी की कुल आबादी को देखते हुए अधिकतम 80 मिलियन लोग भारत के बारे में नकारात्मक राय बनायेंगे। लेकिन अब ज़रा सोचिए, अगर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर जर्मनी के बारे में कुछ कहते हैं… शायद ऐसा कुछ ‘हम जर्मनी में मेगा परिवहन कर्मचारियों की हड़ताल की स्थिति का समर्थन करते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि श्रमिकों के आर्थिक अधिकारों की गारंटी दी जा सके। दुनिया भर में कितने लोग डेनमार्क, पोलैंड और रूस जैसे अपने छिपे हुए प्रतिद्वंद्वियों के साथ जर्मनी के बारे में एक नकारात्मक राय बनाने जा रहे हैं।”
कट्टर भारतीय समर्थक, याना मीर ने यह कहते हुए निष्कर्ष निकाला कि भारत की समस्याओं का बहुत सारा समाधान स्वयं भारतीयों के पास है। वैश्विक स्तर पर बढ़ते भारत विरोधी प्रचार से निपटने के लिए भारतीयों को ख़ुद को मज़बूत और आत्मनिर्भर बनाना होगा।