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पीएम मोदी के वाशिंगटन दौरे की कामयाबी को भारी मन से क़ुबूल करते पाकिस्तानी

अपनी ख़ुशियों के पल को साझा करते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (बायें) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी - दोनों नेताओं के बीच अद्भुत व्यक्तिगत केमिस्ट्री

अमेरिका में पाकिस्तानी प्रवासियों सहित पाक समाज के समझदार लोगों ने यह स्वीकार करते हुए जून के तीसरे सप्ताह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया यूएसए यात्रा को ऐतिहासिक और बेहद सफल क़रार दिया है कि भारत भी महाशक्तियों नहीं, तो बड़ी शक्तियों की लीग में शामिल हो गया है। यात्रा के दौरान अमेरिका और भारत दोनों स्पष्ट रूप से एक-दूसरे की सराहना कर रहे थे। प्रधानमंत्री के सम्मान में आयोजित राष्ट्रपति जो बाइडेन का भोज वह पैमाना है, जिसके आधार पर इन पाकिस्तानियों ने तय कर लिया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ-साथ भारत की लोकप्रियता आर्थिक शक्ति और नरम शक्ति के रूप तेज़ी से बढ़ है। पाकिस्तानी विश्लेषकों और पर्यवेक्षकों को उस राजकीय भोज से डाह हुई, जिसमें Google, Microsoft और Apple के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों सहित लगभग 400 प्रमुख हस्तियों ने भाग लिया, और बताया कि अधिकांश व्यवसायी और बुद्धिजीवी एनआरआई थे। इन पर्यवेक्षकों और विचारकों के लिए, भारत द्वारा कथित मानवाधिकार उल्लंघन पर अमेरिकी कांग्रेसियों का पत्र अमेरिका-भारत संबंधों में महत्वहीन इसलिए था, क्योंकि अर्थशास्त्र और व्यापार कहीं ज़्यादा मायने रखते हैं। वे सवाल करते हैं व्यवसायिक मानसिकता वाला अमेरिका भला पाकिस्तान का पक्ष कैसे ले सकता है, जो हमेशा उसके सामने भीख का कटोरा लेकर आता है ?

पाक बुद्धिजीवियों के इस तर्कसंगत वर्ग ने कहा कि प्रथम महिला की देखरेख में व्हाइट हाउस में आयोजित राजकीय रात्रिभोज भारतीय नरम शक्ति का एक बड़ा स्टेटमेंट और प्रदर्शन था, जिसमें अमेरिकी उद्योग में मायने रखने वाले सभी लोगों ने भाग लिया था। इसमें शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व और बिजनेस टाइकून और प्रमुख पत्रकारों ने भाग लिया। इस सूची में अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू भी शामिल थे, जिन्हें पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और पीटीआई अध्यक्ष इमरान ख़ान द्वारा एक अत्यधिक विवादास्पद अमेरिकी विदेश विभाग का पदाधिकारी बनाया गया था। अप्रैल 2022 में अविश्वास मत के माध्यम से अपनी सरकार को हटाने से पहले इमरान ने आरोप लगाया था कि लू ने तत्कालीन पाक राजदूत असद माजिद के माध्यम से पाक प्रतिष्ठान से उन्हें सत्ता से हटाने के लिए कहा था। पाक बुद्धिजीवियों का मानना है कि पाकिस्तानी पीएम मोदी की बेहद सफल यात्रा से बहुत कुछ सीख सकते हैं, जिसकी हर जगह सकारात्मक चर्चा हुई, हालांकि मीडिया में कुछ लेख उनकी आलोचना कर रहे थे।

Biden Modi

इसमें कहा गया है कि भारत का बढ़ता दबदबा द्विपक्षीय समझौतों और एमओयू में प्रकट हुआ है, भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंध धीरे-धीरे अगले स्तर पर पहुंच रहे हैं। इसमें यह भी माना गया कि मोदी-बाइडेन वार्ता और समझौतों पर हस्ताक्षर के अलावा, अमेरिकी कांग्रेस में पीएम नरेंद्र मोदी के संबोधन के दौरान कांग्रेसियों द्वारा बार-बार ताली बजाया जाना और खड़े होकर अभिनंदन किया जाना भी अभूतपूर्व था। हालांकि, पाक पर्यवेक्षकों और बुद्धिजीवियों ने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि पीएम मोदी-राष्ट्रपति बाइडेन के बाद जारी संयुक्त घोषणा के पैराग्राफ में पाकिस्तान का उल्लेख अत्यधिक नकारात्मक शब्दों में किया गया है। यह जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे पाक आतंकवादी समूहों पर केंद्रित था, जिसमें पाकिस्तान से मुंबई और पठानकोट हमलों के अपराधियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए कहा गया था।

प्रवासी पाकिस्तानियों ने इमरान ख़ान के प्रति अपना झुकाव प्रदर्शित करते हुए पाक सरकार और राजनेताओं से 09 मई सिंड्रोम से बाहर निकलने का आग्रह किया और कहा कि संयुक्त बयान निराशाजनक पाक कूटनीति का रिपोर्ट कार्ड है। पाक नेतृत्व अमेरिका को अपने पक्ष में नहीं मना सका। पाक विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने एक सप्ताह की यात्रा सहित 04 दौरे किये। तमाम कोशिशों के बावजूद वह अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन से भी नहीं मिल सके। बेनज़ीर के बेटे होने के बावजूद बिलावल भुट्टो को ज़्यादा पहचान नहीं मिल पायी। पाकिस्तान को सोचना होगा कि क्या उसे बिना सोची-समझी प्रतिक्रिया के कूटनीति करनी चाहिए या कूटनीति के ज़रिए दूसरे देशों को समझाना चाहिए कि उनका संदेह निराधार है। विदेश मंत्रालय के बजाय पाक रक्षा मंत्री कूटनीतिक मोर्चे पर लड़ रहे हैं। पाक नेतृत्व को पता होना चाहिए कि जब वे ख़ुद गंभीर होंगे, तो दुनिया उन्हें गंभीरता से लेगी। पाकिस्तान को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र बनना होगा, क्योंकि पश्चिम में यह आम धारणा है कि वहां अघोषित तानाशाही है। अमेरिका के साथ पाक के रिश्ते आख़िरी पड़ाव पर हैं। देश में संवैधानिक लोकतंत्र और क़ानून का शासन होना चाहिए।

दैनिक जंग ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ पीएम मोदी की मुलाक़ात के बाद जारी संयुक्त घोषणा में पाकिस्तान के आतंकवाद में शामिल होने का आरोप है. दरअसल, यह पाक की मुश्किलें और बढ़ाने की उनकी रणनीति का संकेत है। इस क्षेत्र में रूस और चीन के बढ़ते प्रभाव का मुक़ाबला करने के लिए अमेरिका ने भारत को विशेष भूमिका देने का फ़ैसला किया है। हालांकि, जंग के नियमित स्तंभकार और जाने-माने विश्लेषक इम्तियाज़ आलम ने पीएम की यात्रा को अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भू-रणनीतिक संबंधों में एक बड़ी रणनीतिक छलांग बताया है। कांग्रेस में पीएम के संबोधन के दौरान प्रतिभागियों ने 75 बार तालियां बजायीं और 15 बार खड़े होकर अभिनंदन किया। बुश जूनियर के समय भारत-अमेरिका संबंधों में जो नयी शुरुआत हुई थी, वह एक बड़े रणनीतिक युग में प्रवेश कर चुकी है। उन्होंने कहा कि ये संबंध अमेरिका और भारत के लिए चीनी आर्थिक और सुरक्षा चुनौतियों के लिए द्विपक्षीय रूप से उपयुक्त हैं।

आलम ने कहा कि भारत-अमेरिका साझेदारी का पाकिस्तान पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन और कश्मीर में जारी दमन को नज़रअंदाज़ करते हुए अमेरिका द्वारा भारत के साथ मिलकर पाकिस्तान के कथित सीमा पार आतंकवाद की निंदा करना पाक विदेश कार्यालय और रक्षा मंत्रालय के लिए परेशान करने वाली बात है। हालांकि, आतंकवाद के ख़तरे से छुटकारा पाना पाकिस्तान के अपने हित में है। पाकिस्तान को साहसिक कूटनीतिक पहल करते हुए आतंकवाद के ख़िलाफ़ संयुक्त संघर्ष के लिए अमेरिका को आमंत्रित करना चाहिए। उसे यथार्थवादी दृष्टिकोण अपनाकर भारत के साथ संबंध सामान्य बनाने होंगे। उसे कश्मीर मुद्दे के संभावित समाधान सहित भारत के साथ शांति समझौते के प्रयास फिर से शुरू करने चाहिए।

कट्टर भारत विरोधी उर्दू दैनिक नवाई वक़्त ने कहा कि यह बेहद आश्चर्य की बात है कि ऐसे समय में जब व्हाइट हाउस के बाहर और दुनिया भर में अल्पसंख्यकों पर भारतीय दमन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था, वाशिंगटन प्रशासन ने न केवल भारत के पीएम को पूरे प्रोटोकॉल के साथ सम्मानित किया,बल्कि संयुक्त घोषणापत्र में पाकिस्तान पर आतंकियों को संरक्षण देने के आरोप भी लगाये  गये। यह अमेरिका की दोहरी नीति का प्रदर्शन है कि राष्ट्रपति बाइडेन निराधार और अस्पष्ट भारतीय आरोपों को दोहरा रहे हैं और अपने युद्ध भय को बढ़ावा देने के लिए भारत को सैन्य तकनीक हस्तांतरित कर रहे हैं। दुनिया नामक दैनिक के एक लेख में यह कहते हुए ख़ुशी जतायी गयी है कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने प्रधानमंत्री की यात्रा के अवसर पर कहा था कि सांप्रदायिक दंगों के कारण भारत टुकड़े-टुकड़े हो सकता है।

स्थानीय प्रेस के अलावा, जेईआई सहित शत्रु तत्वों और इस्लामवादियों ने अमेरिका और भारत की इस मांग को बहुत हास्यास्पद बताया कि पाकिस्तान को आतंकवाद को ख़त्म कर देना चाहिए, उन्होंने आरोप लगाया कि उन दोनों को मानवाधिकारों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अपने पैरों के नीचे कुचलने का चैंपियन माना जाता है।   पाकिस्तान को आतंकवाद का शिकार बताते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि यह भारत ही है, जिसने एक तरफ़ अल्पसंख्यकों, ख़ासकर मुसलमानों का जीना मुश्किल कर दिया है, वहीं दूसरी तरफ़ वह टीटीपी, बीएलए ,अन्य बलूच विद्रोही समूह जैसे आतंकवादी संगठनों को बढ़ावा देने और प्रायोजित करने में शामिल रहा है। दासू आतंकी हमले में भारतीय एजेंसियां शामिल हैं और उन्होंने सीपीईसी को नुक़सान पहुंचाने के लिए एक सेल का गठन किया है। मोदी के प्रति व्हाइट हाउस के बढ़ते स्नेह का उद्देश्य इस क्षेत्र में बढ़ते चीनी प्रभाव पर लगाम लगाना है।

जेईआई अमीर सिराजुल हक़ ने 24 जून को मर्दन में एक सार्वजनिक बैठक को संबोधित करते हुए उस संयुक्त घोषणा को तथ्यों के विपरीत बताया और एफ़एम बिलावल के अस्पष्ट बयान की आलोचना की। उन्होंने कहा कि डॉ. आफ़िया सिद्दीक़ी की वापसी के लिए एक शब्द भी नहीं बोल पाने वाले पाक हुक़्मरानों के कायरतापूर्ण बयानों के कारण पाकिस्तान और उसकी जनता ऐसे दिन देखने को मजबूर हैं। उन्होंने कश्मीर को थाली में सजाकर भारत को सौंप दिया। पूर्व जेईआई पीओके अमीर अब्दुर रशीद तुराबी ने कहा कि नरेंद्र मोदी के इशारे पर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ यह नापाक बयान चिंता का कारण है। मोदी का समर्थन करना हिटलर द्वितीय का समर्थन करने के समान है। जो बाइडेन यह क्यों भूल गये कि भारत ने पिछले 30 वर्षों में एक लाख कश्मीरियों को मार डाला है। अमेरिका को सभी मुस्लिम देशों को भारतीय और इज़रायली नजरों से नहीं देखना चाहिए। कश्मीर में भारतीय क्रूरताओं और भारत में मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ आरएसएस के एजेंडे को बढ़ावा देने के मोदी के प्रयासों को नज़रअंदाज़ करने के बाद ऐसे बयान जारी करना अनुचित है।

पीओके के राष्ट्रपति और पीएम ने कहा कि अमेरिका और भारत अपने द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाकर चीन को नीचा दिखाना चाहते हैं। वे अमेरिकी कांग्रेसियों के बहिष्कार और बराक ओबामा के पीएम मोदी की अतिवादी नीतियों के कारण भारत के टुकड़े होने के बयान पर ख़ुश नज़र आ रहे हैं। उनका दावा है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय कश्मीर में घोर मानवाधिकार उल्लंघन और भारत द्वारा अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ दमन से अच्छी तरह परिचित है। संयुक्त बयान की निंदा करते हुए पीओके नेताओं ने हमेशा की तरह तथाकथित मुक्ति संघर्ष से न हटने की कश्मीरियों की प्रतिज्ञा की घोषणा की।