Hindi News

indianarrative

यासीन मलिक: फांसी के फंदे से कब तक बचेगा, Airforce हत्याकाण्ड में नहीं चलेगा गांधीवाद का बहाना!

फांसी के फंदे से कब तक बचेगा यासीन मलिक!

कोर्ट में एनआईए तर्क और अभियोजन पक्ष की बहस सुनकर यासीन मलिक की टांगें कांपने लगीं। हलक सूख रहा था, उसके सामने मौत खड़ी थी। मौत का खौफ यासीन मलिक के चेहरे पर साफ देखा जा रहा था। यह वही यासीन मलिक है जिसने घाटी में सैकड़ों निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया। यह वही यासीन मलिक है जिसने एयरफोर्स के अफसरों की निर्मम हत्या कर दी। यह वही यासीन मलिक है जो पाकिस्तान में आतंकी सरगना हाफिज मलिक के साथ भारत के खिलाफ धरने पर बैठता है। यह वही यासीन मलिक है जो अजमेर शरीफ दरगाह पर माथा टेकता है लेकिन तिरंगा हाथ में उठाने से इंकार कर देता है।

वही यासीन मलिक सजा सुनाए जाने से पहले अदालत के सामने गुहार लगा रहा था जज साहब एक बार जान बख्श दीजिए। जज साहब अब मैं गांधीवादी हो गया हूँ… जज साहब देखिए मेरी बीवी है, मेरी बच्ची है, मैं अब कोई गल्ती नहीं करूंगा, मैं अपने सभी गुनाह कबूल करता हूँ, मेरी जान बख्श दीजिए। जज साहब मैंने सात-सात प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है, मैं घाटी में अमन-सकून का माहौल बनाऊंगा…मेरी जान बख्श दीजिए!!

यह कोर्ट का विशेषाधिकार है कि वो रेयर ऑफ रेयरेस्ट केस में दोषी को फांसी की सजा सुना दे। जज प्रवीण मलिक भी ऐसा भी कर सकते थे। अगर ऐसा मामला पाकिस्तान की कोर्ट में होता को अब पता नहीं कितनी बार यासीन मलिक को फांसी के तख्ते पर लटकाया गया होता। उसके शव को सड़क पर घसीटते हुए किसी चौराहे पर टांग दिया गया होता। लेकिन यह हिंदुस्तान है। यहां कानून का राज है।

आतंकियों के सरगना यासीन मलिक के खिलाफ एनआईए ने टेरर फंडिंग का मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार किया था। फिल्हाल 2017 में दर्ज किए गए टेरर फंडिग केस में उसने अपने सारे जुर्म कबूल कर लिए और जान बख्शने की गुहार लगाई थी। जज ने सजा का ऐलान करने से पहले यासीन मलिक की जमीन-जायदाद और निजी मिल्कियत की जानकारी मांगी थी। तभी से यह अनुमान लगाया जाने लगा था कि कोर्ट संभवतः यासीन मलिक की जान बख्श दे लेकिन उसकी करतूत ऐसी हैं कि फांसी से कम सजा कोई नहीं चाहता था। कोर्ट के सामने यासीन मलिक के खिलाफ टेरर फंडिंग का मामला था। भारत की अदालतें सहिष्णु हैं। सो यासीन मलिक की जान बख्श दी गई।

फिल्हाल, यासीन मलिक फांसी के फंदे से बच गया हो लेकिन उसके खिलाफ अभी घाटी में एयरफोर्स अफसरों की हत्या और घाटी में निरअपराध कश्मीरी पंडितों की हत्या के मामले विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। उनकी सुनवाई भी जल्द ही तेज की जाएगी। उन सभी मामलों में न्याय होगा। तब शायद यासीन मलिक का गांधीवादी पैतरा काम न आए। उस समय कोर्ट रेयर ऑफ रेयरेस्ट केस को उसी नजरिए से देखेगी। उस वक्त तक फांसी का फंदा आतंकी सरगना यासीन मलिक का इतंजार करेगा।

ध्यान रहे, 25 जनवरी 1990 को श्रीनगर के रावलपोरा में आतंकियों ने वायुसेना के जवानों पर हमला कर दिया। इस घटना में 40 लोग घायल हुए थे जबकि चार जवान शहीद हो गए थे। वायुसेना के जवान एयरपोर्ट जाने के लिए बस का इंतजार कर रहे थे तभी आतंकियों ने उनपर हमला कर दिया था। यासीन मलिक ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया को दिए इंटरव्यू में भी इस बात का जिक्र किया था। यासीन मलिक ने घाटी में अपनी हरकतें 1983 से शुरू की और 1987 तक आतंक का नंगा नाच किया। उसके बाद यासीन मलिक सीमा पार गुलाम कश्मीर  (पीओके) चला गया। वहां से यासीन मलिक 1989 में वापस घाटी लौटा। कश्मीरी पंडितों और गैर कश्मीरियों के पर आतंक और हत्या का कहर बरपाने लगा। यासीन मलिक ने खुद पर आतंकी ठप्पे से बचने के लिए सेपटेरिस्ट का लबादा ओढ़ लिया। लेकिन वो भीतर-ही-भीतर आतंकियों का सरगना ही बना रहा। सेपटेरिस्ट और टेररिस्ट में फर्क सिर्फ इतना होता है कि सेपटेरिस्ट जुबानी गोलियां दागते हैं, टेररिस्ट बंदूक से गोलियां दागते हैं। यासीन मलिक न केवल जुबानी गोली बल्कि बंदूक गोलियां भी दागता रहा।