Blood Fall Glacier: इस बात में कोई शक नहीं की दुनिया अजीबोगरीब जगहों से भरी हुई है। इंसानो ने कुछ की खोज कर ली है तो अभी कुछ की करनी बाकि है। समय-समय पर रिसर्च के दौरान जब इन जगहों के बारे में जानकारी सामने आती है तो तस्वीरें एक दम चौंका के रख देती है। उस समय मन में सिर्फ एक ही बात आती की दुनिया कितने अजूबों से भरी पड़ी है। अभी ताजा-ताजा उदाहरण वेल ऑफ हेल (Well Of Hell) का है। यमन के एक ग्रुप ने जब इस जगह की खोज की तो तस्वीरें देख दुनिया के होश उड़ गए। कहीं पर सांपों का झुंड तो कहीं पत्थरों पर नायाब कारीगरी। विचित्र आकृतियां। इससे पहले किसी को नहीं पता था कि आखिर इस गुफा में क्या है। स्थानीय लोग तो इसे दुष्ट आत्माओं को भगाने का ठिकाना समझते थे। आज हम अपने पाठकों को दुनिया की ऐसी ही कुछ अजीबोगरीब जगहों के बारे में बता रहा है। जानें कहां बहता है खून का झरना…
देखकर कर यकीन कर पाना मुश्किल
अंटार्कटिका महाद्वीप में कई ऐसी रहस्यमयी इलाके हैं जहां जोखिमों की भरमार है। यहां पूर्वी अंटार्कटिका में खून के झरने की खोज हुई थी जिसे हम ब्लड्स फॉल कहते हैं। पूर्वी अंटार्कटिका के विक्टोरिया लैंड में वैज्ञानिकों ने एक जगह देखी जहां खून का झरना बहता हुआ दिखाई दिया है। इस ब्लड फॉल को साल 1911 में अमरीकी जीव विज्ञानी ग्रिफिथ टॉयलर ने खोजा था। ये झरना किसी पांच मंजिला इमारत जितना ऊंचा है।
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पानी इस वजह से लाल दिखता है
इस झरने के लाल रंग के पीछे कई कारण दिए जाते हैं। सबसे पहली थ्योरी के अनुसार रिसर्चर का मानना था कि ग्लेशियर के नीचे बहने वाली झील बर्फ के रूप में बदल गई और ग्लेशियर में दरार पड़ने से पानी का फ्लो बाहर आने लगा। इसके साथ पानी में मौजूद आयरन ऑक्साइड हवा के संपर्क में आने के बाद लाल रंग का हो गया जिससे इसके पानी का रंग खून के जैसा दिखने लगा।
हैरान करने वाला खुलासा
वैज्ञानिकों को साल 1960 में पता चला कि गेल्श्यिर के नीचे लौह नमक (Iron Salts) मौजूद है। लौह नमक का मतलब फेरिक हाइड्रोक्साइड। साल 2009 में एक स्टडी से हैरान करने वाला खुलासा हुआ। इस ग्लेशियर के नीचे सूक्ष्मजीव होने की जानकारी मिली। इसके कारण ग्लेशियर से खून का झरना निकल रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इस ग्लेशियर के नीचे 15 से 40 लाख साल से सूक्ष्मजीव रह रहे हैं। बहुत बड़े इकोसिस्टम का यह छोटा सा भाग है जिसे वैज्ञानिक खोज पाए हैं। वैज्ञानिकों को एक इलाके से दूसरे इलाके तक की खोज करने में दशकों लग जाएंगे। इस क्षेत्र में आना जाना और रहना बेहद कठिन है।