Trapdoor Spider: धरती का निर्माण अरबों साल पहले हो गया था। इस दौरान फिर धीरे-धीरे इसमें कई अन्य तरह के विकास देखने को मिले। जीव-जंतु बने और धीरे-धीरे ये पृथ्वी ठीक वैसे ही बन गई जैसा की आज हम देखते हैं। इंसान इस बात का दावा तो करता है उसने इस धरती को अच्छे से समझ लिया है और इसमें रहने वाले जीव-जंतुओं पर रिसर्च भी कर ली है मगर आज भी कई ऐसे प्राणी दिख जाते हैं जिनका पता वैज्ञानिकों ने पहली बार लगा लिया है। हाल ही में वैज्ञानिकों ने ऐसे ही एक प्राणी का पता ऑस्ट्रेलिया से लगाया। यहां नई प्रजाति की मकड़ी की खोज हुई है, पर मिलने के साथ ही उससे जुड़ा एक खतरा मंडरा रहा है।
मालूम हो, ऑस्ट्रेलिया (Australia) में ट्रैपडोर मकड़ी की एक नई प्रजाति खोजी गई है जो सिर्फ क्वींसलैंड में पाई जाती है। इस दुर्लभ प्रजाति की एक मादा मकड़ी 20 साल तक जिंदा रह सकती है। यह 5 सेमी तक बड़ी हो सकती है। इस प्रजाति के नर 3 सेमी तक बढ़ सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है जमीन की साफ सफाई में दुर्भाग्य से मकड़ी का ज्यादातर निवास स्थान बर्बाद हो गया है। इसके वजह से ये लुप्तप्राय प्रजाति होने की ओर बढ़ गई है।
ट्रैपडोर मकड़ियां पत्तियों के माध्यम कीड़ों को पकड़ने वाला एक जाल बुन लेती है। ये जाल आम तौर पर 1.5 सेमी से 3 सेमी तक होते हैं। मकड़ी की इस नई प्रजाति का नाम यूओप्लोस डिग्निटास है। यह गोल्डेन ट्रैपडोर मकड़ी की प्रजाति है जिसे ब्रिगालो बेल्ट के अर्ध-शुष्क वुडलैंड्स में खोजा गया है।
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इनका जीवन कैसा होता है
इस प्रजाति की मादा पर लाल-भूरे रंग का आवरण होता है, जबकि नर में हनी रेड रंग की बाहरी परत और भूरे रंग का पेट होता है। यूओप्लोस डिग्निटास खुले में रहते हैं और अपने लिए काली मिट्टी में बिल बनाते हैं। मादा मकड़ियां अपना जीवन अंडरग्राउंड बिताती हैं। वहीं नर पांच से सात साल के बाद एक दूसरे साथी की खोज में बिल से निकल जाते हैं।
साल 2021 में मिली थी मकड़ी
इससे जुड़ा एक अध्ययन जर्नल ऑफ एराक्नोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। जिसमें बताया गया है कि इस प्रजाति की केवल एक मादा को 1960 के बाद क्वींसलैंड में जमा किया गया है। मई 2021 में तीन दिनों की खोज के बाद सड़क के किनारे कई सौ मीटर की दूरी पर एक आबादी का पता चला। जबकि इसके आसपास का इलाका आवास और कृषि के लिए साफ किया जा चुका है। शोध में कहा गया है कि ऐसे में इन मकड़ियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। यह मकड़ी इंसानों के लिए खतरा नहीं हैं।