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ORS के जनक एक भारतीय ! विदेशों में तारीफ,लेकिन देश में रहे गुमनाम।

ORS के जनक डॉ दिलीप महालनोबिस

ORS के जनक डॉ दिलीप महालनोबिस की गुमनाम कहानियां।

गर्मियों में अक्सर आपने लोगों को उल्टी,दस्त और सिरदर्द या फिर चक्कर खाकर गिर जाने की शिकायत करते कई बार सुना होगा। जिसकी वजह आमतौर पर डिहाइड्रेशन बताई जाती है। शरीर में पानी की मात्रा कम शरीर में थकान ,चक्कर और भी कई अन्य बीमारियों को दावत दे देती है। आमतौर पर लोग डिहाइड्रेशन को हल्के में लेते हैं,लेकिन कभी-कभी ये बीमारी जानलेवा भी साबित हो जाती है। इससे बचने के लिए अक्सर डॉक्टर ग्लूकोज देता है,या फिर ORS घोल कर पीने की सलाह देता है।

गर्मी हो या सर्दी शरीर में पानी कम होने पर डॉक्टर ओआरएस का घोल बनाकर पीने की सलाह देता है।लेकिन क्या आपको पता है,इस ओआरएस की खोज करने वाला व्यक्ति कौन था? कम ही लोगों को पता होगा कि ORS जैसे जीवनदायिनी घोल बनाने वाला वह शख्स एक भारतीय था।

दरअसल,ORS के जनक कहे जाने वाले डॉक्टर दिलीप महालनोबिस गुमनामी में अपनी पूरी जिंदगी काटी। डॉक्टर दिलीप महालनोबिस के इसी खोज की बदौलत 1971 के बंग्लादेश युद्ध के दौरान लाखों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकी। लिहाजा डॉ दिलीप महालनोबिस को ही लाइफ सेविंग सॉल्यूशन को विकसित करने और ओरल रीहाइड्रेशन थेरेपी(ORT) को प्रचलित करने का श्रेय जाता है।

लेकिन अफसोस की बात ये है कि जिस डॉक्टर को पूरी दुनिया में सम्मान मिला,जिसने अपनी इस खोज से न जाने कई जिंदगियां बचाई,उन्हें अपने ही देश में वो सम्मान नहीं मिल पाया ,जिसके वह हक़दार थे।डॉ दिलीप महालनोबिस को जीते जी न तो केन्द्र की ओर से कोई सम्मान मिल पाया न ही बंगाल सरकार की ओर से उन्हें उपकृत किया गया।

डॉक्टर दिलीप के बारे में कहा जाता है कि 1970 के दशक में पश्चिम बंगाल के बनगांव के पास शिविरों में लाखों बांग्लादेशी शरणार्थियों का इलाज करते हुए पहली बार ORS का इस्तेमाल किया था। जानकारी के मुताबिक महालनोबिस ने इस ओआरएस की मदद से हैजा से पीड़ित कई लोगों की जानें बचाई,इस तरह ORS एक जीवन रक्षक साबित हुआ। डॉक्टर दिलीप महालनोबिस को इस काम के लिए विश्व स्तर पर पहचान मिली। विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित कई अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने उनके इस काम को मान्यता दी,और उन्हें सम्मानित किया।

1966 में पब्लिक हेल्थ में रखा कदम

बाल रोग चिकित्सक के रूप में डॉक्टर दिलीप महालनोबिस ने 1966 में पब्लिक हेल्थ में कदम रखा। पब्लिक हेल्थ में आते ही डॉ. दिलीप ने ORT पर काम शुरु कर दिया। डॉक्टर रिचर्ड ए कैश और डेविड आर नलिन के साथ कोलकाता के जॉन्स हॉपकिंग यूनिवर्सिटी इंटरनेशनल सेंटर फॉर मेडिसिन रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग से ओआरटी को लेकर रिसर्च किया। डॉ. दिलीप यह जानते थे कि ORS से किसी की भी जिंदगी आसानी से बचाई जा सकती है,लिहाजा उन्होंने ORS पेटेंट नहीं कराया,ताकि ग़रीब लोगों तक भी ORS की पहुंच आसानी से हो सके।

Bangladeshi Sharnarthi
1971 में लाखों बांग्लादेशी शर्णार्थियों की बचाई जान

 

1971 युद्ध के दौरान लाखों लोगों की बचाई जान

लैंसेट जर्नल ने इसे 20वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रगति कहा था,बावजूद डॉ दिलीप को भुला दिया गया।
लैंसेट जर्नल ने इसे 20वीं सदी की ‘शायद सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रगति’ कहा था, लेकिन, डॉ. दिलीप महालनोबिस को लगभग भुला दिया गया है। डॉ दिलीप की उपलब्धियों के लिए उन्हें केंद्र या राज्य सरकारों से उचित सम्मान नहीं मिला।
बात 1971 की है ,जब बांग्लादेश युद्ध के दौरान पश्चिम बंगाल के बनगांव में एक शरणार्थी शिविर में हैजा फैल गया था। उस समय हैजा के इलाज के लिए स्रावी द्रव का उपयोग किया जाता था।लेकिन उसका स्टॉक ख़्तम हो गया था। इस गंभीर समस्या के दौरान डॉ. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर मेडिकल रिसर्च एंड ट्रेनिंग की मदद से डॉ. दिलीप महालनोबिस ने कैंप के निवासियों के लिए ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी करने का जोखिम उठाया। और ओआरएस बनाए जिसमें चार चम्मच टेबल सॉल्ट, तीन चम्मच बेकिंग सोडा और 20 चम्मच कमर्शियल ग्लूकोज का मिश्रण तैयार किया। इसके इस्तेमाल से दो सप्ताह के भीतर शिविरों में मृत्यु दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 3.6 प्रतिशत कर दिया गया।

विदेशों में किए गए सम्मानित

इस असाधारण खोज के लिए 1994 में डॉ. दिलीप महालनोबिस को रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज के सदस्य के रूप में चुना गया। जबकि , 2002 में उन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका से पॉलीन पुरस्कार और 2006 में थाईलैंड सरकार से प्रिंस महिदोल पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। लेकिन हैरानी की बात यह है कि डायरिया के इलाज में क्रांति लाने वाले इस बंगाली डॉक्टर को अपने ही देश में वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हक़दार थे।

88 साल की उम्र में डॉ. दिलीप महालनोबिस का निधन

इनकी खोज ने चिकित्सा जगत में एक माइल स्टोन खड़ा कर दिया। करोड़ों की जिंदगी बचाने वाले डॉ दिलीप महालनोबिस अपना पूरा जीवन जगुमनामी में काटी। लंबी बीमारी से जूझ रहे ORS के जनक डॉ.दिलीप महालनोबिस 88 साल की उम्र में चीर निंद्रा में सो गए।

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