Hindi News

indianarrative

विदेशों में ख़ालिस्तानी गुंडागर्दी के पीछे  विदेशों में बसे मुट्ठी भर मज़दूर वर्ग के सिख

चंडीगढ़: जहां राज्य पुलिस के ‘ऑपरेशन अमृतपाल’ के बाद पंजाब में शांति है, वहीं मुख्य रूप से कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में विदेशों में बसे मुट्ठी भर मज़दूर वर्ग के सिख इन देशों में ख़ालिस्तानी गुंडागर्दी के पीछे की ताक़त हैं।

Indianarrative.com ने इस स्थिति को लेकर जानकारी प्राप्त करने के लिए तीन देशों में कुछ अनिवासी भारतीयों से सीधे टेलीफ़ोन पर संपर्क किया। ओटावा के एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर, अजयदीप सिंह ग्रेवाल कहते हैं, “ऑपरेशन अमृतपाल के बाद मॉन्ट्रियल और ओटावा के लगभग 70 सिखों का एक समूह 19 मार्च को भारतीय उच्चायोग के सामने इकट्ठा हुआ और शांतिपूर्ण विरोध किया।”

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मॉन्ट्रियल और ओटावा में बसे लगभग 45,000 सिखों की कुल आबादी में से तक़रीबन 70 विरोध करने पहुंचे और कोई भी सफ़ेदपोश नौकरी नहीं कर रहा था। ये लोग सिखों के कम पढ़े-लिखे श्रमिक वर्ग से थे, जो बहुत समय पहले शरणार्थी के रूप में कनाडा में दाखिल हुए थे।

कनाडा में यदि कोई विरोध हिंसक होता है, तो इन प्रतिभागियों पर आरोप लगाया जा सकता है और भारी जुर्माना लगाया जा सकता है। ग्रेवाल ने कहा, “मैंने कभी किसी सफ़ेदपोश नौकरी करने वाले को इस तरह के विरोध का हिस्सा होते नहीं देखा।”

टोरंटो के पास मार्खम शहर के कैप्टन तजिंदर सिंह चंद कहते हैं, “अमृतपाल द्वारा शुरू किया गया बपतिस्मा और नशा विरोधी अभियान सराहनीय है, लेकिन जिस तरह से वह उन्हें गुरु के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए तैयार होने के लिए प्रेरित करता है, वह अच्छा नहीं है।”

कैप्टन चंद कहते हैं, “बपतिस्मा प्राप्त सिख खालसा राज बनाने के लिए हिंदू राज्य से लड़ते हुए खालिस्तान की शिक्षा से गुज़रते हैं और फिर ‘सचखंड’ (स्वर्ग) में चले जाते हैं, यह युवाओं के ग़लत तरीक़े से कट्टरपंथ की ओर ले जाता है।”

अमेरिका में सैक्रामेंटो में बसे जगमोहन सिंह रंधावा का विचार है कि खालिस्तानी मुट्ठी भर ऐसे बदमाश हैं, जो इस समुदाय को बदनाम कर रहे हैं।उनका कहना है कि बहुत कम सिखों के पास ऐसे विरोधों के लिए ख़ाली समय है।

वह कहते हैं,“वे कहां खालिस्तान बनाने जा रहे हैं ? अमेरिका, कनाडा या भारत में ? यदि वे सफल भी हो जाते हैं,तो सवाल है कि जिनके साथ खालिस्तान सरकार व्यापार करेगी, तो वे सेना कहां से लायेंगे, क्या पाकिस्तान सिखों के लिए अपनी सीमायें खोल देगा या भारत से सटे खालिस्तान के साथ व्यापार करेगा ?”

मेलबर्न के पारितोष पराशर का मानना है कि ऑपरेशन अमृतपाल के बाद ऑस्ट्रेलिया में शांति है और पंजाबी सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। लेकिन, निश्चित रूप से प्रवासी भारतीयों के बीच इसकी काफ़ी चर्चा हो रही है।

सिडनी में बसे टर्बंस फ़ॉर ऑस्ट्रेलिया के संस्थापक अमर सिंह कहते हैं, ‘हम इसलिए चिंतित हैं, क्योंकि पंजाब में नागरिक स्वतंत्रता निलंबित कर दी गयी है। पूरे राज्य में इंटरनेट सेवाओं के बंद होने से डर का माहौल पैदा हो गया है।’

अमर सिंह कहते हैं कि पुलिस ने जो तरीक़ा अपनाया हुआ है, वह ठीक नहीं है। इन गर्मियों में भारत आने वाले एनआरआई को अपनी उड़ानें रद्द करनी पड़ी हैं और वे अपने रिश्तेदारों से नहीं मिल पा रहे हैं।

यह बात कोई आम आदमी भी समझ सकता है कि अर्ध-साक्षर सिखों की एक छोटी संख्या, जो मज़दूरों के रूप में काम करती है, अलगाववादियों के बहकावे में आ जाती है।