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भारत के इस कदम से चीन में खलबली! सेमीकंडक्‍टर ड्रीम को बता रहा दूर की कौड़ी, जानें क्‍यों बौखला रहा ड्रैगन

India China Relations

चीन (China) को सेमीकंडक्टर निर्माण का महाराजा माना जाता है, मगर इस सेक्टर में इसकी सबसे बड़ी खामी बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए प्रतिभा को सुरक्षित करने की क्षमता रही है। अब भारत इस सेक्‍टर में आगे बढ़ने का सोच रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि चीन इस बात से खासा निराश है। तभी शायद उसका मानना है कि जिस समस्‍या से वह गुजर रहा है, भारत को भी उसका सामना करना पड़ेगा। साथ ही उसकी खिसियाहट भी सामने आ गई है। भारत और चीन के बीच चिप वॉर कहीं न कहीं ड्रैगन को परेशान करने वाला साबित हो सकता है।

चीन खिसियाया गया

चीन (China) की न्‍यूज एजेंसी शिन्‍हुआ ने भारत को ‘विदेशी निवेश की कब्रगाह’ करार दिया है। चीन की यह निराशा ऐसे ही नहीं है बल्कि भारत के सेमीकंडक्‍टर्स लक्ष्‍य की वजह से वह काफी खिसियाया हुआ सा लगता है। चीन की सरकारी मीडिया का कहना है कि भारत की सेमीकंडक्‍टर महत्‍वकांक्षा को भेदभावपूर्ण से भरी व्यावसायिक प्रथाओं की वजह से संदेह की दृष्टि देखा जाना चाहिए। यही नहीं चीन की सरकारी मीडिया का कहना है कि भारत के नेता, राजनयिक और इंड्रस्टियलिस्‍ट इस समय ‘चिप युद्ध’ के बुखार की कल्‍पना करने में बिजी हैं। जबकि उन्‍हें इस बात का अहसास ही नहीं है कि प्रतिभा, बुनियादी ढांचा और तेजी से बदलती प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र की सदियों पुरानी समस्या भारत के नजरिए को नुकसान पहुंचाने वाला साबित हो सकती है। शंघाई स्थित चीन की वेबसाइट गुआंचा का कहना है कि आईबीएम, सैमसंग, श्याओमी और बाकी कंपनियों पर भारत ने जुर्माना लगाया गया था। इन कंपनियों को सजा दिए जाने की वजह हमेशा टैक्‍स से जुड़ी थी।

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भारत का उड़ाया मजा‍क

पीएम मोदी ने हाल ही में गुजरात के गांधीनगर में सेमीकॉनइंडिया के दूसरे संस्करण का उद्घाटन किया। साथ ही भारत में सेमीकंडक्टर मैन्‍युफैक्‍चरिंग सुविधाओं के लिए कंपनियों को असाधारण तौर पर 50 फीसदी वित्तीय सहायता की पेशकश भी की है। गुआंचा ने एक आर्टिकल में भारत पर लगाया है कि वह सेमीकंडक्टर कंपनियों को आकर्षित करने की अपनी क्षमता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है और अपने वादों को पूरा नहीं करता है। इसमें मोदी सरकार के साल 2021 की उस घोषणा का जिक्र है जिसमें सेमीकंडक्टर सब्सिडी की बात कही गई थी। चीन की मीडिया का कहना है कि अमेरिका के समर्थन के बावजूद भारत का रास्‍ता कठिन है। उसकी मानें तो सेमीकंडक्टर महत्वाकांक्षा में भारत के सामने मौजूद मुश्किलों के सही तरह से बताया नहीं गया है। भारत को दो साल में सेमीकंडक्टर बेस के तौर पर बदलने की बात कही जा रही है और यह समयसीमा बहुत ही अवास्तविक है।