हाल की सालों में चीन दुनिया के कई देशों में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहा है। कई छोटे देशों में चीन ने तेजी से विस्तार किया है। ऐसे में जिन-जिन देशों को चीन ने लालच दिया है वो-वो देश उसकी कर्ज जाल में फंसते जा रहे हैं। अमेरिका ने भी चीन पर आरोप लगाया है कि, बीजिंग कर्ज कूटनीति के जरिए विकासशील देशों को चीन पर अधिक निर्भर बना रहा है। पिछले एक दशक में चीन दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी लेनदार बन गया है। श्रीलंका में जो हाल है वो देन ड्रैगन की ही है। भारत के साथ चीन की कर्ज का कोई मसला नहीं है लेकिन, सीमा का जरूर है। चीन और भारत के बीच बॉर्डर गतिरोध दो साल से अधिक समय से बना हुआ है। अब खबर है कि ड्रैगन पैंगोंग लेक पर पुल बना रहा है जो भारी हथियारों को ले जाने में सक्षम होगा।
गलावन वैली को लेकर चीन की भारत के साथ दो-दो हाथ हो चुकी है जिसमें ड्रैगन को करारा झटका लगा था। लेकिन, इसके बाद भी ड्रैगन की अकड़ कम नहीं हुई है। नई मीडिया रिपोर्टों की माने तो, चीन ने पहले पुल का निर्माण 2021 के आखिरी में शुरू किया था जिसका काम पिछले महीने खत्म हो गया। पैंगोंग लेक पर चीन जो नया पुल बना रहा है उसके लिए पुराने पुल को सर्विस ब्रिज के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है।
रिपोर्ट्स की माने तो, पहले पुल का इस्तेमाल चीन अपने क्रेन को तैनात करने और अन्य निर्माण इक्विपममेंट्स लाने के लिए कर रहा है। इसके ठीक बगल में एक नया पुल पुराने पुल से बड़ा और चौड़ा बनाया जा रहा है। पिछले करीब 20 दिनों से इस पुल का निर्माण कार्य जारी है। नया पुल दोनों ओर से एकसाथ बनाया जा रहा है। जब चीन पैंगोंग लेक पर पहला पुल बना रहा था तो सूत्रों ने कहा था कि भारतीय सेना के अगस्त 2020 जैसे ऑपरेशन का मुकाबला करने के लिए चीन पुल बना रहा था।
बता दें कि इस ऑपरेशन के तहत भारत ने पैंगोंग लेक के दक्षिणी तट के रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया था। उस वक्त कहा गया कि, पुल का मकसद रुडोक के रास्ते खुर्नक से दक्षिणी तट तक 180 किलोमीटर के लूप को काटना था। यानी कि, उस पुल के बनने से खुर्नक से रुडोक का रास्ता 40-5- किलोमीटर तक कम हो जाएगा। यह नया पुल चीनी सैन्य बुनियादी ढांचे की एक श्रृंखला का हिस्सा हैं जो चीनी पूर्वी लद्दाख में बना रहे हैं।
रिपोर्टों की माने तो, चीन पैंगोंग लेक के दक्षिणी तट पर भारतीय सेना के किसी भी संभावित ऑपरेशन का मुकाबला करने के लिए कई रास्ते पर काम कर रहा है। हालांकि नई दिल्ली ने साफ कहा है कि हम लाइन ऑफ एक्चुअल पर युद्ध नहीं चाहते हैं लेकिन अगर बीजिंग तनाव को बढ़ाने की कोशिश करता है तो नतीजे की चिंता किए बिना हम जोरदार प्रतिक्रिया देंगे।