China Russia Relations: चीन और रूस की दोस्ती का असर अब ताइवान में भी दिखने लगा है। जी हां, मंगलवार को ताइवान ने अपने पूर्वी तट पर दो रूसी युद्धपोतों को डिटेक्ट किया। इसके बाद ताइवान ने रूसी जहाजों की गतिविधियों पर नजर बनाए रखने के लिए अपने विमानों और युद्धपोतों को तैनात कर दिया। ताइवान के राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार देर रात एक बयान में कहा कि रूसी युद्धपोतों को स्थानीय समयानुसार रात 11 बजे हमारे पूर्वी तट के पानी में दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए देखा गया था। बयान में कहा गया है कि रूसी युद्धपोत ताइवान के बंदरगाह शहर सुआओ से दक्षिण-पूर्वी दिशा में हमारे प्रतिक्रिया क्षेत्र से चले गए। सुआओ में ताइवान का बड़ा नौसैनिक अड्डा भी है।
रूसी युद्धपोतों की मौजूदगी असामान्य
ताइवान ने यह नहीं बताया कि रूसी युद्धपोत उसके तट से कितनी दूरी पर थे। ताइवान अक्सर अपने आसपास चीनी जहाजों और युद्धपोतों की मौजूदगी का पता लगाता रहता है। चीन शुरू से ही ताइवान पर अपना दावा करता है और उसके लिए बल प्रयोग की संभावना से भी इनकार नहीं करता है। हालांकि, इस क्षेत्र में रूसी युद्धपोतों की उपस्थिति अधिक असामान्य है। इसे चीन के साथ रूस की दोस्ती से भई जोड़कर देखा जा रहा है। अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों के खिलाफ चीन और रूस ने अपनी दोस्ती को काफी ज्यादा मजबूत किया है।
रूसी युद्धपोत कर रहे थे मिसाइल हमले का अभ्यास
रूस की इंटरफैक्स समाचार एजेंसी ने मंगलवार को बताया कि रूसी प्रशांत बेड़े के जहाजों की एक टुकड़ी दक्षिण चीन सागर को पार करने के बाद फिलीपीन सागर के दक्षिणी हिस्सों में प्रवेश कर गई थी। इंटरफैक्स ने कहा कि ये युद्धपोत लंबी दूरी की समुद्री क्रॉसिंग के हिस्से के रूप में कार्य कर रहे थे, जिसमें समुद्र से एक नकली दुश्मन के मिसाइल हमले को विफल करने के लिए एक नकली नौसैनिक युद्ध शामिल था।
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रूस-चीन दोस्ती से बढ़ी दुनिया की टेंशन
रूस और चीन के संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं। यूक्रेन पर आक्रमण के ठीक पहले शी जिनपिंग ने चीन की यात्रा की थी। तब उन्होंने शीतकालीन ओलंपिक खेलों के अंतरराष्ट्रीय बॉयकॉट को लेकर चीन का समर्थन किया था। इसके बाद शी जिनपिंग ने भी कोविड महामारी के बाद अपनी पहली यात्रा के तौर पर रूस को चुना। इस दौरान उन्होंने रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर एक शांति प्रस्ताव भी पेश किया था। चीन और रूस अमेरिका के खिलाफ सैन्य गठजोड़ भी बना रहे हैं। इसका असर प्रशांत महासागर में दोनों देशों की नौसेनाओं की उपस्थिति पर भी देखा जा रहा है।