तिब्बत पर चीन का अत्याचार किसी से छिपा हुआ नहीं है और यह साम्यवादी राष्ट्र अब उनकी निगरानी के लिए लोगों का जैविक डेटाबेस बनाने के लिए बड़े पैमाने पर डीएनए परीक्षण कर रहा है।
विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में पुलिस जून, 2016 से पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाते हुए एक सामूहिक डीएनए संग्रह कार्यक्रम में लगी हुई है। यह अभियान किसी आपराधिक जांच-पड़ताल से नहीं जुड़ा है,बल्कि इसका मक़सद उन्हें अपने नियंत्रण में रखना है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने चीन द्वारा तिब्बत में तिब्बतियों से डीएनए को बलपूर्वक एकत्र करने की ख़बरों पर चिंता व्यक्त की है।
सचिव ब्लिंकेन ने कहा कि वह “तिब्बत की आबादी पर नियंत्रण और निगरानी के एक अतिरिक्त रूप के रूप में तिब्बत में बड़े पैमाने पर डीएनए संग्रह” के प्रसार की रिपोर्ट को लेकर चिंतित हैं।
एक नागरिक समाज संगठन-सिटिजन्स लैब द्वारा किए गए शोध में कहा गया है कि यह सामूहिक डीएनए संग्रह तिब्बती लोगों के ख़िलाफ़ निर्देशित सामाजिक नियंत्रण का एक रूप है।
सितंबर, 2021 में जारी ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी अधिकारी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के कई क़स्बों और गांवों में निवासियों से मनमाने ढंग से डीएनए एकत्र करने सहित पुलिसिंग में काफी वृद्धि कर रहे हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लोग अपना डीएनए उपलब्ध कराने से इनकार नहीं कर सकते हैं और चीनी पुलिस को नमूने मांगने के लिए किसी भी आपराधिक आचरण के विश्वसनीय सबूत की आवश्यकता भी नहीं है।
सितंबर, 2022 में जारी सिटीजन लैब की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी सरकार ने तिब्बत में लगभग एक तिहाई आबादी से आनुवंशिक सामग्री एकत्र की है।ऐसा करते हुए 3.6 मिलियन लोगों में से 1.2 मिलियन लोगों से स्पष्ट रूप से सहमति पाने की कोई कोशिश भी नहीं की गयी है।
तिब्बतियों के लिए समर्थन जुटाने वालाे एक समूह-इंटरनेशनल कैंपेन फ़ॉर तिब्बत का कहना है कि “तिब्बत पर अपने क्रूर कब्ज़े के दौरान चीन ने बड़े पैमाने पर डीएनए संग्रह के इस भयानक अभियान सहित सामाजिक नियंत्रण के इन तरीक़ों के लिए तिब्बत को एक प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल किया है।”
चीनी कब्ज़े के तहत तिब्बत को 1949 से दमन किया गया है, जब चीन जनवादी गणराज्य की स्थापना हुई थी। 1950 में चीन में नव स्थापित कम्युनिस्ट शासन ने उनके भरपूर प्राकृतिक संसाधनों का दावा करने और उनके सभी क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करने के लिए तिब्बत पर आक्रमण कर दिया था। तब से तिब्बती अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं और उन्होंने भारत के धर्मशाला में निर्वासन में अपनी सरकार बनायी हुई है।