जी-20 की अध्यक्षता वाले साल में भारत ने अंतरराष्ट्रीय तालमेल बढ़ाने पर जोर दिया है। ऐसे में, कनाडा के साथ संबंध बेहतर बनाना स्पष्ट रूप से सरकार के एजेंडे में है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर नई दिल्ली में कनाडा की विदेश मंत्री मेलानी जॉली के साथ द्विपक्षीय वार्ता की मेजबानी कर रहे हैं। सुश्री जोली की इस यात्रा के बाद, जी-20 सम्मेलन से पहले अभी कई और मंत्री स्तरीय बैठकों का दौरा होगा और खुद सुश्री जोली मार्च में जी-20 विदेश मंत्री स्तरीय बैठक में हिस्सा लेने और उसके बाद कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के साथ शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने फिर से दिल्ली आएंगी। संबंधों में प्रगाढ़ता की एक वजह कनाडा और चीन के बीच बिगड़ते संबंध भी हैं। नवंबर में कनाडा ने अपनी हिंद-प्रशांत कूटनीति की घोषणा की।
इसमें उसने चीन को ‘नए समीकरण रचने वाली वैश्विक शक्ति’ बताने के साथ-साथ भारत को लोकतंत्र और बहुलतावाद की साझी परंपरा वाला “अहम भागीदार” करार दिया। इसके अलावा, चीन के साथ पर्याप्त आर्थिक जुड़ाव को बाकी देशों के साथ साझा करने के लिए कनाडा द्वारा नए बाजार की खोज, कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने की भारत की मुहिम के साथ मेल खाती है। अधिकारी इस दिशा में काम कर रहे हैं कि वे इस साल “प्रारंभिक प्रगति व्यापार समझौते” की घोषणा कर सकें। साथ ही, उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही एक व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते को हासिल कर लिया जाएगा। खास तौर पर अगर इसे 2018 में श्री ट्रूडो की खराब भारत यात्रा और 2020-21 में मोदी सरकार द्वारा किसान आंदोलन से निपटने के तरीकों को लेकर उनकी आलोचना के बाद रद्द कर दी गई राजनयिक गतिविधियों के लिहाज से देखें, तो द्विपक्षीय गतिविधियों में इस बार दिखाई जाने वाली तेजी पिछली घटनाओं के बिल्कुल उलट है। श्री ट्रूडो द्वारा पिछले साल जर्मनी में जी-7 शिखर सम्मेलन के मौके पर श्री मोदी से मुलाकात किए जाने के बाद संबंध बहाली शुरू हुई।
कई मुद्दों को सुलझाया जाना बाकी है। नई दिल्ली ने खालिस्तानी अलगाववाद के पुनरुत्थान और कनाडा में रहने वाले सिख समुदाय की तरफ से “जनमत संग्रह” की मांग के ऊपर लगातार चिंता जाहिर की है। साथ ही, वहां रहने वाले भारतीय मूल के लोगों के ऊपर हिंसा और तोड़-फोड़ की घटनाओं का भी मसला है। इसके अलावा, अधिकारों और स्वतंत्रता समेत भारत के अंदरूनी मामलों पर कनाडा द्वारा की जाने वाली टिप्पणी हमेशा राजनयिक संबंधों पर चोट पहुंचाती है।
यह इस द्विपक्षीय संबंध में पिरोया गया ऐसा धागा है जिसने कनाडा में मौजूद भारतीय छात्रों और भारतीय मूल के लोगों की बड़ी आबादी के बावजूद, पिछले कई दशकों में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। कनाडा भारत के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ने वाले शुरुआती देशों में से एक था, लेकिन 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद यह रिश्ता टूट गया। वर्ष 1980 के दशक में जब संबंधों में सुधार होना शुरू हुआ, तो 1985 में एयर इंडिया के विमान में धमाका करने वाले अलगाववादी खालिस्तानी समूहों को शरण देने को लेकर भारत कनाडा से नाराज था। वर्ष 2010 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कनाडा यात्रा, असैन्य परमाणु सहयोग पर एक समझौता, और 2015 में श्री मोदी की कनाडा यात्रा के साथ संबंधों में फिर से बहाली हुई। हालांकि, 2018 में इसमें फिर से दरार आ गई। इस साल, ऐसा लग रहा है कि संबंधो को नए मुकाम तक पहुंचाने के लिए सही समय और नीयत के साथ दोनों देश आगे बढ़ रहे हैं। इससे कूटनीतिक और आर्थिक लाभ हासिल हो सकता है, बशर्ते दोनों पक्ष रास्ते में आने वाले संभावित राजनीतिक चूकों से बचकर चलने पर ध्यान केंद्रित करें।