Hindi News

indianarrative

चीन की नापाक कोशिश: बौद्ध धर्म को उसकी भारतीय जड़ों से काटने की क़वायद

चीन में लिंगशान दर्शनीय क्षेत्र विश्व बौद्ध मंच का स्थायी स्थल वूशी

चंदन कुमार  

2021 में धार्मिक मामलों से संबंधित कार्य पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था, “चीन में प्रचलित धर्मों को चीनोन्मुख होना चाहिए।”

इसके बाद तो चीन धीरे-धीरे बौद्ध धर्म पर चीन के स्वयं के स्वदेशी आख्यान का निर्माण होता रहा है, जो सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ चाइना (सीपीसी) की क़रीबी देखरेख में एक बहुत ही नियंत्रित और विनियमित प्रयास पर आधारित है। साथ ही चीन ने नास्तिकता के साथ अपने जुड़ाव को छिपाने के लिए एक सॉफ्ट पावर टूल के रूप में बौद्ध धर्म की महत्वपूर्ण प्रासंगिकता को महसूस किया है। चीन विदेशों में भी अपनी आर्थिक और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के लिए चतुराई से बौद्ध आख्यान का इस्तेमाल कर रहा है।

बौद्ध धर्म को एक स्वदेशी धर्म घोषित करने में सीपीसी ने तर्क दिया है कि बौद्ध धर्म के जन्मस्थान, भारत में इस आस्था को नष्ट कर दिया गया। तत्पश्चात चीन ने बौद्ध धर्म का पालन-पोषण किया, जहां से यह दक्षिण पूर्व एशिया और जापान में फैल गया। यह घोषणा बौद्ध धर्म बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत एक नये वैश्विक बौद्ध नेटवर्क को साधने के चीन के बड़े प्रयास के हिस्से के रूप में की गयी है। इस परियोजना का उद्देश्य प्राचीन बौद्ध संबंधों को पुनर्जीवित करना और उन क्षेत्रों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम से इसे बढ़ावा देना है, जिनके माध्यम से BRI जुड़े हुए हैं। हाल के वर्षों में चीन सॉफ्ट पावर प्रोजेक्शन के एक साधन के रूप में बौद्ध धर्म के प्रचार और उपयोग के माध्यम से भू-सांस्कृतिक कूटनीति के एक अनूठे रूप में सक्रिय रूप से संलग्न रहा है।

चीनी बौद्ध कूटनीति एक ऐसा दृष्टिकोण है, जो अपनी समृद्ध बौद्ध विरासत का लाभ उठाकर और दुनिया भर के बौद्ध समुदायों के साथ जुड़कर चीन के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास करता है। इस रणनीति में सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम, बुनियादी ढांचे के विकास, वित्तीय सहायता और बौद्ध संगठनों की स्थापना सहित विभिन्न पहलें शामिल हैं।

बौद्ध धर्म के प्रति चीन की प्रतिबद्धता 2006 में ही स्पष्ट हो गयी थी, जब उसने विश्व बौद्ध मंच की स्थापना की थी। फ़ुज़ियान प्रांत में आयोजित इस मंच के हाल के पांचवें सत्र में बौद्ध धर्म के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया और बीआरआई का समर्थन करने का संकल्प लिया गया। इस पहल का उद्देश्य चीन और अन्य देशों के बीच बौद्ध धर्म के साथ एक सामान्य जुड़ाव के रूप में आर्थिक और सांस्कृतिक संपर्क को बढ़ावा देना है।

चीन की रणनीति के प्रमुख पहलुओं में से एक बोधिसत्वों और पवित्र बौद्ध स्थलों को धार्मिक तीर्थ स्थलों के रूप में बढ़ावा देना है। भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अवलोकितेश्वर, अमिताभ और मंजुश्री जैसे बोधिसत्वों पर प्रकाश डाला जा रहा है। इसके अतिरिक्त, चीन भारत में बौद्ध पवित्र स्थलों की नक़ल कर रहा है, वूशी में ब्रह्मा पैलेस को राजगीर की प्रतिकृति के रूप में दिखाया जा रहा है।

अपने बौद्ध प्रभाव को और मज़बूत करने के लिए चीन गेलुग स्कूल के शुगदेन गुट का समर्थन करता रहा है। स्विटज़रलैंड स्थित शुगडेन समूह के सहयोग से चीन ने वार्षिक दीपंकर अतिशा शांति पुरस्कार की स्थापना की है, जो शुगदेन शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करता है।

चीन के प्रयास अपनी सीमाओं से परे फैले हुए हैं, जिसमें नेपाल एक महत्वपूर्ण केंद्र है। चीन का उद्देश्य राजकुमार सिद्धार्थ की जन्मस्थली लुम्बिनी को विकसित करके बुद्ध के ज्ञानोदय के स्थान बोधगया के धार्मिक प्रभाव का मुक़ाबला करना है। लुम्बिनी और काठमांडू के बीच एक प्रस्तावित रेल लिंक, जो ल्हासा और चीन के अन्य बौद्ध स्थलों से जुड़ जायेगा, का उद्देश्य चीनी पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाना है।

पाकिस्तान ने भी बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने के अपने प्रयासों से चीन का ध्यान आकर्षित किया है। गांधार ट्रेल का विकास, जो पाकिस्तान को दक्षिण कोरिया और जापान से जोड़ता है, एक प्राथमिकता है। गांधार विश्वविद्यालय की स्थापना और स्वात घाटी में तिब्बती बौद्ध धर्म के संस्थापक गुरु पद्मसंभव की जन्मस्थली का प्रचार-प्रसार चीन के इरादों की मिसाल है। चीनी अधिकारी दुनिया भर से तिब्बती बौद्ध धर्म के चीनी अनुयायियों को आकर्षित करने के उद्देश्य से भूटान से बौद्ध भिक्षुओं को स्वात में पौराणिक ओडियाना ले जा रहे हैं।

बांग्लादेश में बौद्ध धर्म के दूसरे आगमन के जन्मस्थान से जुड़े एक श्रद्धेय बौद्ध व्यक्ति अतिश दीपंकर को महत्व देते हुए चीन ने कोमिला में बौद्ध स्थलों के संरक्षण के लिए वित्तीय और तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान की है। चीन-बांग्लादेश की एक संयुक्त टीम ने भी बिक्रमपुर के खंडहरों की खुदाई की है, जबकि चीन ने विभिन्न निकायों के लिए भारी दान के माध्यम से श्रीलंका में प्रभावशाली बौद्ध भिक्षुओं को शामिल किया है।

तिब्बती बौद्ध धर्म में चीन के प्रयास विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दलाई लामा के भविष्य के उत्तराधिकार सहित पुनर्जन्म वाले लामाओं के चयन और मान्यता को नियंत्रित करने के लिए चीनी सरकार ने क़दम उठाये हैं। इन उपायों के माध्यम से चीन का उद्देश्य धार्मिक नेतृत्व को आकार देना और तिब्बती बौद्ध धर्म के आसपास के आख्यान पर नियंत्रण स्थापित करना है। यह दृष्टिकोण, हालांकि विवादास्पद है, लेकिन चीन को दुनिया भर में तिब्बती बौद्ध समुदायों पर अपने प्रभाव को और मज़बूत करने की स्थिति बनाता है। 15वें दलाई लामा के उत्तराधिकार के लिए चीन की तैयारी ने चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि वह इस प्रक्रिया पर नियंत्रण करना चाहता है।

मठों में भिक्षुओं की संख्या को कम करके और रणनीतिक रूप से आज्ञाकारी मठ प्रमुखों की नियुक्ति करके चीन का लक्ष्य भिक्षुओं का एक ऐसा वफादार समूह बनाना है, जो उसके हितों के अनुरूप हो। अपने प्रभाव को और मज़बूत करने के लिए चीन ने लामाओं के पुनर्जन्म के लिए प्रबंधन उपायों पर आदेश संख्या 5 को लागू किया है, जो उसे पुनर्जन्म की पहचान और मान्यता पर अधिकार प्रदान करता है। पहले से ही चीन ने अगले दलाई लामा के चयन पर नियंत्रण करने के लिए प्रमुख तिब्बती बौद्ध विभूतियों जैसे पंचेन लामा, पेनोर, रेटिंग और एडो रिनपोचेस पर प्रभाव डालकर पहले ही क़दम उठा लिए हैं। ये कार्रवाइयां उत्तराधिकार प्रक्रिया में हेरफेर करने और तिब्बती बौद्ध धर्म पर अपनी शक्ति को मज़बूत करने के चीन के प्रयासों को उजागर करती हैं।

चीनी बौद्ध कूटनीति में वित्तीय सहायता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चीन ने विभिन्न देशों में बौद्ध संगठनों और मठवासी समुदायों को दान दिया है। ये दान न केवल धार्मिक संस्थानों के रखरखाव में मदद करते हैं बल्कि बौद्ध शिक्षाओं और प्रथाओं के प्रचार को भी सक्षम बनाते हैं। प्रभावशाली बौद्ध भिक्षुओं और संगठनों को आर्थिक रूप से समर्थन देकर चीन रिश्तों को विकसित करने और वैश्विक बौद्ध समुदाय के भीतर प्रभाव हासिल करने की कोशिश करता है।

अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संगठनों पर भी चीन का प्रभाव बढ़ रहा है। इसने वेसाक दिवस की अंतर्राष्ट्रीय परिषद (आईसीडीवी), बौद्धों की विश्व फैलोशिप और कोरिया और ताइवान के अन्य संगठनों पर काफी प्रभाव डाला है। यह प्रभाव ICDV द्वारा किए गए कॉमन टेक्स्ट प्रोजेक्ट (CTP) से स्पष्ट है, जहां तिब्बती विद्वानों को हाशिए पर रखा गया है, और चीनी ग्रंथों को पारंपरिक तिब्बती स्रोतों पर प्रमुखता दी गयी है।

2021 में चीन ने दक्षिण चीन सागर के बौद्ध देशों को प्रभावित करने के लिए दक्षिण चीन सागर बौद्ध धर्म फाउंडेशन शुरू किया था। पहला दक्षिण चीन सागर गोलमेज सम्मेलन 2021 में शेन्ज़ेन में आयोजित किया गया था और दूसरा नोम पेन्ह, कंबोडिया में आयोजित किया गया था। इस गोलमेज सम्मेलन का उद्देश्य दक्षिण चीन सागर में बौद्ध मंदिरों और मठों के साथ सहयोग करना है।

एक नयी बौद्ध व्यवस्था बनाने और वैश्विक बौद्ध समुदाय में अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए चीन के ये प्रयास महत्वपूर्ण हैं। बौद्ध धर्म को स्वदेशी चीनी धर्म के रूप में बढ़ावा देकर और अपनी आर्थिक शक्ति का लाभ उठाकर चीन का उद्देश्य बौद्ध धर्म के भविष्य को आकार देना और BRI जैसी पहलों के माध्यम से सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है। जहां इन कार्रवाइयों को समर्थन और आलोचना दोनों मिल रहे हैं, वहीं ये प्रयास निस्संदेह बौद्ध धर्म के परिदृश्य और उसमें चीन की भूमिका में एक महत्वपूर्ण विकास को चिह्नित करते हैं।

चीन के पर्यवेक्षक दृढ़ता से महसूस करते हैं कि एक नास्तिक राज्य होने के नाते जहां पार्टी पूरी तरह शक्तिशाली और नियंत्रण की स्थिति में है, और जहां तिब्बतियों और उइगरों को अंतहीन रूप से सताया जाता है, वहीं चीन बौद्ध धर्म का उपयोग अपने स्पष्ट रूप से उदार रवैये को प्रदर्शित करने के लिए करना चाहता है। चीन का उद्देश्य देश की राजनीतिक और आर्थिक रणनीतियों में अधिकतम लाभ हासिल करने के लिए बौद्ध धर्म का उपयोग करना है और इसलिए चीन की बीआरआई पहल को ‘बीबीआरआई’ – बौद्ध बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के रूप में संदर्भित किया जा सकता है। हालांकि, बाहर की दुनिया के लिए जो मायने रखता है, वह यह है कि चीन वास्तविक रूप से अपने समग्र मानवाधिकार रिकॉर्ड और धार्मिक स्वतंत्रता परिदृश्य से कैसे निपटता है।