अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान के साथ टीटीपी यानी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का जुड़ाव काफी गहरा रहा है। भले ही वो इसे जाहिर न करते हों लेकिन टीटीपी अक्सर तालिबान की तारीफ में कसीदे पढ़ता रहता है। कई मौकों पर टीटीपी यह भी कहता हुआ नजर आया है कि उसका संगठन 'इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान' तालिबान की एक ब्रांच है। उसका मकसद पाकिस्तान में शरिया लागू करना है और वे अंतिम दम तक इसके लिए लड़ेंगे।
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टीटीपी तालिबान को दोनों के बीच घनिष्ठ सहयोग की याद दिलाने का अवसर भी नहीं गंवा रहा है। टीटीपी अक्सर अफगानिस्तान में तालिबान की गतिविधियों में उनके योगदान पर बयान देता रहता है। टीटीपी मीडिया ने 8 दिसंबर को पश्तो में 52 मिनट का एक वीडियो जारी किया, जिसमें टीटीपी का सरगना नूर अली महसूद को अपने सहयोगियों के साथ पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के मलकंद, बाजौर, मर्दन, पेशावर, खैबर, दारा आदमखेल और हजारा सहित विभिन्न जिलों का दौरा करते हुए देखा जा सकता है। खास बात यह है कि इस वीडियो के सबटाइटल उर्दू में थे।
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टीटीपी अक्सर अफगानिस्तान में तालिबान की गतिविधियों में उनके योगदान पर बयान देता रहता है। अफगानिस्तान में संघर्ष में टीटीपी के योगदान की सराहना करते हुए नूर अली ने यह भी जिक्र किया है कि स्वात घाटी से 10,000 से अधिक लड़ाके और महसूद जनजाति के लगभग 18,000 लोग, जिनमें 1,000 से अधिक आत्मघाती हमलावर शामिल थे, तालिबान की मदद के लिए अफगानिस्तान गए थे। तालिबान के साथ टीटीपी के रिश्ते मजबूत हैं और दोनों पक्षों के बीच अलग-अलग बैक चैनल काम कर रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान को अब लगने लगा है कि तालिबान के साथ टीटीपी के रिश्ते को देखते हुए आगे काफी चुनौतियां देखने को मिल सकती हैं।