यह बात किसी से छुपी नहीं है कि तालिबान के ऊपर पाकिस्तान का कितना बड़ा हाथ है। पाकिस्तान शुरुआत से ही चरमपंथी संगठन की मदद कर रहा है। अब पाकिस्तान ने तालिबान को चुपचाप अपने यहां पर काम शुरू करने की मंजूरी दे दी है। दरअसल, पाकिस्तान ने उन राजनयिकों को अपने यहां का अफगान दूतावास और वाणिज्य दूतावासों का प्रभाव संभालने की अनुमति दे दी है, जिन्हें तालिबान ने नियुक्त किया है। पाकिस्तान ने ये मंजूरी चुपचाप दी है।
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मीडिया में आ रही खबरों की माने तो कहा जा रहा है कि, पाकिस्तान तालिबान को काबुल में वैध सरकार नबीं मानता है, लेकिन फिर भी उसने तालिबान द्वारा नियुक्त राजनयिकों को वीजा जारी किया है। सरदार मुहम्मद शोकैब ने इस्लामाबाद स्थित अफगान दूतावास में प्रथम सचिव के तौर पर कामकाज शुरू कर दिया है, वहीं हाफिज मोहिबुल्ला, मुल्ला गुलाम रसूल और मुल्ला मुहम्मद अब्बास को पेशावर, क्वेटा और कराची स्थित अफगानिस्तान के वाणिज्य दूतावासों के लिए भेजा गया है। शोकैब प्रभावी तौर पर इस्लामाबाद में अफगान मामलों के प्रभारी होंगे।
यहां अफगान दूतावास में जुलाई से कोई राजदूत नहीं है, जब पिछली अफगान सरकार के अधीन पिछले राजदूत रहे नजीबुल्ला अलीखिल अपनी बेटी सिलसिला अलीखिल के कथित अपहरण के कारण पैदा हुए विवाद के बाद चले गए थे। सरदार मुहम्मद शोकैब के बारे में वॉइस ऑफ अमेरिका की एक खबर में बताया गया है कि वह जाबुल प्रांत के पश्तून मूल के नागरिक हैं, जो दक्षिण कंधार में सूचना और संस्कृति विभाग में सेवाएं दे चुके हैं और तालिबान की एक पत्रिका से जुड़े थे। एक समय वह कारी यूसूफ अहमदी (Qari Yusuf Ahmadi) के नाम से तालिबान प्रवक्ता के रूप में काम करते थे और उन्हें पाकिस्तान में गिरफ्तार किया गया था और बाद में वह कई साल तक पेशावर में रहे।
पाकिस्तान के इस कदम पर दुनिया जरूर कड़ा रुख अपना सकती है। क्योंकि हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा था कि सरकारों को तालिबान को मान्यता देने में जल्दी नहीं दिखानी चाहिए। ऐसे में राजूदतों को मंजूरी देकर इमरान सरकार ने दुनिया को खुलेआम संकेत दे दिया है कि वो तालिबान सरकार को मान्यता देने में कोई कसौटी नहीं छोड़ेंगे।