दुनिया के सामने भारत की छवी पीछले कुछ सालों में काफी उपर पहुंच गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के उन ताकतवर नेताओं में शामिल हैं जो कुछ भी बोलें तो दुनिया उन्हें बड़े गौर से सुनती है। पीएम मोदी के आने के बाद से भारत इंटरनेशनल लेवल पर काफी मजबूत हुआ है। आज दुनिया भर के देश भारत के साथ जुड़ना चाहते हैं। रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग को लेकर दुनिया का भी मानना है कि यह युद्ध अगर कोई रोक सकता है तो वो हैं भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। रूस और भारत लंबे समय से दोस्त रहे हैं और अमेरिका को यह बात आज भी खटकती है। लेकिन, वॉशिंगटन इस बीच नई दिल्ली संग अपने रिश्ते को नई ऊंचाई पर पहुंचा रहा है। दरअसल, भारत-अमेरिका 2+2 वार्ता में दोनों देशों की सेनाओं के बीच सभी क्षेत्रों में सहयोग पर सहमति बनी है।
उधर, हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की हरकतों पर अंकुश लगाने के लिए भारत ने बड़ा फैसला किया है। बहरीन में स्थित अमेरिका की अगुआई वाले 'महागुट' में भारत भी शामिल हो गया है। बहुद्देशीय समुद्री साझेदारी के तहत भारत ने कंबाइंड मैरिटाइम फोर्स में एंट्री की है। अरब सागर के क्षेत्र के भीतर और बाहर समुद्री सुरक्षा और पाइरेसी रोकने के लिए यह वैश्विक फोर्स काम करती है। ऐसे समय में जब अमेरिका हिंद महासागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को काउंटर करने के लिए भारत की भूमिका को सबसे ज्यादा महत्व दे रहा है, 34 देशों के महागठबंधन में भारत के शामिल होने के कई मायने हैं और इससे इन सभी देशों की ताकत में और भी ज्यादा इजाफा हो गया है।
भारत की नौसेना के साथ समुद्र सहयोग को और आगे बढ़ाने पर 2+2 मीटिंग में अमेरिका से बात हुई है। यूएस ने हिंद महासागर में बहुपक्षीय सहयोग का विस्तार करने के लिए एक सहयोगी भारीदार के रूप में संयुक्त समुद्री कार्यबल (CMF) में शामिल हेने के भारत के निर्णय का स्वागत किया है। इस फोर्स का मुख्यालय बहरीन में है। इसके 34 सदस्य देशों में इराक, इटली, जॉर्डन, मलेशिया, कुवैत, कोरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, सिंगापुर, स्पेन, UAE, तुर्की, यूके, अमेरिका भी शामिल हैं। जिसकी कमान अमेरिका के हाथों में है। मतलब इसका नेतृत्व अमेरिकी नेवी के वाइस एडमिरल अधिकारी करते हैं और यूके रॉयल नेवी कमोडोर सीएमएफ का डेप्युटी कमांडर होता है। हेडक्वॉर्टर में दूसरी अहम भूमिकाओं में सदस्य देशों के अधिकारी होते हैं।
दरअसल, वैश्विक व्यापार में समुद्री मार्ग सबसे महत्वपूर्ण होता है। CMF के सदस्य देश अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत समुद्री सुरक्षा में सुधार, मुक्त व्यापार और अवैध गतिविधियों को रोकने के लिए एक साथ काम करते हैं। इसमें सदस्यों का योगदान बहरीन स्थिति सीएमएफ मुख्यालय में एक लाइजन अधिकारी से लेकर युद्धपोतों या समुद्री टोही विमानों की तैनाती तक अलग-अलग हो सकता है। इसके साथ ही और सहायता के लिए यह उन युद्धपोतों को भी बुला सकता है जिन्हें सीएमएफ के लिए असाइन नहीं किया गया है।
अब भारत के लिए यह अहम क्यों रखता है इसको लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ ने समझाया है। उन्होंने कहा कि, भारत और अमेरिका दोनों हिंद -प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र को लेकर एक मुक्त, खुली, समावेशी और नियम आधारित समान सोच रखते हैं। हिंद-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए हमारी साझेदारी महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत बहरीन स्थित बहुपक्षीय संयुक्त समुद्री बल (सीएमएफ) में एक सहयोगी भागीदार के रूप में शामिल हुआ है। इससे पश्चिमी हिंद महासागर में क्षेत्रीय सुरक्षा में सहयोग मजबूत होगा।
जमीनी सीमा पर भारत और चीन के बीच रिश्ता कैसा है यह दुनिया जानती है। LAC के साथ ही चीन हिंद महासागर में भी अपनी दखल बढ़ा रहा है। इसके साथ ही श्रीलंका को अपनी कर्ज जाल में फंसा कर उसके आसपास के क्षेत्र में चीन की मौजूदगी बढ़ गई है। ऐशे में भारत के लिए दक्षिणी छोर के लिए चीनी युद्धपोत और पनडुब्बियों से खतरा पैदा हो सकता है। चीन हिंद महासागर में लगातार अपनी गतिवीधियां तेज कर रहा है। श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, मालदीव जैसे भारत के पड़ोसी देशों में उसने बेस बना लिए हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक 60 से अधिक देशों में चीन के बंदरगाह हैं। कहने के लिए वह व्यापारिक कारण बताता है लेकिन, असल में वो इसे सेना के लिए इस्तेमाल कर रहा है।
इसी खतरे को देखते हुए अमेरिका और भारत ने मिलकर क्वाड (अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत का संगठन) को मजबूत कना शुरू किया है। जिसपर चीन भन्ना उठा है और चेतावनी भी दे चुका है। आज के समय में एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कमजोर करने के लिए अमेरिका के पास भारत से अच्छा विकल्प कोई नहीं है ऐसे में वह नई दिल्ली के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है। कुछ समय पहले तक इसमें अमेरिका पाकिस्तान को साथ लेकर चल रहा था।
आज के समय में चीन का करीब 80 प्रतिशत तक ऊर्जा आयात समुद्री मार्ग के जरिए ही होता है। अपने ऊर्जा संबंधी हितों, प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच बढ़ाने, कारोबारी हितों को बढ़ाने के साथ हिंद महासागर में चीनियों की संख्या बढ़ने से साफ है कि वह इस समुद्री क्षेत्र में अपनी उपस्थिति यानी चीनी नौसेना का प्रभाव बढ़ाना चाहता है। जानकारों का कहना है कि, चीन की ऊर्जा यानी तेल और गैस की खपत 2050 तक दोगुनी हो जाएगी, जिसे ड्रैगन ने अभी से भाप लिया है। वहीं, CPEC के विकास के साथ ही चीन समुद्री सिल्क रूट पर भी ज्यादा फोकस कर रहा है। यह बलूचिस्तान के ग्लादर पोर्ट से होकर गुजरता है। इसका रूट पश्चिमी के खाड़ी देशों से हिंद महासागर क्षेत्र होते हुए चीन तक जाता है। ऐसे में चीन हिंद महासागर में अपनी पकड़ मजबुत कर रहा है। इसके लिए अमेरिका को सबसे ज्यादा भारत की जरूरत होगी। यह चीन के लिए बहुत बड़ा झटका भी है।
चीन अफ्रीका के पूर्वी तट पर बंदरगाह विकसी कर रहा है। पूर्वी अफ्रीकी देश जिबूती में सैनिक अड्डा भी बना लिया है। म्यांमार में गहरे समुद्र वाला बंदरगाह विकसित कर रहा है। पाकिस्तान के ग्वादर में भी पोर्ट बना रहा है। श्रीलंका में कोलंबो पोर्ट का निर्माण कर रहा है। बांग्लादेश का चटगांव बंदरगाह भी संचालित कर रहा है। चीन की घुसपैठिया चाल यहीं नहीं खत्म होती है, वो मालदील, मॉरीशस और सेशेल्स जैसे हिंद महासागर के द्वीपीय देशों का भी निवेश बढ़ा रहा है। चीन के जहाज और पनडुब्बी अक्सर हिंद महासागर में देखे दाते हैं। आने वाले सालों में चीन की सेना इस क्षेत्र में अपने व्यापारिक हितों की बात कहते हुए मौजूदगी बढ़ा सकती है औऱ नए तरह का खतरा पैदा हो सकता है। ऐसे में भारत की बहरीन में मौजूदगी काफी अहम है। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि, हिंद महासागर में चीन की पनडुब्बियां अगर को हरकत करती हैं इसका करारा जवाब देने के लिए भारत मौजूद रहेगा। अमेरिका का तो साफ कहना है कि चीनी को रोकने के लिए भारत की सबसे ज्यादा जरूरत होगी। ऐसे में अमेरिका और भारत के रिश्तों में आने वाले दिनों में और भी इजाफा होते देखा जाएगा।