अमेरिका (US) को छोड़कर चीन के गले मिल चुका सऊदी अरब अब अमेरिका के पास जा पहुंचा है। अमेरिका किसी भी तरह से एक बार फिर सऊदी अरब (Israel) को अपने पाले में लाना चाहता है। अमेरिका और सऊदी अरब लंबे समय तक खाड़ी में सबसे करीबी सहयोगी रहे हैं। यही वजह है कि अमेरिका अब इजरायल के साथ सऊदी अरब की डील कराने में जुट गया है। अमेरिका चाहता है कि सऊदी अरब अब इजरायल को मान्यता दे दे। विश्लेषकों का कहना है कि इसके जरिए अमेरिका की कोशिश इससे पहले चीन की मदद से सऊदी अरब और ईरान के बीच हुई डील को जवाब देने की है।अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जनरल की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका अपनी पूरी ताकत से सऊदी अरब के साथ डील के लिए प्रयास कर रहा है। इसके तहत सऊदी अरब इजरायल को मान्यता देगा और चीन से दूरी बनाएगा। अमेरिका अगर ऐसा करने में सफल रहता है तो यह उसके लिए बहुत बड़ी राजनयिक जीत की तरह से होगा।
सऊदी संग डील से किसको
विश्लेषकों के मुताबिक इस समझौते क्यों अंजाम दिया जा रहा है ? इससे किसे फायदा होगा ? हम किस पर भरोसा कर सकते हैं ? जैसे सवालों पैदा हो गए हैं। उन्होंने कहा कि यह समझौता मुख्यत: इजरायल के लिए है। इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू न्यायपालिका के पर कतरने के कारण अपने घर में भयानक राजनीतिक अशांति का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा फलस्तीन विरोधी कार्रवाई ने भी पूरे माहौल को गरम कर रखा है। विश्लेषकों के मुताबिक अगर मुस्लिमों के पवित्र देश सऊदी अरब और इजरायल के बीच बातचीत भी होती है तो इससे नेतन्याहू को फायदा होगा।
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चीन से रिश्ता तोड़ देगा सऊदी अरब ?
अमेरिका में बाइडन प्रशासन के आने के बाद सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ खशोगी मर्डर, तेल आदि को लेकर उनके रिश्ते बहुत तल्ख रहे हैं। इस डील के जरिए अमेरिका की कोशिश है कि किसी तरह से सऊदी अरब को चीन से आर्थिक और सैन्य तरीके से अलग कर दिया जाए। विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका की यह मंशा पूरी होती नहीं दिख रही है। सऊदी अरब के लिए यह मूर्खतापूर्ण होगा कि वह चीन से रिश्ते रखकर आर्थिक लाभ छोड़ दे।