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किशिदा की नई इंडो-पैसिफिक विज़न में पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश और बंगाल की खाड़ी का साझा विकास शामिल

भारत-जापान सम्बन्ध आध्यात्मिक जुड़ाव में निहित हैं: सोमवार को नई दिल्ली के बुद्ध जयंती पार्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा (फ़ोटो: सौजन्य: विदेश मंत्रालय)

अतुल अनेजा एवं अतीत शर्मा

जापान ने सोमवार को एक मुक्त तथा खुले हिंद-प्रशांत (एफ़ओआईपी) के लिए अपनी नई दृष्टि को सामने रखा, जिसमें बंगाल की खाड़ी समुदाय के एक हिस्से के रूप में पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश का साझा विकास शामिल है।

भारत को एक “अपरिहार्य भागीदार” बताते हुए जापानी प्रधानमंत्री फ़ुमियो किशिदा ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नई दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में आयोजित जापान-भारत शिखर सम्मेलन की बैठक के तुरंत बाद विश्व मामलों की भारतीय परिषद (आईसीडब्ल्यूए) में एक नीतिगत भाषण के दौरान अपनी नयी हिंद-प्रशांत रणनीति की रूपरेखा प्रस्तुत की।

किशिदा ने तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों- दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया और प्रशांत द्वीप समूह को सूचीबद्ध किया, जहां बहुस्तरीय कनेक्टिविटी पेश आने वाली कमज़ोंरियों को दूर कर सकती है और आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकती है।

“पूर्वोत्तर भारत, जो भूमि से घिरा हुआ क्षेत्र है, यहां अब भी ऐसी आर्थिक क्षमता है,जिसका पूरी तरह उपयोग नहीं हो सका है। बांग्लादेश और दक्षिण के अन्य क्षेत्रों को एक आर्थिक क्षेत्र के रूप में देखते हुए हम इस पूरे क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत और बांग्लादेश के सहयोग से बंगाल की खाड़ी-पूर्वोत्तर भारत औद्योगिक मूल्य श्रृंखला अवधारणा को बढ़ावा देंगे”।

सार्वजनिक मामलों के कैबिनेट सचिव नोरियुकी शिकाता ने एक छोटे से मीडिया समूह को जानकारी देते हुए कहा कि अभी पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश टोक्यो के रडार पर हैं।

एक बार नेप्यीडॉ में राजनीतिक स्थिति आसान होने के बाद म्यांमार फिर से परिदृश्य में दिखायी देगा।

अपने संबोधन के दौरान पीएम किशिदा ने बल देकर कहा कि जापान पहले ही बांग्लादेश के साथ आर्थिक साझेदारी समझौते की संभावना पर एक संयुक्त अध्ययन समूह शुरू कर चुका है।

शिकाता ने बताया कि भूमि से घिर हुए भूटान को भी बंगाल की खाड़ी की इस व्यापक पहल में शामिल किया जा सकता है, हालांकि अभी ध्यान पूर्वोत्तर भारत-बांग्लादेश संपर्क पर है।

प्रधानमंत्री किशिदा की दृष्टि विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरती अर्थव्यवस्थाओं तथा विकासशील देशों पर केंद्रित है, जिसमें दूर-दराज़ के द्वीपीय क्षेत्र भी शामिल हैं, जो जलवायु परिवर्तन और प्रशांत क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील हैं।

इस क्षेत्र के पारदर्शी और समावेशी विकास के किशिदा के इस दृष्टिकोण को पूरा करने के लिए टोक्यो 2030 तक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सार्वजनिक और निजी निधियों में 75 बिलियन अमरीकी डालर जुटायेगा।

अस्पष्ट रूप में चीन की ऋण-जाल कूटनीति के साथ जापानी निष्पक्ष विकास वित्त पर ध्यान केंद्रित करेंगे. जो कि गुणवत्ता वाले बुनियादी ढांचे के विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा, जिसमें दूर-दराज़ के द्वीपीय क्षेत्रों में समुद्र से गुज़रने वाले केबल शामिल हैं।

किशिदा ने श्रीलंका में गंभीर स्थिति का हवाला दिया और “अपारदर्शी और अनुचित विकास वित्त” को रोकने वाले नियमों पर बल दिया, जो कि राष्ट्रों के लिए स्वायत्त और स्थायी रूप से विकसित होने के लिए आवश्यक हैं। जापानी प्रधानमंत्री ने कहा, “यह आवश्यक है कि श्रीलंका का ऋण पुनर्गठन निष्पक्ष तथा पारदर्शी तरीक़े से आगे बढ़े।”

उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि टोक्यो दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के साथ घनिष्ठ सहयोग करेगा।

विश्लेषकों का कहना है कि मध्य पूर्व तथा अफ़्रीका सहित अन्य भौगोलिक क्षेत्रों में नयी दिल्ली के साथ व्यापक जुड़ाव शुरू करने से पहले जापान दक्षिण एशिया में भारत के साथ गहरे सहयोग की तलाश कर रहा है।

जापानी पीएम ने अपने संबोधन में कहा, “मेरा मानना है कि जापान और भारत मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्धों और दुनिया के इतिहास में बेहद अनूठी स्थिति में हैं।”

किशिदा ने यह महत्वपूर्ण घोषणा करने के लिए भारत को इसलिए चुना, क्योंकि यहीं पर जापान के सबसे लंबे कार्यकाल तक रहने वाले प्रधानमंत्री, दिवंगत शिंजो आबे ने अगस्त 2007 में भारतीय संसद में अपना प्रसिद्ध ‘द कंफ्लुएंस ऑफ़ टू सीज़’ नामक भाषण दिया था और पहली बार इसी के साथ ‘हिंद-प्रशांत’ की अवधारणा सामने आयी थी ।

उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री आबे शिंजो को याद करते हुए कहा, “मैं इस सौभाग्य की अनुभूति किए बिना नहीं रह सकता कि मैं यहां भारत में एक स्वतंत्र और मुक्त हिंद-प्रशांत के अपने दृष्टिकोण को लेकर बोलने खड़ा हूं… यहां इसी देश में पूर्व प्रधानमंत्री आबे ने प्रशांत और हिंद महासागरों को जोड़ने वाला भाषण दिया पहली बार दिया था। भारत वह स्थान है, जहां एफ़ओआईपी अस्तित्व में आया था” ।

किशिदा ने यह वादा करते हुए कहा कि जापान G20 की सफलता के लिए भारत के साथ सहयोग करने को लेकर “कोई कोर क़सर नहीं छोड़ेगा”।उन्होंने कहा कि दोनों देशों पर “क़ानून के शासन के आधार पर एक स्वतंत्र तथा खुली अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था” को बनाये रखने और सुदृढ़ करने की बड़ी ज़िम्मेदारी है।

यह पूछे जाने पर कि क्या यूक्रेन विवाद को हल करने की चीनी योजना काम कर सकती है, एक जापानी अधिकारी, जिन्होंने अपना नाम उद्धृत नहीं किये जाने की शर्त पर कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका पहले ही बीजिंग की योजना को ख़ारिज कर चुका है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष G-20 के अध्यक्ष के रूप में भारत यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए एक शांतिदूत की भूमिका निभाने का हक़दार था,क्योंकि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत के दौरान पीएम मोदी ने पहले ही यह बयान दे दिया था कि “हमारा युग नहीं है युद्ध”।
यह पूछे जाने पर कि क्या यूक्रेन विवाद को हल करने की चीनी योजना काम कर सकती है, एक जापानी अधिकारी, जो उद्धृत नहीं करना चाहता था, ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका पहले ही बीजिंग की योजना को खारिज कर चुका है। उन्होंने कहा कि इस वर्ष G-20 के अध्यक्ष के रूप में, भारत यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए एक शांतिदूत की भूमिका निभाने का हकदार था, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बातचीत के दौरान पीएम मोदी के पहले के बयान पर आधारित है कि “हमारा युग युद्ध का नहीं है “।

किशिदा ने कहा कि पारदर्शिता, मानवाधिकार, लोकतंत्र और बातचीत के माध्यम से समस्या-समाधान की संस्कृति को फैलाने के लिए ग्लोबल साउथ पर बल देने के मद्देनजर जापान जी-7 के लिए भारत के अलावा वियतनाम, ब्राजील, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया के अलावा कुक द्वीप, कोमोरोस को आमंत्रित करेगा, जिसकी मेजबानी इस साल मई में हिरोशिमा में की जायेगी।

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