दुनिया के कई देश चीन से परेशान हैं। खासकर वो देश जो इससे लगती सीमा साझा करते हैं। भारत की भी सीमा चीन से लगती है और गलवान वैली में फिचले साथ चीन ने अपनी बुरी चाल चलते हुए यहां घुसपैठ करने की कोशिश की जिसका भारतीय जवानों ने मुंहतोड़ जवाब दिया। इसके साथ ही नेपाल में तो चीन काफी अंदर घुस गया है। ताइवान पर लगातार कब्जा करने की फिराक में है। समुद्र में भी यही हाल है। अब जो दिश इससे सीमा साझा नहीं करते वो इसके कर्ज जाल में फंस रहे हैं। इस वक्त पाकिस्तान और श्रीलंका इसके उदाहरण हैं। श्रीलंका में जो हाल है वो चीन का ही दिया हुआ है और पाकिस्तान को भी इस हाल में करने में ड्रैगन का हाथ रहा है।
चीन के कर्ज जाल की साजिश नेपाल को अच्छे समझ आ गई है जिसके चलते उसने बेल्ट रोड इनिशिएटिव (BRI) को लेकर एक भी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है। इस बात का खुलासा नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउब ने पिछले हफ्ते अपने भारत दौरे के दौरान किया। उन्होंने अनौपचारिक रूस से मार्च के अंत में चीन के विदेश मंत्री वांग यी की काठमांडू यात्रा के दौरान हुई बातचीत को शेयर करते हुए कहा कि, उन्होंने वांग से कहा कि, इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए उनका देश केवल बीजिंग से अनुदान स्वीकार कर सकता है, न कि कर्ज। दक्षिण एशिया में चीन द्वारा दिए जाने वाला कर्जा 4.7बिलियन डॉलर से बढ़कर 40बिलियन डॉलर पर पहुंच चुका है। ऐसे में देउबा के नेतृत्व में नेपाल ने चीन के कर्ज जाल से बचने का फैसला किया है।
नेपाल को सबसे बड़ी सचेतता चीन के दो सहयोगी माने जाने वाले मुल्क पाकिस्तान और श्रीलंका से मिली। जहां आर्थिक के साथ ही राजनीतिक संकट भी गहरा रहा है। पाकिस्तान के बाहरी कर्जे में चीन की हिस्सेदारी 10फीसदी की है। दोनों मुल्कों के बीच अब रिश्ते पहले जैसे नहीं रह गए हैं। क्योंकि, पाकिस्तान में रातनीतिक आरजकता फैल गई है।
चीन के कर्ज जाल का दूसरा उदाहरण श्रीलंका है। जहां पर इस वक्त स्थिति पूरी तरह से बेकाबू हो गई है। यहां ईंधन और तेल खरीदने के लिए विदेश भंडार खत्म होने के कगार पर है। श्रीलंका में जो हालत है उसके पीछे राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे जिम्मेदार हैं, जिन्होंने चीन से उच्च ब्याज दरों पर कर्ज लेकर देश की अर्थव्यवस्था पर दबाव बनाया है। उन्होंने ये सारा कर्जा बुनियादी ढांचे का विकास करने के नाम पर लिया। पाकिस्तान और श्रीलंका में हो रहे घटनाक्रम को देखते हुए मालदीव, नेपाल और बांग्लादेश को अब चीन से कर्ज लेने और BRI का हिस्से बनने से पहले सोचने पर मजबूर होना पड़ा है।