पिछले साल उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) सम्मेलन का आयोजन हुआ था। दो दिवसीय सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के व्लादिमीर पुतिन, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाई-प्रोफाइल शिखर सम्मेलन में शामिल हुए थे। उस वक्त यूक्रेन की जंग को छह महीने हो चुके थे और इस जंग ने एक मानवीय आपदा को जन्म दिया था। हर कोई ये जानना चाहता था कि सम्मेलन में आए नेताओं ने पुतिन से किस तरह से बात की। लेकिन इस बार मेजबानी भारत के पास थी शायद पीएम मोदी नहीं चाहते थे कि पुतिन की वजह से दुनिया की नजरें उन पर टिकें। यह सम्मेलन एससीओ के दो प्रमुख सदस्यों रूस और चीन के लिए भी फायदेमंद साबित हुआ।
पुतिन के स्वागत से बचते मोदी
विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी शायद शिखर सम्मेलन के लिए राजधानी में पुतिन और शी का स्वागत करने से बचना चाहते थे। इस संगठन में पाकिस्तान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और अब ईरान जैसे देश भी शामिल है। इसकी स्थापना साल 2001 में क्षेत्रीय सुरक्षा और सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने के लिए की गई थी। इसका नेतृत्व रूस और चीन ने किया था। दोनों ही देश अमेरिका के लिए एक समान विचार रखते हैं। ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक प्रतिष्ठित फेलो मनोज जोशी ने सीएनएन से कहा, ‘वाशिंगटन में सम्मान पाने के बाद, मोदी को एक अलग रास्ते पर चलना पड़ा।
अपनी ताकत दिखाने का जरिया
पुतिन और जिनपिंग एससीओ के जरिए अपनी ताकत दिखाना चाहते थे। दोनों देशों चीन और रूस को ग्लोबर पावर सेंटर के तौर पर जाना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में एक वर्चुअल शिखर सम्मेलन भी उनके उद्देश्यों के अनुकूल था। वैगनर विद्रोह के बाद इस सम्मेलन के जरिए पुतिन पहली बार दुनिया के सामने आए थे। पुतिन ने पिछले साल भी एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लिया था। यूक्रेन पर हमले के बाद से उन्होंने शायद ही कभी रूस छोड़ा हो।
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चीन का क्या फायदा
चीन ने भी हाल के महीनों में यूरोप के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ा दी हैं। इस हिस्से में वह अपनी छवि और संबंधों को सुधारने का प्रयास कर रहा है। लंदन विश्वविद्यालय में एसओएएस चाइना इंस्टीट्यूट के निदेशक स्टीव त्सांग ने कहा, ‘एक ऑनलाइन समिट ने जिनपिंग को पुतिन के साथ स्टेज शेयर करने से बचा लिया।’ उन्होंने कहा कि जिनपिंग के लिए पुतिन के साथ आमने-सामने की मीटिंग के बाद यूरोप के साथ जुड़ना मुश्किल है।