नाटो और अमेरिका के बलबूते रूस से पंगा लेने चले यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंसकी को नाटो महासचिव स्टोलेनबर्ग ने दो टूक सुना दी है। स्टोलेनबर्ग ने कहा है कि जेलेसंकी तय कर लें कि जंग से मुक्ति की क्या कीमत देने के लिए तैयार हैं। यह उन्हीं को तय करना होगा, क्यों कि यह जंग उनकी है। जेलेंसकी को यह भी तय करना होगा कि शांति समझौते में जमीन भी देनी होगी और शिकस्त भी कबूलनी होगी। नाटो चीफ ने जेलेंसकी को साफ-साफ शब्दों में समझाया कि यूक्रेन को हथियार सिर्फ इसलिए दिए गए ताकि उनका पलड़ा बिल्कुल हलका न पड़ जाए और वो समझौते के टेबुल पर बैठने के काबिल बने रहें। लेकिन शांति के लिए शहादत देनी होती है। इसमें जमीन अपना इलाका भी देना पड़ता है।
कहने का मतलब है कि जेलेसंकी को पुतिन के सामने अकेले ही जाना होगा। उनके सामने घुटने टेकने ही होंगे, बिना शर्त समझौता वार्ता की पेशकश करनी होगी। डोनबास के अलावा जिन इलाकों पर रूस का कब्जा है उसे स्वीकारना होगा। इसके अलावा रूस की वो शर्त जिसमें कहा गया है कि जेलेंसकी लिखित आश्वासन दें कि वो नाटो के मेंबर नहीं बनेंगे- यह भी लिख कर देना पड़ सकता है।
आरटी डॉट कॉम पर प्रकाशित स्टोरी के मुताबिक स्टोलेनबर्ग ने कहा है कि, ‘शांति संभव है, लेकिन सवाल यह है कि आप (जेलेंसकी)इसकी क्या कीमत देना चाहते हैं। आप अपनी कितनी जमीन, कितनी स्वतंत्रता और संप्रभुता की शहादत देने के लिए तैयार है…क्या आप शांति के लिए शहादत देने के लिए तैयार हैं।’हालांकि स्टोलेनबर्ग ने जेलेंसकी को शांति समझौते की निश्चित शर्ते तो नहीं बताई लेकिन यह जरूर कहा है कि दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान फिनलैण्ड और सोवियत रूस के साथ समझौता एक अच्छा उदाहरण है। जिसके जेलेंसकी सीख ले सकते हैं। ध्यान रहे, फिनलैण्ड ने शांति समझौते के लिए सोवियत रूस को कारेलिया का पूरा इलाका सौंप दिया था। इसके बदले में सोवियत रूस ने फिनलैण्ड को आजाद संप्रभु देश मान लिया था।
हालांकि, नाटो महासचिव के इस बयान के इतर सीएनएन में ब्रिटिश और अमेरिकी सोर्सेज के हवाले से कहा गया है कि यूक्रेन, अपने पश्चिमी सहयोगियों की मदद से रूस को पराजित कर सकता है। ब्रुसेल्स में वाशिंगटन और लंदन के प्रतिनिधि सीज फायर या पीस सेटलमेंट की योजना बना रहे हैं। लेकिन इस योजना में यूक्रेन का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं है। ध्यान रहे, दो दिन पहले यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंसकी ने बिना किसी विदेशी शक्ति का नाम लिए बगैर कहा था कि उन पर पुतिन से समझौते के लिए दबाव डाला जा रहा है। ये विदेशी ताकतें अपने देशों की जनता के दबाव में हैं। जनता सरकारों पूछ रही है कि यूक्रेन के लिए उन्हें मंहगाई, बेकारी और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का सामना क्यों करना पड़ रहा है। तीन महीने से ज्यादा खिंच चुके यूक्रेन-रूस जंग से यूरोपियन यूनियन और नाटो देशों की जनता त्रस्त हो चुकी है।
यहां, यहा बात भी गौर करने वाली है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंसकी कई बार समझौता करने और शांति के लिए बलिदान की बात कर चुके हैं लेकिन कुछ देर बाद ही वो अपनी बात से पलट जाते हैं। जैसे कि पिछले ही महीने उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन से खुद बात करने का वादा किया और फिर कुछ दिन ही बाद अपने लोगों से बोले कि डोनबास में यूक्रेनियन फ्लैग लहराने के अलावा कोई दूसरा विकल्प हो ही नहीं सकता। यूक्रेन-रूस की जंग में अब विश्वास का भी अभाव हो चुका है। कोई भी देश यहां तक कि अमेरिका भी जेलेंसकी की बातों पर भरोसा नहीं कर रहा है। सवाल उठ रहा है कि जेलेसंकी की गारंटी कौन ले और कौन इस युद्ध को खत्म कराने का बीड़ा उठाए।