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China की वजह से आई भारत-रूस की दोस्ती में दरार! क्‍यों ड्रैगन के करीब हुआ Russia?

China की वजह से आई भारत-रूस की दोस्ती में दरार! क्‍यों ड्रैगन के करीब हुआ Russia?

हाल ही में पूर्व विदेश सचिव श्‍याम सरन ने भी कहा है कि चीन के प्रति रूस (Russia) की खतरनाक स्थिति ने जिनपिंग को इतना ताकतवर बना दिया है कि वह उसे भारत के साथ संपर्क न करने के लिए बाध्‍य कर सकते हैं। उनकी मानें तो यह वह स्थिति है जिसके बारे में भारतीय नीतिकारों को सोचना होगा लेकिन यह मसला काफी जटिल है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह बात सच है कि चीन पिछले करीब एक दशक से रूस (Russia) का करीबी अनौपचारिक साथी बना हुआ है।साल 2014 में जब रूस ने क्रीमिया को यूक्रेन से अलग कर दिया तो पश्चिमी देशों की तरफ से उसे अलग-थलग या अकेला करने की कई कोशिशें हुईं। इसके बाद कई प्रतिबंधों की वजह से यूरोप और अमेरिका का दबाव रूस पर बढ़ गया। ऐसे में चीन जो हमेशा से अमेरिका विरोधी रहा है, उसका साथी बनकर सामने आया। यूक्रेन युद्ध के बाद जब रूस ने खुद को कूटनीतिक तौर पर अकेला पाया तो वह चीन की तरफ झुकता चला गया।

चीन की तरफ़ क्यों हुआ Russia का झुकाओ?

असल में भारत और रूस (Russia) पिछले छह दशकों से सबसे मजबूत रणनीतिक साझेदार। सन् 1971 में भारत पाकिस्‍तान की जंग में जब अमेरिका दुश्‍मन के खिलाफ था तो रूस भारतीय सेनाओं की मदद कर रहा था। इसी तरह से जब सोवियत संघ का पतन हुआ तो उसके बाद भारत, रूस का सबसे बड़ा करीबी बनकर सामने आया। लेकिन अब विशेषज्ञों की मानें तो इस रिश्‍ते में संतुलन बरकरार रखना सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। मार्च में चीन के राष्‍ट्रपति शी जिनपिंग रूस की यात्रा पर गए। यहां पर उन्‍होंने अपने रूसी समकक्ष व्‍लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। इसी म‍ीटिंग ने सबकुछ बदल दिया है। भारत-रूस के रिश्‍तों के जानकार मानते हैं कि जिस तरह से रूस का रुख चीन की तरफ झुकता जा रहा है, वह चिंता की बात है।

क्या आ जाएगी भारत-रूस की दोस्ती में दरार?

भारत के साथ अपने संबंधों को तोड़ना रूस (Russia) के लिए एक तरह की ‘रणनीतिक आत्महत्या’ होगी क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो वह स्थायी तौर पर चीन का गुलाम बन जाएगा। साल 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पहले ही यूरोपियन यूनियन में मौजूद अपने सहयोगियों का भरोसा खो चुका है। ऐसे में भारत को अलग-थलग करने से रूस के पासवैश्विक स्तर पर कोई भी फायदा नहीं होगा। साथ ही उसे चीन के खिलाफ मिलने वाला किसी भी तरह का कोई भी फायदा या कूटनीतिक लाभ का मौका भी खत्‍म हो जाएगा। इसके अलावा, यह स्थायी रूप से भारत का भरोसा खो देगा। ऐसे में रूस और चीन गठबंधन जल्दबाजी में लिया गया फैसला लगता है।

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