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China की शरण में पहुंचा सऊदी अरब? चौंका देने वाले खुलासे से अमेरिका की बढ़ेगी बेचैनी

China Saudi Arabia Relations

सऊदी अरब और चीन (China Saudi Arabia ) के मजबूत रिश्ते होते हुए भी अमेरिका काफी ज्यादा परेशान हो रहा है। दरअसल, दोनों देश ही तेजी से द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में जुटे हैं। एक तरफ जहां सऊदी अरब जहां स्टेट विजन 2030 को आगे बढ़ा रहा है, वहीं चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के साथ आगे बढ़ रहा है। विजन 2030 को सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने 2016 में लॉन्च किया था। क्राउन प्रिंस सलमान इसे आगे बढ़ाने के लिए चीन के बीआरआई का साथ लेना चाहते हैं। इसके अलावा वैश्विक भू-राजनीतिक परिस्थितियों ने चीन और सऊदी अरब को एक प्लेटफॉर्म पर आने में मदद की है। पिछले एक दशक से अमेरिका समर्थक रहा सऊदी अरब खुद को अपेक्षित महसूस कर रहा था। ऐसे में चीन को मौका मिला और उसने अमेरिका की खाली जगह को खुद से बदल दिया।

सऊदी आखिर क्यों चीन के पास पहुंचा

पर्यटन सऊदी अरब के विजन 2030 का एक सबसे बड़ा फोकस है। चीन 2019 में पर्यटकों के स्रोत के रूप में विश्व में नंबर एक पर था। चीनी लोगों ने 155 मिलियन विदेशी यात्राएं की हैं और चीन के बाहर छुट्टियां मनाते हुए 250 बिलियन डॉलर से अधिक खर्च किया है। बाद में कोविड महामारी के कारण 2020 और 2021 में यह संख्या 20 और 26 मिलियन पर्यटकों तक गिर गई। ऐसे में सऊदी अरब की कोशिश चीन से ज्यादा से ज्यादा टूरिस्ट को अपने देश में खीचना है। यह तभी संभव हो सकता है, जब सऊदी अरब का चीन के साथ संबंध काफी मजबूत हो।

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प्रिंस सलमान पर्यटन से पैसा कमाना चाहते हैं

सऊदी अरब इस दशक के अंत तक पर्यटन राजस्व के तौर पर सालाना 46 बिलियन डॉलर कमाने की कोशिश कर रहा है। ऐसे में खाड़ी के सबसे शक्तिशाली देश को लगता है कि इस काम में चीनी पर्यटक सबसे बड़ी भागीदारी निभा सकते हैं। 2019 में सऊदी अरब ने पर्यटन के जरिए रिकॉर्ड 19.85 बिलियन डॉलर कमाए थे, हालांकि बाद में कोविड महामारी के कारण सऊदी अरब का पर्यटन राजस्व काफी ज्यादा गिर गया।

चीन को सऊदी से फायदे की उम्मीद

चीन भी जीरो कोविड पॉलिसी की वजह से आर्थिक झटकों से उबर रहा है। ऐसे में उसे सऊदी अरब जैसे एक बड़े और शक्तिशाली देश का साथ जरूरी है। मुस्लिम देशों में सऊदी अरब का प्रभाव काफी ज्यादा है। चीन पहले से ही मुसलमानों के खिलाफ अत्याचारों को लेकर आलोचना का सामना कर रहा है। ऐसे में सऊदी अरब का साथ मिलने से उसे काफी राहत मिल सकती है। दूसरी ओर, चीन अपनी ऊर्जा जरूरतों का बड़ा हिस्सा सऊदी अरब के मंगाता है।