कोरोना के बढ़ते मामले ने देश में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। देश हर दिन लोग स्वास्थ्य सुविधाओं के बिना मर रहे हैं। अस्पतालों में बेड नहीं हैं। ऑक्सीजन के लिए लोग दर-दर भटक रहे हैं। ऐसे में अब सरकार ने नया गाइडलाइन जारी किया है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने होम आइसोलेशन को लेकर एक नई गाइडलाइन जारी की है। नए गाइडलाइंस में दो खास बातें बताई गई हैं। पहली चीज ये है कि कोरोना के हल्के या बिना लक्षण वाले मरीज घर पर रहते हुए कैसे अपना इलाज कर सकते हैं।
होम आइसोलेशन को लेकर सरकार की तरफ कुछ सलाह दी गईं हैं। गाइडलाइन के मुताबिक मरीज को लगातार अपने डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए और हालत गंभीर होने के स्थिति में तुरंत अपने डॉक्टर को इसकी सूचना दें। कोरोना के मरीजों को अगर पहले से कोई और बीमारी हो तो डॉक्टर से संपर्क करने के बाद उस बीमारी की दवा भी जारी रखें। गाइडलाइन में सलाह दी गई है कि बुखार, नाक बहने और खांसी होने पर मरीज को कोरोना के लक्षण वाले इलाज शुरू कर देने चाहिए। मरीजों को गर्म पानी से गरारा करने और दिन में दो बार भाप लेने की भी सलाह दी गई है।
बुखार कंट्रोल ना होने पर क्या करें
गाइडलाइन में सुझाव दिया गया है कि अगर दिन में चार बार पैरासीटामोल (650mg) लेने पर भी बुखार नहीं उतरता है तो मरीज को अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। डॉक्टर आपको नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लामेटरी दवा जैसे कि नेप्रोक्सेन (250mg दिन में दो बार) लेने की सलाह दे सकते हैं। इसके अलावा डॉक्टर आपको 3 से 5 दिनों के लिए आइवरमेक्टिन टैबलेट (दिन में एक बार mcg/kg, खाली पेट) भी दे सकते हैं।
बच्चों के लिए कोरोना के प्रोटोकॉल
गाइडलाइन में कहा गया है कि एसिम्टोमैटिक बच्चों को किसी भी तरह के इलाज की जरूरत नहीं है। हालांकि इन पर ध्यान देने की जरूरत है कि आगे चलकर इनमें लक्षण आते हैं कि नहीं। बच्चों का इलाज लक्षण के हिसाब से किया जाना चाहिए। जिन बच्चों में गले में खराश, बहती नाक, खांसी और पेट से जुड़े मध्यम लक्षण हैं, इनका इलाज घर पर ही किया जा सकता है। बुखार के लिए पैरासिटामोल (10-15mg/kg/डोज) हर 4-6 घंटे पर देने की सलाह दी गई है। खांसी के लिए गर्म पानी से गरारा कर सकते हैं। हाइड्रेशन बनाए रखने के लिए बच्चों को ज्यादा से ज्यादा तरल पदार्थ दें।
गंभीर लक्षण वाले बच्चों के लिए प्रोटोकॉल
जिन बच्चों का ऑक्सीजन लेवल 90% से कम होता है उनमें Covid-19 के गंभीर लक्षण होते हैं। इन बच्चों में गंभीर निमोनिया, रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम, मल्टी ऑर्गन डिसफंक्शन सिंड्रोम और सेप्टिक शॉक जैसे गंभीर लक्षण दिखाई दे सकते हैं। प्रोटोकॉल में बताया गया है कि इन बच्चों में थ्रोम्बोसिस, हेमोफैगोसिटिक लिम्फोहिस्टोसाइटोसिस (HLH) और ऑर्गन फेल्योर की जांच करानी चाहिए। गाइडलाइन में इन बच्चों का कंप्लीट ब्लड काउंट, लिवर, रीनल फंक्शन टेस्ट और चेस्ट एक्स रे कराने की सलाह दी गई है।