ऐसी खबरें आ रही हैं कि संयुक्त किसान मोर्चा ने कोरोना वायरस के प्रकोप से डर कर एक बार फिर सरकार से वार्ता शुरू करने का आग्रह किया है। लेकिन तीनों कानूनों को रद्द करने की मांग पर अब भी अड़े हुए हैं। दरअसल, सिंघू बॉर्डर पर कोरोना वायरस से दो किसानों की मौत हो चुकी है। दो किसानों की मौत के बाद से तीनों बॉर्डर बैठे लोगों में डर है। ये लोग प्रदर्शन खत्म कर वापस अपने-अपने घरों की ओर लौटने की जिद कर रहे हैं। इन लोगों के स्थान पर नए लोग प्रदर्शन में शामिल नहीं हो रहे हैं। इसलिए अब प्रदर्शनकारियों के नेताओं में व्याकुलता है। हालांकि 26 मई को एकबार फिर विरोध का विगुल बजाकर इस प्रदर्शन में जान डालने की कोशिश की जा रही है। इस बारे में खबरें हैं कि इस विरोध में आशानुरूप संख्या नहीं जुट पाएगी।
इसके अलावा इस बार गेहू खऱीद का पैसा किसानों के खातों में पहुंच जाने से पंजाब के किसानों का भ्रम टूट रहा है। इससे भी प्रदर्शकारियों की चिंता बढ़ रही है। इन्ही सब बातों से प्रभावित होकर संयुक्त किसान मोर्चाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा, जिसमें तीनों कृषि कानूनों पर बातचीत फिर से शुरू करने का अनुरोध किया। सरकार और किसान नेताओं के बीच पिछले 4महीने में कोई बातचीत नहीं हुई है।
किसान संगठनों ने एक बयान में कहा, “संयुक्त किसान मोर्चा ने आज प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर किसानों से बातचीत फिर से शुरू करने को कहा है। इस पत्र में किसान आंदोलन के कई पहलुओं और सरकार के अहंकारी रवैये का जिक्र है। प्रदर्शनकारी किसान नहीं चाहते हैं कि कोई भी महामारी की चपेट में आए। साथ में वे संघर्ष को भी नहीं छोड़ सकते हैं, क्योंकि यह जीवन और मृत्यु का मामला है और आने वाली पीढ़ियों का भी।”
पत्र में कहा गया है, “कोई भी लोकतांत्रिक सरकार उन तीन कानूनों को निरस्त कर देती, जिन्हें किसानों ने खारिज कर दिया है, जिनके नाम पर ये बनाए गए हैं और मौके का इस्तेमाल सभी किसानों को एमएसपी पर कानूनी गारंटी देने के लिए करती… दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार के मुखिया के रूप में, किसानों के साथ एक गंभीर और ईमानदार बातचीत को फिर से शुरू करने की जिम्मेदारी आप पर है।”
संयुक्त किसान मोर्चा ने पत्र में यह भी लिखा है कि वे अपनी मुख्य मांगों- तीनों कृषि कानूनों को खत्म करने और फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी बनाने की मांग पर कायम हैं। सरकार और किसान नेताओं के बीच आखिरी बार 22जनवरी को बातचीत थी। केंद्र सरकार ने तीनों कानूनों को डेढ़ साल तक स्थगित करने का प्रस्ताव दिया था, जिसे किसान नेताओं ने खारिज कर दिया था।
संयुक्त किसान मोर्चा ने हाल ही में दिल्ली की सीमाओं पर उनके प्रदर्शन के 6महीने पूरे होने के मौके पर 26मई को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की है।