Hindi News

indianarrative

China ने जैविक हथियार की तरह Wuhan Lab में बनाया Coronavirus, वैज्ञानिकों के हाथ लगे सबूत!

वुहान लैब में ही बना कोरोना वायरस (Image Courtesy Google)

कोरोना वायरस के पैदा होने को लेकर अब एक के बाद एक खुलासे होते जा रहे हैं, चीन अब ज्यादा समय तक नहीं बच सकता। अभी हाल ही में चीन की एक वैज्ञानिक ने दावा किया था कि यह वायरस चाइना ने ही वुहान लैब में बनया है। अब एक और चैका देने वाला खुलासा हुआ है, इस वायरस को लेकर दो वैज्ञानिकों ने बड़ा खुलासा करते हुए बताया है कि चीन के वैज्ञानिकों ने ही वुहान लैब में कोरोना वायरस को बनाया है। किसी को शक न हो और सबको लगे वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है इसके लिए वायरस के रिवर्स इंजीनियरिंग वर्जन से ट्रैक किया। दोनों वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि चीन के रेट्रो इंजीनियरिंग के सबूत उनके पास वर्षों से मौजूद हैं।

चीन के खिलाफ कोरोना वायरस को पैदा करने में मिले कई सबूत

डल्गलिश और सोरेनसेन को वायरस में यूनिक फिंगरप्रिंट्स मिले जिससे यह साफ था कि वायरल को लैब में बनाया गया है। वैज्ञानिकों ने कहा कि उन लोगों ने रिसर्च को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की लेकिन सबने वायरस के चमगादड़ या अन्य जानवरों से मनुष्य में फैलने की बात कहकर खारिज कर दिया गया। रिसर्च में डल्गलिश और सोरेनसेन ने दावा किया है कि 'सार्स-कोरोना वायरस-2' प्राकृतिक नहीं है। यह वायरस प्रयोगशाला में ही हेरफेर करके बनाया गया है, इस पर संदेह नहीं होना चाहिए। रिसर्च में कहा गया है कि वायरस का डेटा छुपाया गया। इसमें मैनीपुलेशन किया गया। और जिन वैज्ञानिकों ने इस वायरस की उत्पत्ति को लेकर बात की उन्हे गायब करा दिया गया।

कोरोना वायरस पर रिजर्च करने वाले ये दोनों वैज्ञानिकों में से एक ब्रिटिश प्रोफेसर एंगुल डल्गलिश हैं। जो जार्ज यूनिवर्सिटी लंदन में ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट में हैं। वह एचआईवी वैक्सीन पर काम करने के लिए जाने जाते हैं। जबकि दूसरे नार्वेजियन वैज्ञानिक डॉ. बिर्गर सोरेनसेन हैं जो एक फार्मा कंपनी में वायरोलॉजिस्ट हैं जिसने कोरोना वायरस वैक्सीन को डेवलप किया है।

अमेरिका ने अपने प्रयोगशाला में कोरोना को बना दिया अधिक घातक

दरअसल, किसी वायरस के मनुष्य में अधिक संक्रामक होने के प्रभाव की स्टडी के लिए रिसर्च किया जाता है। 'Gain of Function' रिसर्च में वायरस को अधिक संक्रामक बनाने के लिए उसको ट्वीक किया जाता है ताकि वह लैब में मनुष्य के सेल्स में रेप्लीकेट कर सकें। इससे वैज्ञानिक बेहतर ढंग से इसकी स्टडी करते और वायरस को समझ पाते हैं। डल्गलिश और सोरेनसेन का दावा है कि इसी प्रोजेक्ट के तहत चीन की गुफाओं में पाए जाने वाले चमगादड़ों से कोरोना वायरस को लिया गया। फिर उसको प्रयोगशाला में अधिक घातक वायरस में बदल दिया गया।

इन आधारों पर वैज्ञानिक कर रहे दावा

दोनों वैज्ञानिकों का कहना है कि वो कोरोना वायरस के लैब में बनाए जाने को लेकर दावा सबूत के आधार पर कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि, वायरस में चार एमिनो एसिड की पक्ति से उनको शक हुआ। फिजिक्स के नियमों के अनुसार चार पॉजिटिवली चार्ज वाले एमिनो एसिड एक पक्ति में नहीं रह सकते। यह केवल उस स्थिति में हो सकता है जब इसको आर्टिफिशियल तरीके से बनाया गया हो। क्योंकि एमिनो एसिड पॉजिटिव चार्ज वाला होता है वह मानव कोशिकाओं के नेगेटिव चार्ज की वजह से मजबूती से चिपक जाता है जिस तरह कोई चुंबक दो विपरीत चार्ज की वजह से एक दूसरे को खिंचता है। मानव कोशिकाओं से वायरस के चिपक जाने की वजह से वह अधिक खतरनाक हो जा रहा है।

अमेरिका के स्वास्थ्य अधिकारियों पर लग रहा आरोप

कोरोना वायरस को लेकर चीन और अमेरिका के बीच शुरू से ही विवाद रहा है। अमेरिका अक्सर चीन पर इस वायरस को फैलाने में जिम्मेदार ठहराता रहा है, यहां तक की कई मौको पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीनी वायरस भी कह चुके हैं। अब ऐसा पहला मौका है जब अमेरिका का भी इसमें हाथ बताया जा रहा है। दरअसल, अमेरिका के कुछ अधिकारी वुहान लैब में कोरोना वायरस को बनाने के आरोपों के घेरे में हैं। आरोप है कि यूएस हेल्थ आफिसियल्स ने इस विवादास्पद और रिस्की रिसर्च के लिए वुहान लैब को फंडिंग की है। तत्कालीन ओबामा प्रशासन ने जिस 'गेन आफ फंक्शन' को अवैध घोषित किया था, अमेरिका के कुछ अधिकारियों ने उसी प्रोजेक्ट में चीन के वुहान लैब को फंड उपलब्ध कराए हैं।

बिडेन ने दिए हैं जांच का आदेश

कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर व्हाइट हाउस को अज्ञात सीक्रेट रिपोर्ट मिली। इसमें वायरस के लैब में बनाए जाने, वहां के रिसर्च करने वालों के बीमार होकर अस्पताल में भर्ती होने की बात की गई थी।