आज ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि है। इस तिथि को अपरा एकादशी कहते है। इसके अलावा, इसको अचला एकादशी, भद्रकाली एकादशी और जलक्रीड़ा एकादशी के नाम से भी जाना जता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, अपरा एकादशी का खास महत्व होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये तिथि भगवान विष्णु को प्रिय होती है। इस दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना की जाती है। हर महीने में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में…
साल में कुल 24 एकादशी तिथि पड़ती है। ज्येष्ठ माह कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। चलिए आपको अपरा एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त, पारण का समय और इसकी कथा के बारे में बताते है।
व्रत का शुभ मुहूर्त
अपरा एकादशी व्रत- 6 जून 2021, दिन रविवार, सुबह 06 बजकर 19 मिनट तक
पारण का समय- 7 जून दिन सोमवार को सुबह 06 बजे से 08 बजकर 39 मिनट तक
व्रत पूजा विधि- अपरा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और नहाने के बाद पूजा स्थल पर बैठकर भगवान विष्णु की मूर्ति पूजा चौकी पर स्थापित करें। भगवान विष्णु को पीले फूल, ऋतुफल और तुलसी दल अर्पित करे। एकादशी व्रत का संकल्प लें और फिर धूप-दीप जलाकर भगवान की आरती करें। एकादशी व्रत के दिन फलाहार व्रत रखें, शाम को फिर से भगवान की आरती करें और फलाहार करें। एकादाशी व्रत के दूसरे दिन द्वादशी तिथि को शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें और किसी गरीब को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
अपरा एकादशी का महत्व- महाभारत काल में युधिष्ठिर के अनुरोध पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपरा एकादशी व्रत के महत्त्व के बारे में पांडवों को बताया था। इस व्रत का पालन करते हुए ही पांडवों ने महाभारत का युद्ध जीता था। धार्मिक मान्यता ये है कि अपरा एकादशी व्रत रखने से अपार धन की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के पापों का अंत होता है। जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा, परस्त्रीगमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
कथा- अपरा एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए तथा एकादशी व्रत कथा का पाठ करना या सुनना चाहिए। एकादशी का व्रत फलाहारी रखा जाता है। व्रत के अगले दिन पारण के समय शुभ मुहूर्त में किसी जरूरत मंद ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भी व्रत का पारण करते हुए भोजन करना चाहिए। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अपरा एकादशी का अर्थ अपार पुण्य होता है। भगवान विष्णु की कृपा दिलाने वाले व्रत की कथा इस प्रकार है। महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था।
एक दिन अवसर पाकर इसने राजा की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती। एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। इन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना। ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त करके राजा प्रेतयोनि से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।