कोरोना की दूसरी लहर के बीच लोगों को तीसरी लहर का खौफ सता रहा है। वैज्ञानिकों की मानें तो तीसरी लहर बच्चों के लिए ज्यादा खतरनाक साबित होगी। लेकिन एक्सपर्ट्स ने इस दावे को मानने से इंकार किया। एक्टपर्ट्स ने डेटा को सबूत के तौर पर पेश करते हुए कहा कि सिंगापुर में जब स्कूल बंद किए गए तो भारत में इसे एक तरह से सबूत की तरह देखा गया कि नए स्ट्रेन का प्रभाव बच्चों पर पड़ने वाला है। लेकिन डेटा कुछ और ही बता रहे है। दोनों लहरों में जितने भी लोग अस्पताल में भर्ती हुए, उनमें से 2.5 प्रतिशत एक से 18 के बीच वाले थे। इस एजग्रुप की आबादी में करीब 40% हिस्सेदारी है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि बच्चों के मुकाबले वयस्कों को कोविड से गंभीर बीमारी और मौत का खतरा 10-20 गुना ज्यादा है। दुनिया के किसी भी कोने से ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि तीसरी या उसके बाद ही किसी लहर में बच्चों पर ज्यादा असर होगा। नए स्ट्रेन्स ज्यादा संक्रामक हैं लेकिन उनमें किसी एजग्रुप को गंभीर रूप से बीमार करने की क्षमता में परिवर्तन नहीं हुआ है। कोविड को समझने वाले लगभग हर एक्सपर्ट्स यही तथ्य बता रहे है।
एक्पर्ट्स ने डेटा का उदाहरण देते हुए बताया कि अप्रैल-मई के बीच महाराष्ट्र से करीब 29 लाख मामले सामने आए। ऐसे में बच्चों में 99 हजार नए मामले टोटल का केवल 3.5% हुए जबकि 0-10 साल के बच्चों की आबादी में हिस्सेदारी लगभग 24% है। दूसरी लहर के दौरान डेली केसेज में पहली लहर के पीक के मुकाबले करीब चार गुना का अंतर है, ऐसे में बच्चों में 3.3 गुना की बढ़त भी बाकी एजग्रुप्स से कम है। यह भी ध्यान रखना होगा कि कोविड संक्रमित जिन बच्चों को भर्ती कराना पड़ा, उनमें से अधिकतर को पहले से कोई और बीमारी थी।