आज शीतला सप्तमी का व्रत है। सावन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शीतला सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। शीतला सप्तमी व्रत रखने से घर में सुख, शांति बनी रहती है। साथ ही साथ रोगों से मुक्ति मिलती है। स्कंद पुराण के अनुसार मां शीतला दुर्गा और मां पार्वती का ही अवतार हैं। शीतला माता गर्दभ यानी गधे की सवारी करती हैं। उन्होंने अपने एक हाथ में कलश पकड़ा हुआ है और दूसरे हाथ में झाडू है। ऐसा माना जाता है कि इस कलश में लगभग 33 करोड़ देवी-देवता वास करते हैं। चलिए आपको बताते है कि शीतला सप्तमी व्रत के बारे में सबकुछ-
शीतला मां पूजा विधि-
शीतला सप्तमी व्रत वाले दिन यानी कि शीतलाष्टमी को सुबह ही नित्यकर्म और स्नान के बाद मां की पूजा के दौरान उन्हें बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। इसके बाद यह खाना ही प्रसाद के तौर पर घर के अन्य सदस्यों को दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि झाड़ू से दरिद्रता दूर होती है और कलश में धन कुबेर का वास होता है। माता शीतला अग्नि तत्व की विरोधी हैं।
शीतला सप्तमी पर ये काम करने से बचें-
बसौड़ा वाले दिन सुबह ठंडे पानी से नहाना चाहिए।
जिन माताओं के बच्चे अभी माता का दूध पीते हो उन्हें बसौड़ा के दिन नहाना नहीं चाहिए।
मां शीतला को समर्पित बसौड़ा पर्व को शीतला सप्तमी कहा जाता है, मतातंर से कुछ लोग इसे अष्टमी के दिन बनाते हैं।
रोगों को दूर करने वाली मां शीतला का वास वट वृक्ष में माना जाता है, अतः इस दिन वट पूजन भी किया जाता है।
इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है और न ही घर में ताजा भोजन बनाया जाता है।
एक दिन पूर्व भोजन बनाकर रख दिया जाता है और अगले दिन शीतला पूजन के उपरांत सभी बासी भोजन ग्रहण करते हैं।