त्रेता युग में भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार भगवान श्री कृष्ण के जन्म दिन को जन्माष्टमी कहते हैं। उत्तर प्रदेश के मथुरा के अलावा संपूर्ण भारत वर्ष और विश्व में जहां-जहां सनातन धर्मावलंबी रहते उन सभी स्थानों पर कृष्णजन्माष्टमी का भव्य उत्सव मनाया जाता है।
भगवान कृष्ण का जन्म त्रेता युग में भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में हुआ था। भगवान कृष्ण के जन्म के समय रोहिणी नक्षत्र विचरण कर रहा था। इसलिए रोहिणी नक्षत्र में भगवान के जन्मोत्सव को विशेष योग माना जाता है। हर वर्ष दिन भर व्रत उपवास करने के बाद मध्यरात्रि को भगवान के अवतरण का आह्वान किया जाता है। मंदिरों में घण्टे-घड़ियाल शंख बजाकर उल्लास व्यक्त किया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्तः आज (30अगस्त) रात 11बजकर 59मिनट से मध्य रात 12बजकर 44मिनट तक है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत का पारायण रोहिणी नक्षत्र व्यतीत होने के बाद किया जाता है। सामान्यतः गृहस्थ श्रद्धालु मध्यरात्रि को ही पूजा अर्चना के बाद व्रत पारायण कर प्रसाद ग्रहण करते
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पारण मुहूर्तः कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत में रात्रि को लड्डू गोपाल की पूजा- अर्चना करने के बाद ही प्रसाद ग्रहण कर व्रत का पारायण किया जाता है। इसलिए जो लोग रोहिणी नक्षत्र के व्यतीत होने के बाद व्रत का पारायम करते हैं वो लोग 31अगस्त की प्रातः पौने दस बजे के बाद प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।