अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से ही चीन ने दखल देना शुरू कर दिया है। चीन वहां अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए बेताब है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने सोमवार को अफगानिस्तान के हालात पर एक प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में मांग की गई है कि युद्ध प्रभावित देश का इस्तेमाल किसी देश को डराने या हमला करने या आतंकवादियों को पनाह देने के लिए नहीं किया जाए।
इस दौरान चीन के प्रतिनिधि ने कहा कि दुर्भाग्य से हमारे संशोधनों को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया गया है। चीन ने हमेशा किसी भी प्रायोजक की तरफ से एक प्रस्ताव को थोपने या जबरदस्ती जोर देने का विरोध किया है। साथ ही कहा कि चीन को इस प्रस्ताव को अपनाने की आवश्यकता और तात्कालिकता के बारे में बहुत संदेह है।
इन बातों से जाहिर हुआ है कि चीन तालिबान को कठपुतली बनाने का इरादा रखता है। इसके बावजूद चीन ने रचनात्मक रूप से परामर्श में भाग लिया और रूस के साथ महत्वपूर्ण और उचित संशोधनों को सामने रखा। चीन के प्रतिनिधि ने कहा कि प्रासंगिक देशों को दूसरों पर अपनी इच्छा थोपने की अपनी गलत प्रथा को प्रभावी ढंग से बदलना चाहिए और प्रतिबंध लगाने की शासक प्रथा को बदलना चाहिए। उन्होंने पिछले 20 सालों में जो किया है, उसके लिए उन्हें जिम्मेदार होना चाहिए और शांति के लिए अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करना चाहिए।
अफगानिस्तान में हालिया अराजकता का सीधा संबंध विदेशी सैनिकों की वहां से वापसी से है। हमें उम्मीद है कि संबंधित देश ये महसूस करेंगे कि वापसी जिम्मेदारी का अंत नहीं है बल्कि प्रतिबिंब और सुधार की शुरुआत है।
भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक की अध्यक्षता की। हर्षवर्धन श्रृंगला ने कहा कि भारत ने हमेशा अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों विशेषकर सिखों, हिंदू अल्पसंख्यकों को सहायता प्रदान की है। ये उन अफगान नागरिकों को निकालने के हमारे प्रयासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिनमें अल्पसंख्यक भी शामिल हैं जो अफगानिस्तान छोड़ना चाहते हैं। अफगानिस्तान पर आज का प्रस्ताव UNSC 1267 की तरफ से नामित आतंकवादी व्यक्तियों और संस्थाओं को रेखांकित करता है। अफगान क्षेत्र का उपयोग किसी भी देश को धमकाने, हमला करने या आतंकवादियों को शरण देने, आर्थिक मदद या आतंकियों को ट्रेनिंग देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
आपको बता दे कि तालिबान ने 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। तालिबान के कब्जे के बाद अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर संयुक्त अरब अमीरात भाग गए।