इलाहाबाद उच्च न्यायलय की लखनऊ खंडपीठ ने वाल्मीकि समुदाय की तालिबान से तुलना करने के मामले में शायर मुनव्वर राना की गिरफ्तारी पर रोक लगाने से इनकार करते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी है। उनके खिलाफ हजरतगंज थाने में केस दर्ज है। कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए नसीहत भी की वो वही काम करें जो वो करते आए हैं।
जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए उनके अधिवक्ता से कहा कि आप लोग इस तरह की बाते क्यों बोलते हैं। आपका जो काम है वह करिए। यह संवेदनशील मामला होता है, यह कहते हुए पीठ ने अधिवक्ता से कहा कि याचिका पर कोई दखल नहीं दिया जा सकता। आप जाकर अग्रिम जमानत की अर्जी दे सकते हैं। यह कहकर कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
मुनव्वर राना की ओर से दलील दी गई कि संविधान ने उन्हें बोलने की आजादी दी है, जिसे आपराधिक प्रक्रिया प्रारम्भ कर दबाया नहीं जा सकता। उनकी ओर से कहा गया कि राजनीतिक कारणों से एफआईआऱ दर्ज की गई है। उनकी याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील एसएन तिलहरी ने तर्क देते हुए कहा कि, आजादी का अधिकार निर्बाध नहीं है और जो वक्तव्य याची ने दिया है वह समाज को भड़काने वाला व अपमानजनक है।
क्या कहा था मुनव्वर राना ने
मुनव्वर राना ने विवादित बयान देते हुए कहा था कि, हिंदुस्तान को तो अब भी अफगानिस्तान से नहीं, बल्कि पाकिस्तान से डरने की जरूरत है। तालिबानियों का कश्मीर से कोई लेना-देना नहीं है। वाल्मीकि जो पहले क्या थे और बाद में क्या हो गए? तालिबान भी पहले से बदल चुका है। अब पहले जैसा माहौल नहीं है।