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विकल्प के तौर पर एशियाई महाशक्ति के रूप में भारत के उभार से चीन बेचैन

विकल्प के तौर पर एशियाई महाशक्ति के रूप में भारत के उभार से चीन बेचैन

जब भारतीय सेना कोरोना वायरस के कारण अपने शांति-काल के स्थानों (पीस-टाइम लोकेशन) पर थी, तब चीन पैंगोंग त्सो झील में भारतीय क्षेत्र में घुसने और अपने ठिकाने स्थापित करने में व्यस्त था। चीन की छल-कपट वाली विस्तारवादी नीति को समझने के बाद भारतीय सेना चौकन्ना हो गई है, जिससे पीपुल्स लिबरल आर्मी (पीएलए) को वास्तविक मुकाबले में एक कठिन चुनौती से गुजरना पड़ रहा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को धमकी देकर चीन अपना असली रंग दिखा रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में देश अधिक राष्ट्रवादी रहेगा और उस शक्ति से संचालित होगा, जो पीएलए देश को प्रदान कर रही है। शी के सत्ता में आने के बाद, देश में निर्णय लेने का अधिकार अत्यधिक केंद्रीकृत हो गया है। चीन का मानना रहा है कि भूमि और समुद्री क्षेत्रीय मुद्दे, जिनकी ऐसी एक लंबी सूची है, उसे उस तरीके से हल किया जाना चाहिए, जैसे वह चाहता है।

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (एमपीआईडीएसए) के रिसर्च फेलो जगन्नाथ पी. पांडा ने कहा, "चीन अत्यधिक राष्ट्रवादी बन गया है और शी जिनपिंग के नेतृत्व में आक्रामक एजेंडे का अनुसरण कर रहा है। वह कोई भी रियायत या भारत को किसी प्रकार का लचीलापन नहीं दिखाएगा। चीन चाहता है कि भारत बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्च र निर्माण बंद कर दे। अपनी आक्रामकता के माध्यम से चीन भारत के बारे में ढांचा विकास (इंफ्रास्ट्रक्च र डेवलपमेंट) करने, एक मजबूत सैन्य निर्माण और यहां तक कि अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करने के बारे में अपनी शर्त या आपत्ति दर्शा रहा है।"

पांडा का कहना है कि सीमा पार के अतिक्रमण एवं उल्लंघनों का नेतृत्व करके चीन भारत पर दबाव बना रहा है।

हालांकि भारत को सैन्य रूप से धौंस दिखाने की कोशिश करने की चीनी रणनीति विफल रही है, फिर भी ड्रैगन भारत को परेशान करने की कोशिश करता रहेगा। वह अपनी विस्तारवादी नीति के अनुसार, भारतीय क्षेत्र को घेरने वाले और अधिक प्रयास करेगा।

पांडा का कहना है कि इन दांव-पेच के जरिए चीन चाहता है कि भारत समझौता करे। उन्होंने कहा, "लेकिन भारत लचीलापन नहीं दिखाएगा, क्योंकि नई दिल्ली को पता है कि कम्युनिस्ट प्रणाली के साथ लचीला होने से बड़ी समस्याएं पैदा होंगी। इसलिए, हम समझौता नहीं कर सकत, लेकिन ड्रैगन के सामने खड़ा होना होगा। भारत को यह स्वीकार करना होगा कि चीनी समस्या बनी रहेगी, इसलिए तैयार रहें।"

भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि चीन के साथ बातचीत जारी रखें, भले ही कोई सफलता न हो। गलवान घाटी की घटना के ठीक बाद, चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने सीमा समस्या के समाधान के लिए शांतिपूर्ण तरीके पर चर्चा करने के लिए विदेश मंत्री एस. जयशंकर से बात की थी। इसी तरह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने चीनी समकक्ष जनरल वेई फेंघे के साथ मास्को में अगस्त-सितंबर के सीमा गतिरोध के तुरंत बाद वार्ता की।

चीन के लिए वार्ता बहुत मायने नहीं रखती है, क्योंकि उसे इसका सम्मान करने की आदत ही नहीं है, चाहे वह भारत के साथ हो या दक्षिण चीन सागर से सटे छोटे देश हों। इसके साथ ही चीन किसी प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध या नियमों को भी दरकिनार करने के लिए विख्यात है।

इसलिए भारत के साथ, चीन चाहता है कि उसके दक्षिणी पड़ोसी को एशिया में उसकी संप्रभुता को स्वीकार करना चाहिए और चीन को अंतिम शक्ति के रूप में पहचानना चाहिए। पांडा को लगता है कि चीन भारत के खिलाफ कदम उठाने के लिए केवल उपयुक्त समय की तलाश में है।.